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नई दिल्ली: मणिपुर की धरती इन दिनों मानवता के सबसे काले अध्यायों में से एक को लिख रही है। जिरीबाम जिले में एक ही परिवार के छह निर्दोष सदस्यों की हत्या ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया है। ऑटोप्सी रिपोर्ट में सामने आई जानकारी इतनी भयावह है कि इसे सुनकर रूह कांप उठती है। मासूम बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, किसी को भी इस क्रूरता में नहीं बख्शा गया। गोली के निशान, शरीर पर गहरे जख्म, और सबसे दर्दनाक, आंखों का गायब होना - ये सब मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाते हैं जो मानवता को शर्मसार करती हैं। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक क्रूरतापूर्ण अत्याचार था, जो मानवीय मूल्यों को पूरी तरह से तार-तार कर देता है।
आठ साल की तेलन थजंगनबी के शरीर पर कई गोलियों के निशान थे और पेट में गंभीर चोटें आई थीं। 31 साल की तेलम थोईबी के सिर में गंभीर चोटें आई थीं, खोपड़ी की हड्डियां टूटी हुई थीं। बुधवार को महिला, बच्ची और शिशु की ऑटोप्सी रिपोर्ट सार्वजनिक की गई, इससे पहले परिवार के तीन अन्य सदस्यों की रिपोर्ट जारी की जा चुकी थी।
यह घटना मणिपुर में जारी जातीय हिंसा का एक और गहरा जख्म है। मेइती और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव अब हिंसा के ऐसे भयानक रूप में सामने आ रहा है, जिसने पूरे राज्य को आग में झोंक दिया है। सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, हजारों बेघर हो चुके हैं, और एक पूरा समाज डर और अनिश्चितता के साये में जी रहा है।
यह घटना सिर्फ मणिपुर की नहीं, बल्कि पूरे देश की त्रासदी है। यह हमें याद दिलाती है कि धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर की जाने वाली हिंसा कितनी खतरनाक हो सकती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने मतभेदों को भूलकर मानवता के लिए एकजुट होने की जरूरत है। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। साथ ही, हमें समाज में शांति और सद्भाव का माहौल बनाने के लिए भी काम करना होगा।
यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने आसपास हो रही घटनाओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए और किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को भी मानवता और सहिष्णुता के मूल्यों से अवगत कराना होगा। मणिपुर की यह त्रासदी हमें यह भी बताती है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
यह परिवार मेइती समुदाय का बताया जा रहा है और आरोप है कि कुकी उग्रवादियों ने उनका अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। सिलचर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई ऑटोप्सी के मुताबिक, 10 महीने के लैशराम लमंगनबा के शरीर पर काटने का घाव था, सिर अलग था और दोनों आंखें गायब थीं। 17 नवंबर को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ के बाद संदिग्ध कुकी उग्रवादियों ने मणिपुर के जिरीबाम जिले के बोरोबेकरा इलाके से तीन महिलाओं और तीन बच्चों का अपहरण कर लिया था। इसके कुछ दिनों के बाद उनके शव जिरीबाम जिले में जिरी नदी और असम के कछार में निकटवर्ती बराक नदी में पाए गए थे।आठ साल की तेलन थजंगनबी के शरीर पर कई गोलियों के निशान थे और पेट में गंभीर चोटें आई थीं। 31 साल की तेलम थोईबी के सिर में गंभीर चोटें आई थीं, खोपड़ी की हड्डियां टूटी हुई थीं। बुधवार को महिला, बच्ची और शिशु की ऑटोप्सी रिपोर्ट सार्वजनिक की गई, इससे पहले परिवार के तीन अन्य सदस्यों की रिपोर्ट जारी की जा चुकी थी।
यह घटना मणिपुर में जारी जातीय हिंसा का एक और गहरा जख्म है। मेइती और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव अब हिंसा के ऐसे भयानक रूप में सामने आ रहा है, जिसने पूरे राज्य को आग में झोंक दिया है। सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, हजारों बेघर हो चुके हैं, और एक पूरा समाज डर और अनिश्चितता के साये में जी रहा है।
यह घटना सिर्फ मणिपुर की नहीं, बल्कि पूरे देश की त्रासदी है। यह हमें याद दिलाती है कि धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर की जाने वाली हिंसा कितनी खतरनाक हो सकती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने मतभेदों को भूलकर मानवता के लिए एकजुट होने की जरूरत है। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। साथ ही, हमें समाज में शांति और सद्भाव का माहौल बनाने के लिए भी काम करना होगा।
यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने आसपास हो रही घटनाओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए और किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को भी मानवता और सहिष्णुता के मूल्यों से अवगत कराना होगा। मणिपुर की यह त्रासदी हमें यह भी बताती है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
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