288 सीटें, 6 रिजन, सबका अलग-अलग जाति समीकरण, समझिए महाराष्ट्र के हर क्षेत्र का सियासी मिजाज

लेखक: सार्थक बागची और विग्नेश कार्तिक केआर
9.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, महाराष्ट्र को अक्सर और सही रूप से, कई 'राष्ट्रों' का राज्य कहा जाता है। इसके 6 उप-क्षेत्रों में राजनीतिक गतिशीलता काफी भिन्न है: खानदेश/उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा,

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लेखक: सार्थक बागची और विग्नेश कार्तिक केआर
9.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, महाराष्ट्र को अक्सर और सही रूप से, कई 'राष्ट्रों' का राज्य कहा जाता है। इसके 6 उप-क्षेत्रों में राजनीतिक गतिशीलता काफी भिन्न है: खानदेश/उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण और मुंबई-ठाणे। प्रत्येक की एक अनूठी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां और राजनीतिक पेचीदगियां हैं जो सामूहिक रूप से राज्य के शासन को आकार देती हैं।
गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटा खानदेश/उत्तर महाराष्ट्र घने जंगलों से घिरा हुआ है, जहां आदिवासी और ओबीसी की अच्छी खासी आबादी है। लेउवा पाटिल समुदाय प्रभावशाली है, और एकनाथ खडसे जैसे पार्टी के दिग्गजों के नेतृत्व में, ओबीसी के बीच बीजेपी की पकड़ मजबूत है। अनुसूचित जाति और आदिवासी क्षेत्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, कांग्रेस नंदुरबार के गावित जैसे प्रमुख परिवारों के माध्यम से आदिवासी राजनीति पर हावी रही, लेकिन बीजेपी ने हीना गावित जैसे गावित परिवार के सदस्यों को शामिल करके इसमें बढ़त हासिल की है। खानदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के कारण कृषि, किसानों के मुद्दे सर्वोपरि हैं। 2018 का 'किसान लांग मार्च', जिसमें हजारों किसानों ने उचित मुआवजे, ऋण माफी और वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि अधिकार की मांग को लेकर मुंबई तक मार्च किया, ने क्षेत्र की कृषि चुनौतियों को उजागर किया। माली समुदाय, विशेष रूप से नासिक के आसपास, एक और प्रभावशाली समूह है। एनसीपी के सीनियर नेता छगन भुजबल एक ओबीसी दिग्गज हैं। बड़े नेताओं शरद पवार और अजीत पवार के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाए रखते हुए, मराठा आधिपत्य के खिलाफ भुजबल का आक्राम रुख, क्षेत्र के नाजुक जाति समीकरण और पेचिंदगियों को बयां करता है। परंपरागत रूप से ओबीसी समर्थन का लाभ उठाने वाली बीजेपी को इन प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो क्षेत्र के भीतर जाति समूहों की गैर-एकात्मक प्रकृति को उजागर करता है।

विदर्भ में कृषि संकट गंभीर बना हुआ है। किसानों की आत्महत्याएं दशकों से बिना समाधान के जारी हैं। यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से विविध है, जो वन-समृद्ध पूर्वी विदर्भ (गोंदिया-भंडारा) और सूखा-ग्रस्त पश्चिम विदर्भ (यवतमाल-अमरावती-अकोला-वर्धा) के बीच विभाजित है। राजनीतिक रूप से, विदर्भ का 1960 से लगातार राज्य मंत्रिमंडलों में प्रतिनिधित्व रहा है। इसने वसंतराव नाइक और देवेंद्र फडणवीस जैसे प्रभावशाली वरिष्ठ नेताओं को जन्म दिया है, जो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले महाराष्ट्र के एकमात्र दो मुख्यमंत्री हैं।

परंपरागत रूप से, विदर्भ क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है, क्योंकि पार्टी में दलित, मुस्लिम और कुनबी लामबंदी है। लेकिन फडणवीस और राज्य इकाई के प्रमुख चंद्रकांत बावनकुले को विदर्भ में बीजेपी के उत्थान के रूप में देखा जाता है। मराठा कुनबी समुदाय प्रमुख है, और दलितों की एक बड़ी आबादी, विशेष रूप से सामाजिक-आर्थिक रूप से उन्नत नव-बौद्ध (बौद्ध) दलित, काफी राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। यह प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अघाड़ी का भी घर है, जो इस क्षेत्र की राजनीतिक जटिलता को बढ़ाता है, जो विशेष रूप से अकोला के आसपास सत्ता के वैकल्पिक केंद्रों का संकेत देता है।

