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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमनाथ मंदिर के आस-पास अतिक्रमण विरोधी अभियान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने मंदिर के पास मुसलमानों की संपत्तियों को गिराए जाने के मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि मंदिर के पास तोड़-फोड़ की कार्रवाई चलती रहेगी। इन संपत्तियों में एक सौ साल पुरानी मस्जिद भी शामिल है। गुजरात सरकार का कहना है कि समुद्र के किनारे सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए कानून के मुताबिक कार्रवाई की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी
शीर्ष अदालत ने आगे ये भी कहा कि अगर हमें पता चलता है कि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के आदेश की अवमानना की है, तो हम यथास्थिति बहाल करने का आदेश देंगे। अगर 17 सितंबर के आदेश का उल्लंघन हुआ तो गिराए गए ढांचों को फिर बनाने का आदेश दिया जाएगा।
गुजरात सरकार ने रखा अपना पक्ष
संगठन ने आईएएस अधिकारी राजेश मुंजू के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की, जिन्होंने यह अभियान चलाया। यह अभियान सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के उस निर्देश का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया था कि इस अदालत से अनुमति के बिना पूरे देश में कहीं भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे को झूठा और भ्रामक बताया।
सॉलिसीटर जनरल ने बताया क्यों चला तोड़फोड़ अभियान
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि प्राची पाटन समुद्र तट से सटी सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए कानून के अनुसार सख्ती से तोड़फोड़ अभियान चलाया गया। अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही 2023 में शुरू हुई और सभी प्रभावित व्यक्तियों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिया गया। उन्होंने कहा कि अतिक्रमित क्षेत्र सोमनाथ मंदिर से सिर्फ 360 मीटर दूर है और समुद्र तट से सटा हुआ है, जो एक जलाशय है।
गुजरात सरकार देगी विस्तृत जवाब
जब हेगड़े ने बार-बार तोड़फोड़ अभियान पर रोक लगाने या मौजूदा संपत्तियों की यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, तो एसजी तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि गुजरात सरकार प्रत्येक आरोप पर विस्तृत जवाब दाखिल करेगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को छिपाया है कि कुछ प्रभावित लोग हाईकोर्ट गए थे और विस्तृत सुनवाई के बाद अभियान पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि
पीठ ने कहा कि हालांकि उसने तोड़फोड़ अभियान पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, उसने किसी भी सार्वजनिक स्थान जैसे सड़क, गली, रेलवे लाइन से सटे फुटपाथ या किसी नदी या जलाशय जहां भी अतिक्रमण या अवैध निर्माण हुआ हो, कार्रवाई की छूट दी थी। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। ऐसे में सार्वजनिक संपत्ति में अतिक्रमण पर तोड़फोड़ का आदेश दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी
शीर्ष अदालत ने आगे ये भी कहा कि अगर हमें पता चलता है कि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के आदेश की अवमानना की है, तो हम यथास्थिति बहाल करने का आदेश देंगे। अगर 17 सितंबर के आदेश का उल्लंघन हुआ तो गिराए गए ढांचों को फिर बनाने का आदेश दिया जाएगा।ऐसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
एक मुस्लिम संगठन, 'सुम्मस्त पाटनी मुस्लिम जमात' ने वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े के माध्यम से आरोप लगाया कि 28 सितंबर को तड़के नौ धार्मिक ढांचों को गिराने के लिए अभियान चलाया गया। इनमें मस्जिद, दरगाह और मकबरे शामिल हैं, साथ ही यहां का कामकाज देखने वाले 45 लोगों के घर पर भी एक्शन हुआ है।गुजरात सरकार ने रखा अपना पक्ष
संगठन ने आईएएस अधिकारी राजेश मुंजू के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की, जिन्होंने यह अभियान चलाया। यह अभियान सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के उस निर्देश का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया था कि इस अदालत से अनुमति के बिना पूरे देश में कहीं भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे को झूठा और भ्रामक बताया।सॉलिसीटर जनरल ने बताया क्यों चला तोड़फोड़ अभियान
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि प्राची पाटन समुद्र तट से सटी सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए कानून के अनुसार सख्ती से तोड़फोड़ अभियान चलाया गया। अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही 2023 में शुरू हुई और सभी प्रभावित व्यक्तियों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिया गया। उन्होंने कहा कि अतिक्रमित क्षेत्र सोमनाथ मंदिर से सिर्फ 360 मीटर दूर है और समुद्र तट से सटा हुआ है, जो एक जलाशय है।गुजरात सरकार देगी विस्तृत जवाब
जब हेगड़े ने बार-बार तोड़फोड़ अभियान पर रोक लगाने या मौजूदा संपत्तियों की यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, तो एसजी तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि गुजरात सरकार प्रत्येक आरोप पर विस्तृत जवाब दाखिल करेगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को छिपाया है कि कुछ प्रभावित लोग हाईकोर्ट गए थे और विस्तृत सुनवाई के बाद अभियान पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि
पीठ ने कहा कि हालांकि उसने तोड़फोड़ अभियान पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, उसने किसी भी सार्वजनिक स्थान जैसे सड़क, गली, रेलवे लाइन से सटे फुटपाथ या किसी नदी या जलाशय जहां भी अतिक्रमण या अवैध निर्माण हुआ हो, कार्रवाई की छूट दी थी। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। ऐसे में सार्वजनिक संपत्ति में अतिक्रमण पर तोड़फोड़ का आदेश दिया गया है।16 अक्टूबर को अगली सुनवाई
पीठ ने कहा कि अगर हम पाते हैं कि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के आदेश की अवमानना की है, तो हम यथास्थिति बहाल करने का आदेश देंगे। इसका मतलब है कि उन ढांचों का पुनर्निर्माण किया जाए जैसा कि वे तोड़फोड़ से पहले थे। इस संबंध में अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को है।
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