स्वामीनॉमिक्स- खालिस्तानियों से निपटने के लिए भारत को क्यों अमेरिका या इजरायल की रणनीति नहीं अपनानी चाहिए?

स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर
राजनीतिक हत्याएं ज्यादा पॉप्युलर हो सकती हैं। मोसाद की इजरायल में प्रशंसा की जाती है और भारत

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स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर
राजनीतिक हत्याएं ज्यादा पॉप्युलर हो सकती हैं। मोसाद की इजरायल में प्रशंसा की जाती है और भारत में भी राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों को समाप्त करने में वैसा ही कदम उठाने की बात कही जाती है। पिछले हफ्ते, इजरायल ने याह्या सिनवार को मार गिराया, जो 7 अक्टूबर को हमास अटैक का मास्टरमाइंड था। यह हमास के पॉलिटिकल हेड इस्माइल हानिया और लेबनान में हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह सहित हुई अन्य हत्याओं की लिस्ट में सबसे नया था।

'हत्याओं में लोग मरते है, विचार नहीं'

ज्यादातर इजरायली इन हत्याओं को सिर्फ बदला मानकर खुश होते हैं। लेकिन एक अनुभवी इजरायली राजनयिक एलन पिंकास ने 'द वाशिंगटन पोस्ट' से कहा, 'इजरायलियों के लिए सिनवार बुराई का अवतार है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। उसे मारने से हमास का खात्मा, विनाश या उसके एक्शन में कोई कमी नहीं आएगी। न ही यह जीत का प्रतिनिधित्व करेगा। आप व्यक्तियों की हत्या कर सकते हैं, लेकिन किसी विचार की नहीं, चाहे आप उस विचार को पसंद करें या न करें।'

लादेन मारा गया तो ISIS ने बटोरी चर्चा

ये हत्याएं केवल प्रतिशोध के शाश्वत चक्र को आगे बढ़ाने के लिए नए शहीदों को जन्म देती हैं। ओसामा बिन लादेन के अल-कायदा जैसे सीमित छोटे ग्रुप्स के मामले में एक मर्डर से मामला बंद हो सकता है। हालांकि, इससे जुड़े विचार ISIS के तौर पर पुनर्जन्म ले चुका है। हमास और हिजबुल्लाह के लाखों समर्थक ऐसे विचार के लिए समर्पित हैं जिसे वे पवित्र मानते हैं। उनके नेताओं को मारने से वह विचार नहीं मरेगा। इसमें भारत के लिए सबक हैं। भारत खालिस्तान के विचार से घृणा करता है, लेकिन यह सिखों के एक वर्ग को आकर्षित करता है, विशेष रूप से प्रवासी भारतीयों में।
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खालिस्तान के मुद्दे पर क्या हो रुख

खालिस्तान के लिए राजनीतिक और वित्तीय समर्थन कनाडाई सिखों से उदारतापूर्वक आया है। भारत लंबे समय से 26 कनाडाई लोगों के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है, जिन्हें वह खालिस्तानी आतंकवाद से जुड़ा मानता है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। पश्चिमी लोकतंत्रों में अलगाव की मांग करना वैध राजनीति है, जबकि भारत में अलगाव को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। कनाडा में एक अलगाववादी पार्टी क्यूबेकॉइस है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताकर प्रतिबंधित करने के बजाय, कनाडा इसे अलगाव के लिए अभियान चलाने की अनुमति देता है। स्पेन के कैटेलोनिया प्रांत में एक अलगाववादी पार्टी है जो चुनाव लड़ती है और जीतती है।

फ्रांस ने कोर्सिका में एक अलगाववादी पार्टी को लंबे समय तक बर्दाश्त किया है। ब्रिटेन ने औपचारिक रूप से स्कॉटलैंड और वेल्स को अलग होने की अनुमति दी है, अगर वे ऐसा करना चाहें तो। यही नहीं स्कॉटलैंड 2014 के जनमत संग्रह में इसके करीब पहुंच गया था। एनडीए सरकार का मानना है कि पिछली कांग्रेस सरकारें कश्मीर और पंजाब में आतंकवादियों के लिए विदेशी समर्थन के मामले में बहुत नरम थीं। कई भारतीय भी लंबे समय से मोसाद की दुनियाभर में दुश्मनों पर हमला करने की क्षमता की प्रशंसा करते रहे हैं और चाहते हैं कि भारत भी उसी राह पर चले।

