भारत ने अमेरिका-चीन को जमकर सुनाया, नहीं चाहिए 25 लाख करोड़ की भीख...क्लाइमेट चेंज के लिए जरूरत 1096 लाख करोड़ की

नई दिल्ली: यूरोप और एशिया के चौराहे पर एक देश है अजरबैजान। पेट्रोलियम और पर्यटन से समृद्ध इस देश की राजधानी बाकू में हाल ही में धरती को हरा-भरा बनाए रखने के लिए एक बैठक हुई। COP-29 नाम की इस बैठक में जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने की चुनौतियो

4 1 4
Read Time5 Minute, 17 Second

नई दिल्ली: यूरोप और एशिया के चौराहे पर एक देश है अजरबैजान। पेट्रोलियम और पर्यटन से समृद्ध इस देश की राजधानी बाकू में हाल ही में धरती को हरा-भरा बनाए रखने के लिए एक बैठक हुई। COP-29 नाम की इस बैठक में जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने की चुनौतियों पर चिंता जताई गई। धरती के तापमान को गर्म करने वाली गैसों को कम करने के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात कही गई। यहां तक तो ठीक था, मगर जैसे ही इन चुनौतियों से पार पाने के लिए क्लाइमेट फाइनेंस की बात की गई, उसे लेकर विकासशील देश भड़क उठे। इसमें सबसे आगे था भारत। आइए-पूरा मामला सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं।

भारत समेत विकासशील देश इतने नाराज क्यों हो गए

सम्मेलन में क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर अमेरिका,चीन समेत अमीर देशों ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए 2035 तक बस 300 बिलियन डॉलर देने का वादा किया। दरअसल, यह रकम इतनी मामूली है कि इससे कुछ नहीं होने वाला है। विकासशील देशों का कहना है कि जरूरत तो 1.3 ट्रिलियन डॉलर की है। अमीर देशों की इतनी कम रकम ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। बस इसी बात पर विकासशील देश नाराज हो गए।

carbon emmission

भारत बना ग्लोबल साउथ देशों की मुखर आवाज

भारत ने कोप-29 में अमीर देशों के इस मामूली पैकेज को खारिज कर दिया। भारत की ओर से प्रतिनिधि चांदनी रैना ने कहा कि हम इससे काफी निराश है। ये बताता है कि विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि अमीर देशों का यह प्रस्ताव महज एक धोखा है। भारत इस मामले में ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है।

भारत को मिला बाकी देशों का भी समर्थन

भारत ने सबसे पहले अमीर देशों के इस पैकेज को खारिज किया। इस मुद्दे पर भारत को नाइजीरिया, बोलीविया, मलावी और सिएरालियोन जैसे देशों का साथ मिला। जहां नाइजीरिया ने इसे मजाक करार दिया तो वहीं, सिएरालियोन ने इसे नीयत की कमी करार दिया।
climate change


भारत में एक व्यक्ति औसतन 2.9 टन कार्बन उत्सर्जन करता है

भारत में एक व्यक्ति औसतन 2.9 टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के बराबर (tCO2e) उत्सर्जन करता है जो वैश्विक औसत (6.6 tCO2e) से काफी कम है। भारत के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन और 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

भारत ने 2015 के पेरिस सम्मेलन में क्या कहा था

2015 में भारत सहित दुनिया के 200 से अधिक देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक ना बढ़ने देने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। इस प्रतिबद्धता के तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाना था। इसके तहत हर देश को अपने नेशनल डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूसंश (एनडीसी) तय करने होते हैं और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पेश करने होते हैं। इनके तहत ये बताना होता है कि कोई देश कितना कार्बन उत्सर्जन होने देगा और इसमें कितनी कटौती करेगा और कैसे करेगा।
climate change

अमेरिका-चीन बढ़ाते धरती की गर्मी, जिम्मेदारी से बच रहे

धरती के तापमान को बढ़ाने में सबसे आगे अमेरिका, चीन और यूरोप के कुछ देश है। मगर, ये देश ही ग्लोबल वॉर्मिंग की चुनौतियों से पार पाने की जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। कोप सम्मेलनों में अक्सर यह बात कही जाती है कि इन देशों को धरती को हो रहे नुकसान की भरपाई करना चाहिए। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने सीधे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आर्थिक समस्याओं को देखते हुए 300 बिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम मंजूर नहीं की जा सकती है।

भारत क्लाइमेट चेंज से निपटने में 10वें स्थान पर

जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे 60 से ज्यादा देशों की सूची में भारत दसवें स्थान पर है। हालांकि भारत पिछले साल की तुलना में इस साल दो पायदान नीचे खिसक गया है। बाकू में वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन कॉप-29 में यह रिपोर्ट जारी की गई है। जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई 2025) की रिपोर्ट में पहले तीन पायदान खाली हैं।

