एसिड कंडोम, सनग्लास केस बम... मिस्र में मोसाद का वह नाकाम ऑपरेशन, हुई थी अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती

तेल अवीव: इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के कारनामों की चर्चा आम बात है। मोसाद ने ऐसे-ऐसे ऑपरेशन किए हैं, जो अद्वितीय हैं। मोसाद ने विदेशों में इजरायल के दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाया है, जिसे जान लोग हैरान हो जाते हैं। हाल में ही मोसाद ने लेबनान में

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तेल अवीव: इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के कारनामों की चर्चा आम बात है। मोसाद ने ऐसे-ऐसे ऑपरेशन किए हैं, जो अद्वितीय हैं। मोसाद ने विदेशों में इजरायल के दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाया है, जिसे जान लोग हैरान हो जाते हैं। हाल में ही मोसाद ने लेबनान में हिजबुल्लाह के पेजर और वॉकी टॉकी में विस्फोट कर तहलका मचा दिया है। लोग मोसाद की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे। लेकिन, ऐसा नहीं है कि मोसाद के हर ऑपरेशन सफल हुए हैं। कई बार ऐसे भी मौके आए हैं, जब मोसाद को मुंह की खानी पड़ी है। पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले ने मोसाद की नाक कटाकर रख दी थी। हालांकि, यह पहली बार नहीं था, जब मोसाद को ऐसी बेइज्जती झेलनी पड़ी थी। ऐसे में जानें मोसाद के एक ऐसे ही ऑपरेशन के बारे में जिसने पूरी दुनिया में इजरायल की बेइज्जती करवा दी थी।

मोसाद के सामने खुद को साबित करने की थी चुनौती


साल था 1954 का। इजरायली प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन अभी-अभी रिटायर हुए थे। उनकी जगह इजरायल की कमान मोशे शारेट के हाथों में आ गई थी। शारेट महत्वकांक्षी थे लेकिन वह रक्षा मंत्री पिनहास लावोन पर अपना अधिकार नहीं जमा पाए थे। पिनहास लावोन इंडस्ट्री टेक्टिस के उस्ताद थे। हालांकि सैन्य पेचीदगियां अलग मामला था। इस दौरान रक्षा मंत्रालय में दो और महत्वकांक्षी व्यक्ति आए: चीफ ऑफ स्टाफ, मोशे दयान और डायरेक्टर शिमोन पेरेस। दयान और पेरेस अपनी छाप छोड़ने के लिए बेताब थे और नए प्रधानमंत्री की तुलना में हर बात पर बेन-गुरियन से परामर्श करने के लिए पहुंच जाते थे। उस वक्त इजरायल में एक और खुफिया एजेंसी 'अमन' सरकार के लिए जासूसी करती थी। लावोन ने रक्षा मंत्री रहते हुए इजरायल की दूसरी खुफिया एजेंसी मोसाद के पर कतर दिए थे। इजरायल ने मूल रूप से यह निर्धारित किया था कि दुश्मन के इलाके में सभी विशेष अभियानों में मोसाद को शामिल होना होगा, लेकिन लावोन ने इस व्यवस्था को खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने मोसाद की जगह अमन को ज्यादा प्राथमिकता दी। ऐसे में मोसाद के सामने खुद को साबित करने की चुनौती आ गई। लेकिन मोसाद ने जो किया, वह उसके लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया।

मिस्र में कर्नल नासिर के खिलाफ मोसाद ने शुरू किया था ऑपरेशन


मिस्र में जब राजा फारूक के शासन को उखाड़ फेंका गया, तब पूरे देश में जबरदस्त हलचल मची हुई थी। उस समय मिस्र की सत्ता में एक नया नाम उभरा, वह था गमाल अब्देल नासिर का। नासिर शुरू से ही खुद को अरब जगत का सबसे बड़ा नेता बनाना चाहते थे। उनकी पहली प्राथमिकता स्वेज नहर पर नियंत्रण प्राप्त करना था और वहां मौजूद ब्रिटिश फोर्स से छुटकारा पाना था। उस समय स्वेज पर एक एंग्लो-फ़्रेंच कंपनी का नियंत्रण था। कर्नल नासिर के एजेंडे का मतलब इजरायल के लिए बुरी खबर थी। स्वेज नहर से ब्रिटिशों के बाहर निकलने से सिनाई पर संभावित मिस्र के हमले का रास्ता खुल जाता। इजरायल उस समय एक नया देश था, जो न तो मिस्र की आक्रामकता का सामना कर सकता था, और ना ही अरब देशों की कड़ी नाकाबंदी से निपट सकता था।

मिस्र को लेकर क्यों टेंशन में था इजरायल


मिस्र में कर्नल नासिर के प्रति पश्चिमी देशों का रवैया बहुत नरम था। इससे इजरायल और ज्यादा हताश हो रहा था। ऐसे में 1954 की गर्मियों में इजरायली खुफिया एजेंसी अमन को स्वेज नहर के पास मौजूद ठिकानों को खाली करने की ब्रिटिशों की योजना का पता चला। इस पर इजरायल में मिस्र के खिलाफ कुछ एक्शन की मांग उठने लगी। हालांकि, इसके बाद जो इजरायल ने किया वह उसके लिए शर्मिंदगी की वजह बन गई। इजरायल ने मिस्र के भीतर एक आतंकवादी नेटवर्क स्थापित करने की योजना बनाई, जो अरब होने का दिखावा करता था। लक्ष्य ब्रिटिश और अमेरिकी थे। काहिरा में ब्रिटिश काउंसिल और अमेरिकी सूचना केंद्र दोनों पर हमला किया जाना था, जिसके लिए, इजरायलियों को उम्मीद थी, मिस्र को दोषी ठहराया जाएगा। उन्हें उम्मीद थी कि कर्नल नासिर का तिलिस्म टूट जाएगा और पश्चिमी देश उनके शासन पर शक करने लगेंगे। लेकिन, हुआ इसका उल्टा।

