Temperature in India: ओडिशा के भुवनेश्वर की अन्नू मिश्रा को अपना फूड स्टॉल काफी लंबे समय तक बंद रखना पड़ा क्योंकि यहां अप्रैल में लगातार 17 दिन तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा. साल 1969 के बाद इतनी भीषण गर्मी की यह सबसे लंबा वक्त रहा, जिससे लोगों की सेहत और रोजी-रोटी पर बुरा असर पड़ रहा है. मिश्रा ने कहा, 'चिलचिलाती गर्मी के कारण गैस स्टोव के पास खड़ा होना बेहद मुश्किल हो गया है.
वैज्ञानिकों ने कही डराने वाली बात
उन्होंने बताया कि उनका फूड स्टॉल अब से पहले केवल 2019 में आए साइक्लोन के दौरान इतने लंबे समय के लिए बंद रहा था. बड़े जलवायु वैज्ञानिकों ने मौसम के आंकड़ों का हवाला देते हुए बुधवार को बताया कि इसी तरह की भीषण गर्मी का सामना हर 30 साल में एक बार करना पड़ सकता है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहले से ही इसकी संभावना लगभग 45 गुना अधिक हो गई है.
'वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन' (डब्ल्यूडब्ल्यूए) नाम के ग्रुप की वैज्ञानिकों की टीम ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रचंड लू पूरे एशिया में गरीबी में रहने वाले लोगों के जीवन को और ज्यादा मुश्किल बना रही है. साधारण लेकिन कमजोर पड़ रहे ‘अल नीनो’ और वातावरण में गर्मी को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता के बीच, दक्षिण एशिया में लाखों लोगों को अप्रैल में भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा.
गर्मी ने कई जगहों पर तोड़ा रिकॉर्ड
भारत के कई हिस्सों में अधिकतम तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिससे सरकारी एजेंसियों को सेहत से जुड़ी चेतवानियां जारी करनी पड़ीं और कई राज्यों ने तो स्कूलों में क्लासेज तक बंद कर दीं.
चमड़ी जला देने वाली गर्मी ने फिलीपीन, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और म्यांमार में भी तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए. जलवायु परिवर्तन के कारण सीरिया, लेबनान, इजराइल, फलस्तीन और जॉर्डन सहित पश्चिम एशिया में अप्रैल में 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान के साथ लू चलने का यह मौसम चक्र जल्दी-जल्दी लौट रहा है.
...तो करना होगा प्रचंड लू का सामना
चूंकि वैश्विक औसत तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पश्चिम एशिया में हर 10 साल में एक बार इसी तरह की गर्मी का सामना करना पड़ सकता है. अगर तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो हर पांच साल में लगभग एक बार इसी तरह की प्रचंड लू का सामना करना पड़ेगा. लू घातक साबित हो सकती है खास तौर पर बुजुर्गों और बच्चों के लिए. WHO के अनुसार 1998 से 2017 के बीच लू के कारण 1,66,000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.
(पीटीआई इनपुट के साथ)
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