अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया. न्यायालय के बहुमत वाले फैसले में कहा गया है कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर फैसला किया जाना चाहिए. एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के लिए मानदंड तय किए गए. SC की सात जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को चार अलग-अलग फैसले सुनाए. संविधान पीठ की अगुआई कर रहे भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस संबंध में चार अलग-अलग मत थे जिनमें तीन असहमति वाले फैसले भी शामिल हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने अपने और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा है.
CJI: केवल अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया जाना ही अल्पसंख्यक संस्थान होने के लिए काफी नहीं है.
CJI: अगर कोई संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से स्थापित किया गया है लेकिन उसका संचालन अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से नहीं हो रहा है तो ऐसे संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता.
CJI: अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जा दिए जाने के लिए ज़रूरी है कि इसकी स्थापना और प्रशासन दोनों अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ में हो.
आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, ये 3 जजों की बेंच यह तय करेगी. आज कोर्ट ने बहुमत ने अज़ीज़ बाशा फैसला पलट दिया है.
जनवरी 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले लिखे हैं.
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