बेटे ने देश के लिए दी शहादत, मेडल के बाद 10 लाख की सम्मान राशि के लिए 20 साल तक सिस्टम से जूझती रही बूढ़ी मां

लखनऊ: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। सुनने में यह पंक्तियां शरीर में वीर रस का संचार करती हैं। लेकिन कई बार असलियत का सामना करते हुए सिस्टम की खामी उजागर हो जाती है। यकीन ना हो रहा हो तो 77

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लखनऊ: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। सुनने में यह पंक्तियां शरीर में वीर रस का संचार करती हैं। लेकिन कई बार असलियत का सामना करते हुए सिस्टम की खामी उजागर हो जाती है। यकीन ना हो रहा हो तो 77 साल की बूढ़ी महिला सावित्री सक्सेना का किस्सा भी सुन लीजिए। जब इनका होनहार बेटा देश की सेवा के लिए फौज में भर्ती हुआ तो सीना गर्व से फूल गया होगा। बेटा शहीद भी हो गया तो आंखों में आंसू थे लेकिन सुकून इस बात का रहा होगा कि बेटे की जवानी देश के नाम पर कुर्बान हो गई। लेकिन इसके बाद के 20 साल किस कष्ट और चुनौती में गुजरे, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है।
यह किस्सा है शहीद विवेक सक्सेना का। एसएसबी में सहायक कमांडेंट विवेक 2003 में मणिपुर में आतंकियों से मोर्चा लेते हुए शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने विवेक के पिता के हाथों में मेडल सौंपा था। लेकिन फिर परिवार को जो सम्मान राशि मिलनी थी, वो अटक गई।

अमर शहीद विवेक सक्सेना के पिता भी एयरफोर्स से रिटायर हुए थे। वह फ्लाइट लेफ्टिनेंट की पोस्ट से सेवानिवृत्त हुए थे। बेटे की शहादत के बाद परिजन को 10 लाख रुपये की सम्मान राशि मिलनी थी। लेकिन कुछ समय तक इंतजार के बाद फिर सरकारी दफ्तर और जनप्रतिनिधियों का चक्कर लगाना शुरू किया। और यह इंतजार काफी लंबा खिंच गया।

बेटे की सम्मान राशि के लिए सिस्टम से लड़ते-लड़ते पिता की भी मृत्यु हो गई। फिर मोर्चा संभाला उनकी पत्नी यानि शहीद विवेक की मां सावित्री सक्सेना ने। लखनऊ के सरोजनी नगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत कानपुर रोड स्थित दरोगा खेड़ा में बने अमर शहीद विवेक सक्सेना की माता सावित्री सक्सेना कई बार धरने पर भी बैठीं। लेकिन किसी अधिकारी के कानों पर जूं नहीं रेंगी।

पति और बेटे के फौज में होने का असर सावित्री के जज्बे में भी दिखा। स्थानीय विधायक, सांसद से लेकर मुख्यमंत्री तक के सिफारिश का दौर चलता रहा। बुजुर्ग सावित्री ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के चक्कर लगाए। हालांकि उन्होंने लड़ना नहीं छोड़ा। बीच में मूर्ति के पास अनिश्चितकालीन धरना भी शुरू किया था।

उनका साफ कहना था कि शहीद परिवार को न्याय न देने वालों के खिलाफ धरने पर बैठी रहूंगी, चाहे हमारी जान ही ना चली जाए। सावित्री सक्सेना का बड़ा ऐलान मरते दम तक सम्मान के लिए लड़ूंगी। मैं देश के सैनिक की पत्नी हूं और मां भी पूरा परिवार देश सेवा में समर्पित है। हमें इंसाफ चाहिए। अब जाकर सरकारी कार्यवाही पूरी होने के बाद 10 लाख की राशि शहीद की मां के खाते में आए।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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