Jharkhand Chunav Result 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व में इंडिया (I.N.D.I.A) गठबंधन एक बार फिर सत्ता में वापसी कर रही है और हेमंत सोरेन (Hemant Soren) कब्जा बरकरार रखने में कामयाब रहे है. शुरुआती रुझानों में बढ़त बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) लगातार पिछड़ती गई और एनडीए गठबंधन बहुमत के आंकड़े से काफी दूर रह गया. लेकिन, ऐसी क्या वजह है कि झारखंड में बीजेपी की सियासी पकड़ एक बार फिर कमजोर होती नजर आ रही है और किन वजहों से बीजेपी हेमंत सोरेन का किला नहीं हिला पाई?
1. हेमंत सोरेन के लिए सहानुभूति
चुनाव से कुछ महीने पहले जेल से बाहर आए हेमंत सोरेन के लिए सहावुभूति ने काम किया और बीजेपी को इसका झटका लगा. हेमंत सोरेन को 8.36 एकड़ जमीन के अवैध कब्जे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद बीजेपी को उनके खिलाफ एक मजबूत हथियार मिल गया और पार्टी लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हमला करती रही. लेकिन, यह रणनीति उल्टी पड़ गई और जब सोरेन जेल में थे तो उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को लोगों तक पहुंचने के लिए पीड़ित कार्ड खेलने के लिए तैनात किया. अब चुनावी नतीजों से लगता है कि वो इस रणनीति में सफल रहे हैं.
2. बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा नहीं आया काम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर झारखंड भाजपा के सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा तक सभी पार्टी प्रचारकों ने झारखंड विधानसभा चुनाव में 'बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा' पूरी ताकत से उठाया. भाजपा ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए दावा किया कि अगर वह सत्ता में आई तो वह बांग्लादेशी मुसलमानों को बांग्लादेश भेज देगी. चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के शीर्ष नेताओं ने दावा किया कि झारखंड के कुछ हिस्से खासकर संथाल परगना क्षेत्र 'मिनी बांग्लादेश' बन रहे हैं. इस मुद्दे ने भाजपा को तब झटका दिया, जब सत्तारूढ़ गठबंधन ने मतदाताओं को यह विश्वास दिलाया कि भाजपा 'फूट डालो और राज करो' के अनुरूप सांप्रदायिक एजेंडा लागू करने की कोशिश कर रही है.
3. भाजपा में सीएम चेहरे की कमी
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने झारखंड चुना के लिए कोई मुख्यमंत्री चेहरा पेश नहीं किया, जो सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ विपक्षी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ. जबकि, दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन की तरफ से यह साफ था कि उनका सीएम चेहरा हेमंत सोरेन ही हैं. भाजपा में सीएम चेहरे की कमी के कारण मतदाताओं में भ्रम था कि एनडीए का नेतृत्व कौन करेगा.
4. ईडी और सीबीआई छापे
केंद्रीय जांच एजेंसियां (ईडी और सीबीआई ) सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेताओं पर छापे मारने और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए चर्चा में रही हैं, जिससे इंडिया गठबंधन को यह दावा करने का मौका मिला कि ये कार्रवाई राजनीति से प्रेरित और पक्षपातपूर्ण हैं. भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं यह मतदाताओं के बीच अच्छा नहीं गया.
5. दलबदलू नेताओं ने भी कराया नुकसान
हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन से लेकर उनके करीबी चंपई सोरेन भाजपा ने अपने पाले में खींचा. लेकिन, दलबदलुओं के साथ राजनीतिक का फायदा बीजेपी को नहीं मिल पाया और चुनावी लाभ कमाने में विफल रही. दोपहर 2 बजे तक 9 राउंड की गिनती के बाद सरायकेला से चंपाई सोरेन तो आगे चल रहे हैं, लेकिन, जामताड़ा से सीता सोरेन करीब 36 हजार वोटों से पीछे चल रही हैं.
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