ग्रीन एनर्जी के मामले में चीन और अमेरिका काफी पीछे

चौथे स्थान के साथ डेनमार्क टॉप पर रहा, उसके बाद क्रमशः नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम पांचवें और छठे स्थान पर रहे। पिछले साल की तुलना में यूके का प्रदर्शन इस बार सबसे बेहतर रहा। दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन को 55वीं रैंक हासिल हुई, जबकि दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक अमेरिका 57वें नंबर पर रहा। दुनिया में सबसे ज्यादा तेल उत्पादन करने वाले देश रिपोर्ट में सबसे नीचे रहे। रूस (64वें), संयुक्त अरब अमीरात (65वें), सऊदी अरब (66वें) और ईरान (67वें) सबसे नीचे रहा।

11 साल लग गए 100 डॉलर देने के लिए राजी करने में

साल 2009 में अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश 2020 से 2025 तक सालाना 100 अरब डॉलर देने को राजी हो गए थे। मगर ये पहली बार सिर्फ 2022 में ही शुरू हो पाया। COP29 बैठक में ये उम्मीद थी कि सम्मेलन में शामिल होने वाले करीब 200 देश साल 2025 के आगे के वर्षों के लिए एक नए वित्तीय लक्ष्य पर सहमत हो जाएंगे। मगर, ऐसा हो नहीं पाया।

भारत ने क्या दिया था संयुक्त राष्ट्र को सुझाव

संयुक्त राष्ट्र की, 2023 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाने के लिए हर साल 2.4 ट्रिलियन डॉलर निवेश की जरूरत है। वहीं, अरब देशों यानी सऊदी अरब, मिस्र ने संयुक्त राष्ट्र को प्रति वर्ष 1.1 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य सुझाया था। इसमें से 441 बिलियन डॉलर सीधे विकसित देशों से मिलने की बात कही गई थी। भारत, अफ़्रीकी देशों और छोटे द्वीप देशों ने भी कहा है कि प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक जुटाया जाना चाहिए।

अमीर देशों ने 1992 की बातचीत का दिया हवाला

1992 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत के बाद अमीर देशों की लिस्ट तैयार की गई थी, जिसमें उन्हें क्लाइमेट फाइनेंस करना था। यूरोपीय संघ और अमेरिका इसे पुराना करार देते हुए नई लिस्ट बनवाने पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि इस नई लिस्ट में चीन, कतर, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को शामिल करना चाहिए। हालांकि, चीन ने इस पर आपत्ति जताई है।

कोप-29 बाय-बाय, COP30 से ही उम्मीद

विश्व बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसे संस्थानों से 120 अरब डॉलर सालाना जुटाने की उम्मीद है। उम्मीद जताई जा रही है ब्राजील में अगले साल होने वाले COP30 में इसे लेकर एक सकारात्मक हल निकले। तब तक शायद अमेरिका और चीन को इस बात का अहसास हो जाए कि हथियारों पर पैसे ज्यादा खर्च करने से अच्छा है कि धरती को बचाया जाए।

क्या है ग्लोबल साउथ, जिसका लीडर बन सकता है भारत

ग्लोबल साउथ शब्द तीसरी दुनिया के ऐसे देशों से विकसित हुआ है, जो औपनिवेशिक और शीत युद्ध के बाद के दौर में गरीब, कम आय वाले, कम विकसित और विकासशील देशों के समूह रहे हैं। ग्लोबल साउथ में अब कुछ तेजी से विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं भी शामिल हैं, जैसे भारत, चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका। भारत जिसने 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है, उसे ग्लोबल साउथ से ग्लोबल नॉर्थ में अपने ट्रांजिशन के शुरुआती चरण में कहा जा सकता है। चीन के दबदबे को देखते हुए भारत इन देशों का अगुवा बन सकता है।

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

चंडीगढ़ ब्लास्ट मामले में पुलिस के हत्थे चढ़े 2 और बदमाश, मुठभेड़ में एक आरोपी को लगी गोली; अब तक चार गिरफ्तार

स्वर्णिम भारत न्यूज़ संवाददाता, चंडीगढ़। चंडीगढ़ ब्लास्ट मामले में पुलिस ने दो बदमाशों को और गिरफ्तार किया है। पुलिस ने हिसार में एक मुठभेड़ के दौरान इन आरोपियों को पकड़ा है। इनमें एक आरोपी को गोली भी लगी है। जानकारी के अनुसार, दोनों ही हिसार के रहने

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now