पश्चिमी महाराष्ट्र कृषि की दृष्टि से सबसे समृद्ध है। यह भारत के कुल चीनी उत्पादन में 32% यानी करीब एक तिहाई का योगदान देता है। मुंबई से निकटता और व्यापक सिंचाई नेटवर्क इसकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हैं। ऐतिहासिक रूप से छत्रपति शिवाजी और बाद में पेशवाओं के अधीन मराठा साम्राज्य के गढ़ पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा नेताओं का वर्चस्व है जो चीनी और डेयरी सहकारी समितियों और संरक्षण के गहरे नेटवर्क को नियंत्रित करते हैं। हाल के वर्षों में चीनी सहकारी समितियों में उत्पादकता में गिरावट जैसे आर्थिक चुनौतियों के बावजूद कांग्रेस और एनसीपी के मराठा दिग्गजों ने अपना गढ़ बनाए रखा है, और 2014 और 2019 की चुनावी लहरों के दौरान भी भाजपा के विस्तार का विरोध किया है। मराठा आबादी का लगभग 45% हिस्सा बनाते हैं, जबकि धनगर समुदाय एसटी का दर्जा पाने की अपनी मांग में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाता है। पुणे और औरंगाबाद के आसपास शहरीकरण ने अर्थव्यवस्था में विविधता ला दी है, लेकिन ग्रामीण राजनीति सहकारी संस्थाओं से काफी प्रभावित है।

मराठवाड़ा में, हैदराबाद के निजाम के साथ ऐतिहासिक संबंधों ने इसकी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को आकार दिया है। यह क्षेत्र कृषि संकट का प्रतीक है, जो पिछले दो दशकों से गंभीर सूखे से पीड़ित है। जबकि मराठवाड़ा ने 1970-80 के दशक में कांग्रेस के प्रभुत्व के दौरान प्रमुख मराठा दिग्गजों को जन्म दिया। 1990 के दशक में स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बदौलत बीजेपी ने इस क्षेत्र में अपनी पैंठ बनाई। वह वंजारी समुदाय से ताल्लुक रखते थे।

मुंडे ने अपने समुदाय को सशक्त बनाने के लिए सहकारी मॉडल को दोहराया, जिससे पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा प्रभुत्व जैसा प्रभाव बढ़ा। उनकी विरासत बेटी पंकजा और भतीजे धनंजय के माध्यम से जारी है, जो वंजारी और मराठों के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष को उजागर करता है। जालना से मनोज जरांगे-पाटिल के नेतृत्व में हाल ही में मराठा आरक्षण आंदोलन ने इन जाति-आधारित तनावों को तेज कर दिया है।

मुंबई-ठाणे क्षेत्र एक अनोखे राजनीतिक मिजाज के तहत संचालित होता है, जो महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों से बिल्कुल अलग है। भाजपा ने 2014 से शिवसेना के पारंपरिक गढ़ों पर अतिक्रमण किया है। शिवसेना के एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में गुटों में विभाजन के कारण यह मुकाबला और जटिल हो गया है। सीएम शिंदे ने जिस तरह दिग्गज नेता रहे आनंद दिघे की विरासत का हवाला देते हुए ठाणे पर अपना प्रभाव मजबूत किया, यह चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है। पर्याप्त मुस्लिम और गैर-बौद्ध दलित आबादी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है- क्षेत्र की राजनीति सांप्रदायिक और क्षेत्रीय पहचानों का एक अंतर्संबंध है।

कोंकण में, कुनबी समुदाय प्रमुख है, शिवसेना को ऐतिहासिक माइग्रेशन पैटर्न के कारण समर्थन प्राप्त है, जो कोंकण श्रमिकों को मुंबई-ठाणे से जोड़ता है। द पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया का भी यहां कुछ प्रभाव है, जो अतीत में उनके मजबूत लामबंदी आंदोलनों के आधार पर है। एक महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी नारायण राणे और उनके बेटों नीलेश और नितेश जैसे भाजपा के दिग्गजों द्वारा ध्रुवीकरण की रणनीति का केंद्र बिंदु रही है। पर्यावरण संबंधी चिंताएं और विकास के मुद्दे कोंकण की राजनीति को और जटिल बनाते हैं। इसके तटरेखा के साथ औद्योगिकीकरण और इन्फ्रा परियोजनाओं से संबंधित चुनौतियां हैं। ऐसी कोई भी जातिगत गतिशीलता, विरासत की चुनौती, आर्थिक निर्भरता या क्षेत्रीय आकांक्षा नहीं है जो महाराष्ट्र में अभिव्यक्ति नहीं पाती है - विविध उप-क्षेत्रीय पहचान और हितों और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों की एक चकरघिन्नी। कुल मिलाकर देखें तो एक जटिल बहुआयामी राजनीतिक वातावरण।

(बागची अहमदाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति और लोकतंत्र पढ़ाते हैं। कार्तिक केआर KITLV-Leiden में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च फेलो हैं)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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