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नई दिल्लीः नया क्रिमिनल लॉ लागू होने के साथ नए कानून की धाराओं के तहत FIR दर्ज होने लगी हैं। आइए, जानते हैं कि इससे अदालती कार्यवाही में क्या बदलाव आएगा?Q. कोर्ट में ट्रायल कब ?
कानूनी जानकार बताते हैं कि अदालत में नए कानून के हिसाब से ट्रायल शुरू होने में अभी एक-दो महीने का वक्त लग सकता है। FIR के तुरंत बाद ट्रायल शुरू नहीं होता, बल्कि इसके लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसका पालन करना होता है। कानूनी जानकार और दिल्ली हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा कहते हैं, जब भी नई FIR होती है तो उसकी कॉपी अगले दिन संबंधित मैजिस्ट्रेट के कोर्ट के रेकॉर्ड में पहुंचती है। यानी एक जुलाई को जिन मामले में क्रिमिनल केस दर्ज हुए हैं, उनकी कॉपी 24 घंटे के अंदर मैजिस्ट्रेट के कोर्ट में जाएगी। नियम के तहत 24 घंटे के भीतर ही आपराधिक केस में गिरफ्तारी के बाद आरोपी को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। इसके बाद पुलिस आरोपी को रिमांड या फिर जेल भेजने की गुहार लगा सकती है।
Q. कोर्ट में ट्रायल कब ?
कानूनी जानकार बताते हैं कि अदालत में नए कानून के हिसाब से ट्रायल शुरू होने में अभी एक-दो महीने का वक्त लग सकता है। FIR के तुरंत बाद ट्रायल शुरू नहीं होता, बल्कि इसके लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसका पालन करना होता है। कानूनी जानकार और दिल्ली हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा कहते हैं, जब भी नई FIR होती है तो उसकी कॉपी अगले दिन संबंधित मैजिस्ट्रेट के कोर्ट के रेकॉर्ड में पहुंचती है। यानी एक जुलाई को जिन मामले में क्रिमिनल केस दर्ज हुए हैं, उनकी कॉपी 24 घंटे के अंदर मैजिस्ट्रेट के कोर्ट में जाएगी। नियम के तहत 24 घंटे के भीतर ही आपराधिक केस में गिरफ्तारी के बाद आरोपी को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। इसके बाद पुलिस आरोपी को रिमांड या फिर जेल भेजने की गुहार लगा सकती है।Q. बहस में भी आएगा बदलाव?
कानून जानकार कहते हैं कि नए कानून के तहत दर्ज FIR में अगर कोई आरोपी जमानत की अर्जी दाखिल करता है तो अदालत में नए कानून के तहत ही उस पर दलील होगी और उसके हिसाब से ही कार्रवाई होगी। हालांकि एक जुलाई से पहले के दर्ज मामले में जमानत पर बहस पुराने कानून के हिसाब से ही होती रहेगी। एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि वह खुद रोहिणी कोर्ट में एक पुराने पेश हुए थे।Q. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में क्या ?
एक जुलाई या इसके बाद दर्ज केस में जमानत का मामला हो, या फिर रिमांड का मामला हो, अगर कोई आरोपी निचली अदालत के फैसले को चुनौती देता है तो मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी तुरंत ही देखने को मिल सकता है।
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