मोसाद का 'ऑपरेशन सुज़ाना'


इजरायल ने मिस्र को अस्थिर करने के लिए अपने सबसे बड़े एजेंट कर्नल मोर्दकै बेन-त्सुर को मिस्र भेजा। उनका काम मिस्र के यहूदियों के एक समूह को इकट्ठा करना और उन्हें हमलों को अंजाम देने के लिए ट्रेनिंग देना था। मोसाद और शिन बेट दोनों ऑपरेशन सुजाना में शामिल थे। ऑपरेशन में शामिल मिस्र के यहूदियों का समूह शहरों के कुलीन समुदायों से था, जो बेहद नाजुक थे। उनमें से कोई भी इतना काबिल या अनुभवी नहीं था, जितना इजरायली होते हैं। वे ऑपरेशन को लेकर बेहद उत्साही थे और सार्वजनिक स्थानों या अपने घरों में बैठकें करने लगे। उन्हें मुश्किल से पता था कि इजरायल से उन्हें दिए गए रेडियो सेट को कैसे संचालित किया जाए। वैसे भी, मिस्र की खुफिया एजेंसियां उन्हें संदेह की नजरों से देखती थीं। इस ऑपरेशन ने मिस्र के सभी यहूदियों को खतरें में डाल दिया था।

मोसाद ने बनाए कंडोम बम


ऑपरेशन सुज़ाना के कमांडरों ने जब देखा कि उनका पहला अस्त्र काम नहीं कर रहा तो वह वापस अपने उसी ट्रेनिंग पर लौटे, जिसमें वे माहिर थे। उन्होंने एसिड से भरे कंडोम और विस्फोटकों से भरे चश्मे के केस तैयार किए। उन्हें सिर्फ इजरायल से ऑपरेशन को शुरू करने का इंतजार था। लेकिन, जुलाई 1954 में इजरायल से एक विचित्र मैसेज आया, जिसमें लिखा था, "एंग्लो-मिस्र समझौते को रोकने या स्थगित करने के लिए तत्काल कार्रवाई शुरू करें। लक्ष्य हैं, एक, सांस्कृतिक और सूचनात्मक संस्थान। दो, आर्थिक संस्थान। तीन, कारें, ब्रिटिश प्रतिनिधि और अन्य ब्रिटिश नागरिक। चार, कोई भी अन्य चीज जो राजनयिक संबंधों को जटिल बना सकती है। नहर क्षेत्र में कार्रवाई की संभावना के बारे में हमें सूचित करें। वेवबैंड जी पर प्रतिदिन सात बजे हमारी बात सुनें।"

सनग्लास केस में बम बनाकर किए विस्फोट


एलेक्जेंड्रिया के डाकघर में कुछ छोटे विस्फोटक फट गए। फिर समूह ने एलेक्जेंड्रिया और काहिरा में अमेरिकी सूचना सेवा की लाइब्रेरियों में सनग्लास केस के ऐसे ही कुछ छोटे विस्फोटकों को रखने की योजना बनाई। उन्होंने कर्नल नासिर की क्रांति की वर्षगांठ मनाने के लिए काहिरा में सिनेमाघरों और रेलवे स्टेशनों पर रखने के लिए भी कामचलाउ बम बनाए। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि यह दिखाया जा सके कि इन हमलों के पीछे मिस्र के ही लोगों का हाथ है। लेकिन, ये सभी बम फुस्स हो गए। इनमें से एक भी समय पर नहीं फटा।

मिस्र में पकड़े गए मोसाद एजेंट


एलेक्जेंड्रिया में 19 वर्षीय फिलिप नाथनसन अपनी जेब में एक चश्मे का केस लेकर सिनेमाहाल की कतार में इंतजार कर रहा था। वह जैसे ही टिकट काउंटर के नजदीक पहुंचा, उसमें विस्फोट हो गया। हालांकि, मिस्र की पुलिस ने फिलिप नाथनसन को बचा लिया, लेकिन इजरायल की चाल का भंडाफोड़ हो गया। कुछ ही घंटों में इजरायली नेटवर्क ताश की पत्तों की तरह ढह गया। मिस्र में मोसाद का टॉप एजेंट मैक्स बेनेट पकड़े गए। वह मिस्र में व्यापार के सिलसिले का दिखावा कर प्रवेश किए थे। यह मोसाद के लिए बड़ा झटका था। बेनेट के पकड़े जाने के बाद मिस्र में इजरायली खुफिया नेटवर्क ध्वस्त हो गया। मैक्स बेनेट ने जेल में जंग लगी कील का इस्तेमाल कर अपनी नसें काट ली और खुद को मार डाला।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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