फडणवीस-शिंदे के सधे बयान, अजित सेट और शरद सरेंडर; क्या घरवापसी करेंगे उद्धव ठाकरे?

Will Shiv Sena (UBT) Take U-turn: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद शुरुआती रस्साकशी के साथ-साथ बुधवार को तय हो गया कि मुख्यमंत्री भाजपा कोटे से होगा. देर शाम देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "हमारी महायुति में कभी भी एक-दूसरे के प्रति मतभ

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Will Shiv Sena (UBT) Take U-turn: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद शुरुआती रस्साकशी के साथ-साथ बुधवार को तय हो गया कि मुख्यमंत्री भाजपा कोटे से होगा. देर शाम देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "हमारी महायुति में कभी भी एक-दूसरे के प्रति मतभेद नहीं रहा. हमने हमेशा मिल-बैठकर निर्णय लिए हैं. हमने चुनाव से पहले कहा था कि चुनाव के बाद हम (मुख्यमंत्री पद के बारे में) सामूहिक रूप से निर्णय लेंगे. कुछ लोगों को शंका थी जिसे एकनाथ शिंदे जी ने आज स्पष्ट कर दिया है. जल्द ही हम अपने नेताओं से मिलेंगे और निर्णय लेंगे."

पीएम मोदी-अमित शाह का नाम लेकर शिंदे ने की सुलझी हुई बात

इसके पहले, ठाणे में अपने घर पर एक प्रेस कांफ्रेस आयोजित कर पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि वह अगले मुख्यमंत्री के नाम के लिए भाजपा नेतृत्व के फैसले का पूरी तरह से समर्थन करेंगे और इस प्रक्रिया में बाधा नहीं बनेंगे. 60 वर्षीय शिंदे ने चुनावी नतीजे के चार दिन बाद अपने पहले बयान में कहा कि मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भरोसा दिलाया है कि उनके उत्तराधिकारी के नाम पर भाजपा जो भी फैसला लेगी, मैं उसका पालन करूंगा.

अजित पवार ने सबसे पहले फडणवीस को दिया बिना शर्त समर्थन

दूसरी ओर, महायुति के तीसरे सहयोगी दल एनसीपी के प्रमुख अजित पवार ने नतीजे के बाद सबसे पहले भाजपा और देवेंद्र फडणवीस का मुख्यमंत्री पद के लिए बिना शर्त समर्थन का ऐलान कर दिया. उन्होंने सरकार में नंबर दो बने रहने के साथ ही फडणवीस के साथ गलबहियां कर अपनी स्थिति मौजूद कर ली. वहीं, महा विकास आघाड़ी की बात करें तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नतीजे को अप्रत्याशित बताते हुए आगे विश्लेषण किए जाने की बात कही थी.

ईवीएम के मुद्दे पर सियासी संघर्ष करेंगे शरद पवार और उद्धव ठाकरे

जबकि, एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने लगभग सरेंडर करते हुए 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारे और महिलाओं के लिए सरकार की योजना को महायुति की जीत की वजह बताई. हालांकि, उन्होंने ईवीएम पर भी संदेह जताते हुए आंदोलन की बात कही. शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी उनका साथ देने का फैसला किया. शिवसेना (UBT) की बैठक में उन्होंने हारे हुए उम्मीदवारों को VVPAT के रीकाउंटिंग की याचिका दायर करने को कहा है.

उद्धव के हिंदुत्व से जुड़े बयानों में आगे की रणनीति के कई स्पष्ट संकेत

उद्धव ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) और हिंदुत्व को लेकर अपने बयानों में आगे की रणनीति के कुछ और भी संकेत दिए हैं. इसके बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या उनके पास कट्टर हिंदुत्व की राजनीति में घरवापसी की संभावना बची है या नहीं? क्योंकि 2019 से लेकर 2024 के बीच पांच साल में ही उनकी राजनीति बड़े खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है. हालांकि, अविभाजित शिवसेना या ठाकरे परिवार का गढ़ समझी जाने वाली मुंबई में बीएमसी चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी है. उद्धव ठाकरे के लिए खुद को साबित करने का यह बड़ा मौका हो सकता है.

उद्धव ठाकरे के लिए हिंदुत्व की राजनीति में घरवापसी की संभावना बची?

बीएमसी चुनाव के मैदान में संघर्ष उद्धव ठाकरे के लिए होम टर्फ पर मैच जैसा होगा. क्योंकि उन्होंने इतनी बुरी परिस्थिति में भी मुंबई में अपना गढ़ लगभग बचा लिया है. इसलिए माना जा सकता है कि उनके लिए फिलहाल रास्ता पूरी तरह बंद नहीं हुआ है. हालांकि, एकनाथ शिंदे के सर्वाइवल ने उनके लिए लड़ाई को बेहद मुश्किल जरूर बना दिया है. क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बना लेने के उनके कदम को शिवसेना की मूल विचारधारा यानी हिंदुत्व से समझौता के तौर पर प्रचारित किया गया.

हिंदुत्व की राजनीति में उद्धव ठाकरे के लिए हमेशा है घरवापसी का मौका

हिंदुत्व की राजनीति में घरवापसी का मौका हमेशा बना रहता है. उद्धव ठाकरे के पुराने राजनीतिक कदम को हिंदुत्व से दूर जाने की तरह प्रचारित किए जाने के बाद भी उद्धव ठाकरे हमेशा इस मुद्दे पर अपना दावा बनाए रखने की कोशिश में जुटे रहते हैं. हालांकि, शिंदे के अलावा उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे भी भाजपा के साथ होकर उन पर हिंदुत्व से समझौता का आरोप लगाते हैं. इसलिए बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे करो या मरो के रूप में एक बार फिर पुराना ओके-टेस्टेड फॉर्मूला यानी हिंदुत्व की पुरानी पिच पर लौट सकते हैं.

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उद्धव ठाकरे के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है हिंदुत्व की राह पर यू-टर्न ?

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए हिंदुत्व की राह पर राजनीतिक यू-टर्न फायदेमंद साबित हो सकता है. क्योंकि इससे न सिर्फ उन पर लगे राजनीतिक आरोप खत्म हो जाएंगे, बल्कि पुराने शिवसैनिक भी उनके पास लौट आएंगे. बदली हुई परिस्थिति में एकनाथ शिंदे भी सियासी तौर पर असहज हो सकते हैं. वहीं, भाजपा पर भी दबाव बढ़ जाएगा. इससे अलग, राजनीति पार्टी का दर्जा खोने के कगार पर खड़ी मनसे के नेता राज ठाकरे भी शांत हो सकते हैं.

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मौजूदा उदारवादी छवि से निकलने के लिए उद्धव के सामने क्या है रास्ता ?

हालांकि, उद्धव ठाकरे के लिए मौजूदा उदारवादी छवि से बाहर निकलना फौरी तौर पर मुश्किल हो सकता है, लेकिन इस मामले में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महा विकास आघाड़ी द्वारा उन्हें सीएम फेस नहीं बनाया जाना, वीर सावरकर पर कांग्रेस से मतभेद, शरद पवार और कांग्रेस की खुद पतली सियासी हालत और नेताओं की महत्वाकांक्षा का टकराव मददगार हो सकता है. साथ ही इस यू-टर्न के लिए उन्हें अपने शिवसैनिकों के बीच जाकर सहानुभूति बटोरने के लिए माफी मांगने जैसा दांव भी चलना पड़ सकता है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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