भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में तल्खी कम करने की जितनी कोशिश होती है उतनी ही वह नए स्तर पर जा पहुंचती है. भारत के बार-बार कड़े कदम उठाने के बाद भी कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार सुधरने का नाम नहीं ले रही है. कनाडा की धरती पर खुलकर भारत के टुकड़े करने की धमकी दी जाती है, कनाडा की धरती पर इंदिरा गांधीकी हत्या कामहिमामंडन करते हुए जुलूस निकाला जाता है, कनाडा की धरती पर बने मंदिरों में आए दिन भारतीय प्रवासियों को पीट दिया जा रहा है, कनाडा की धरती पर भारत को तोड़ने के लिए रिफ्रेंडम किया जाता है और फिर कनाडा का पीएम उल्टे भारत पर आरोप लगाता है कि उसके नागरिकों की भारत सरकार हत्या करवा रही है. हद तो तब हो गई जब ट्रूडो सरकार ने आरोप लगाया कि कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप निज्जर की हत्या के मामले में भारतीय उच्चायुक्त और राजनायिक संजय कुमार वर्मा शामिल हैं.
भारत सरकार ने इस बेतुके बयान पर कड़ा कदम उठाते हुए कनाडा में अपने उच्चायुक्त और दूसरे राजनयिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है. इसके साथ ही भारत ने नई दिल्ली में कनाडा के प्रभारी उच्चायुक्त समेत छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है. भारत सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए. अब सवाल है आखिर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस तरह से भारत से पंगा क्यों ले रहे हैं? क्यों वो खालिस्तानी आतंकियों के लिए खुल कर काम करने लगे हैं? भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत के राजनयिक पर कनाडा के आरोप बेतुके हैं. भारत ने कहा कि ट्रूडो सरकार के आरोप राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित हैं. भारत के बार बार कहने के बावजूद कनाडा ने भारत के साथ इस मामले में कोई सबूत साझा नहीं किए.
1-खालिस्तान समर्थक पार्टी ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस लिया
कनाडा में खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को लेकर खालिस्तान समर्थक एनडीपी (नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी) का चिंतित होना स्वाभाविकहै. पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह को पता है कि खालिस्तान के नाम पर फंड इकट्ठा कर लेंगे पर वोट तो आम जनता ही देती है. इसलिए ही वो ट्रडो को टार्गेट करते हैं. उनकामानना है कि पीएम ट्रूडो कनाडा के लोगों की भलाई के बजाय कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचा रहे हैं. लिबर्ल्स पार्टी ने जनता को धोखा दिया है. ट्रूडो की लिबरल पार्टी इस वक्त अल्पमत में है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन से ही कनाडा में ट्रूडो की सरकार बनी. लेकिन सितंबर 2024 में NDP ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस लिया, जिसके बाद कनाडा की ट्रूडो सरकार अल्पमत में है. 2021 चुनाव में NDP को 24 सीट मिली थीं. जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को बहुमत(170) से कम 156 सीट है. कहा जा रहा है कि न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को लुभाने के लिए ट्रूडो ने ऐसा कदम उठाया है.
2-बेरोजगारी-महंगाई त्रस्त लोगों का ध्यान भटकाना चाहतेहैं ट्रूडो
फूड बैंक ऑफ कनाडा की रिपोर्ट इस देश की बदहाल व्यवस्था का हाल बताने के लिए काफी है. इस रिपोर्ट में 13 मानकों पर कनाडा का हाल बेहद खराब बताया गया है. शायद यही कारण है कि ट्रूडो को समझ में नहीं आ रहा है कि आने वाले चुनावों में किस तरह जनता के सामने जाएंगे. फूड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2.8 मिलियन लोग गरीबी में जी रहे हैं. करीब 70 लाख लोगों के पास खाने पीने का संकट है.देश की करीब 18 फीसदी आबादी को 2 वक्त की रोटी नहीं नसीब हो रही है.