निज्जर की हत्या में कनाडा नहीं दे सका सबूत

कनाडा की पुलिस का दावा है कि उसके पास 'निर्णायक' सबूत हैं जो दिखाते हैं कि भारतीय राजनयिकों ने खालिस्तान के कनाडाई समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के साथ मिलकर काम किया था। एक शीर्ष अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ, जिन्होंने पिछली सरकारों में काम किया है, उन्होंने इस कॉलमिस्ट को बताया कि कनाडा ने भारतीय और अमेरिकी सरकारों के साथ फोन और टेक्स्ट इंटरसेप्ट साझा किए हैं जो मामले को पुख्ता करते हैं। यह सब दावों और काउंटर क्लेम के दायरे में आता है। भारत का कहना है कि कनाडा ने कोई सबूत नहीं दिया है। जस्टिन ट्रूडो की गवाही का हवाला देते हुए कहा कि कनाडा के पास कोई 'ठोस सबूत' नहीं हैं।

विकास यादव पर एक्शन में अमेरिका का सपोर्ट

हालांकि, कनाडा एक अन्य मामले का इस्तेमाल कर सकता है, जो अमेरिकी अदालत के दस्तावेजों में पूर्व रॉ एजेंट विकास यादव के बारे में है। उस पर आरोप है कि एक खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने के लिए एक हिटमैन को किराए पर लेने के लिए निखिल गुप्ता से पूछा था। यह साजिश हास्यास्पद रूप से बेतुकी लगती है। इस काम के लिए जिसे कॉन्ट्रैक्ट मिला वो कथित हिटमैन एक अमेरिकी खुफिया अधिकारी निकला। भारत ने विकास यादव को बर्खास्त कर दिया है और अमेरिकी जांच और कार्रवाई में सहयोग कर रहा है।

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अमेरिका खुद रहा कार्रवाई में फेल

हालांकि, सरकार ने विदेश में हत्या को लेकर किसी को भी काम पर रखने से इनकार किया है, भारत का सोशल मीडिया दुश्मनों को खत्म करने के लिए भारी सपोर्ट दिखाता है। अमेरिका ने क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो की कई बार हत्या करने की कोशिश की और इस काम के लिए अमेरिकी माफिया से हिटमैन को काम पर रखा। कई भारतीयों को लगता है कि भारत अब एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है, उसे भी वही करना चाहिए जो अमेरिका और इजरायल लंबे समय से करते आ रहे हैं। विफल नीति के रूप में उजागर की गई पॉलिसी का पालन क्यों करें? कास्त्रो को मारना मुश्किल साबित हुआ और बार-बार अमेरिका विफल रहा। अगर वह मारा भी जाता, तो क्यूबा का साम्यवाद खत्म नहीं होता।

इजरायली एजेंसी के पूर्व प्रमुखों ने क्या कहा

हत्याएं खून की प्यास को शांत करती हैं, लेकिन हत्याओं और जवाबी मर्डर के दुष्चक्र को और तेज करती हैं। हॉलीवुड निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म 'म्यूनिख' में मोसाद द्वारा अरब आतंकवादियों की हत्या को दिखाया गया था, जिन्होंने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में 11 इजरायली एथलीटों को मार डाला था। फिल्म जीत की भावना के बिना समाप्त हुई, केवल इस बात का एहसास हुआ कि हत्याएं और अधिक हिंसा को बढ़ावा देंगी। एक अन्य पुरस्कार विजेता डॉक्यूमेंट्री, 'द गेटकीपर्स' ने इजरायल की खुफिया एजेंसी शिन बेट के पूर्व प्रमुखों का इंटरव्यू लिया। हर पूर्व प्रमुख ने कहा कि हत्याएं और दमन स्थायी शांति नहीं ला सकते, केवल राजनीतिक बातचीत ही ला सकती है।



भारत के लिए क्या है सबक

विदेशों में खालिस्तानियों को खत्म करने की कोशिश करना एक बुरा विचार है। ऐसा नैतिक रूप से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक कारणों से भी है। भले ही ऐसी हत्याएं सफल हों, लेकिन वे नए शहीदों को क्रिएट करेंगी। इसके अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। खालिस्तान की मांग का मुकाबला सिखों को यह विश्वास दिलाकर किया जाना चाहिए कि भारत एक ऐसी जगह है जहां उनके साथ उचित व्यवहार किया जाएगा और वे समृद्ध हो सकते हैं। खालिस्तान नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की हत्या से खालिस्तान का सपना खत्म नहीं हुआ। विदेश में छोटे खालिस्तानियों की हत्या से भी यह सपना खत्म नहीं हो सकता। कनाडा या अमेरिका से नैतिक उपदेशों को भूल जाइए। इसके बजाय शिन बेट के पूर्व प्रमुखों की बातों पर ध्यान दीजिए। लोगों के दिलों और दिमाग की लड़ाई हत्या करके नहीं जीती जा सकती।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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