कनाडा में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. इस बीच वहां राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए लगातार जनता के बीच जा रहे हैं, लेकिन काम बनता नहीं दिख रहा है.क्योंकि चुनाव पूर्व के सर्वे में ट्रूडो और उनकी पार्टी की लोकप्रियता में काफी कमी आने की बात सामने आ रही है. इन बीच एक विडिया वायरल हो रहा है जिससे ये पता चलता है कि कनाडा की जनता किस तरह उन परभड़की हुई है. विडियो में ट्रूडो की भिड़ंत एक युवक से होती दिख रही है. युवक उनको खरी-खोटी सुना रहा है. उसने कहा कि आपकी नीति बेकार है. आपने हमारे लिए कुछ नहीं किया. आप पर कोई भरोसा नहीं कर सकता. आपके राज में हमें 40 फीसदी तक टैक्स देना पड़ता है. महंगाई चरम पर है. ऐसे में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है.
एक और वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि कनाडा में बेरोजगारी किस तरह चरम पर पहुंच गई है. ब्रैम्प्टन शहर के तंदूरी फ्लेम रेस्तरां के बाहर छात्रों की भीड़ इकट्ठा है. इन्हीं सब कारणों के चलते ट्रूडो को अपनी लिबरल पार्टी के अंदर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उनकी पार्टी के ही कुछ लोग उन्हें नापसंद करने लगे हैं. हालांकि वे खुद को पार्टी का एकमात्र नेता बताते हैं, जो पीएम पद का दावेदार हैं. NDP के समर्थन वापस लेने के बाद ट्रूडो एक लंगड़ी सरकार चला रहे हैं और लगता है कि अब अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए भारत को लगातारनिशाना बना रहे हैं.
3- ट्रूडो के चुनाव हारने का अंदेशा
कनाडा में आंतरिक गतिविधियों से जूझते ट्रूडो को पता है कि इन परिस्थितियों से बाहर निकलने का सबसे आसान रास्ता यही है कि किसी खास देश को टार्गेट पर ले लो. जैसे भारता और पाकिस्तान एक दूसरे को दशकों से इस्तेमाल करते रहे हैं.
कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन ने कुछ दिन पहले रिपोर्ट दी थी कि पार्टी में उनके खिलाफ विद्रोह पनप रहा है, पार्टी में उनके विद्रोही ये जान गए हैं कि ट्रूडो के नेतृत्व में अगर लिबरल पार्टी चुनाव लड़ती है, तो वे हार जाएगी.ऐसी स्थित में नेता के पास एक ही विकल्प बचता है कि वह किसी प्रतिक्रियावादी मुद्दे को उछाल दे.कनाडा में खालिस्तानी सिखों के मुद्दे को उछालकर ट्रूडो ऐसा ही कुछ कर रहे हैं. एंगस रीड इंस्टीट्यूट के मुताबिक, ट्रूडो को पसंद करने वालों में भारी गिरावट आई है. पिछले सितंबर में 39 फीसद लोगों ने उन्हें नापसंद किया था, एक साल में यह संख्या बढ़कर 65 फीसद हो गई है. देश में उनकी स्वीकृति 51 फीसद से घटकर 30 फीसद ही रह गई है.
4-चाइना के दबाव में काम करते हैं ट्रूडो
कनाडा में कुछ दिनों पहले विपक्ष की मांग पर एक जांच आयोग बनाया गया है जो इस बात की जांच कर रहा था कि क्या चीन ने 2019 और 2021 में कनाडाई संघीय चुनावों में हस्तक्षेप किया था. इन चुनावों में प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो को फिर से चुना गया था. विपक्षी कंजर्वेटिव सांसदों को लगता है कि कनाडा के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके चीन अतंरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. चीनी हस्तक्षेप की पूर्ण सार्वजनिक जांच की मांग के पीछे एक कारण यह भी है कि इस साल की शुरुआत में खुफिया सूत्रों का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट सामने आई थी कि चीन ने उदारवादियों का समर्थन करने और बीजिंग के प्रति मित्रवत नहीं माने जाने वाले कंजर्वेटिव राजनेताओं को हराने के लिए काम किया था.
हद तो तब हो गई थी जब इस साल की शुरुआत में, कनाडा ने एक चीनी राजनयिक को निष्कासित कर दिया था , जिस पर कनाडा की जासूसी एजेंसी ने आरोप लगाया था कि वह हांगकांग में एक विपक्षी कंजर्वेटिव सांसद और उनके रिश्तेदारों को डराने की साजिश में शामिल था. क्योंकि कंजर्वेटिव सांसद ने बीजिंग के मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना की थी.ट्रूडो की भारत विऱोधी कार्रवाई क्या भारत को घेरने की चीनी रणनीति का हिस्सा है?
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