वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन देश में सबसे लंबे समय तक वित्तमंत्री रहने वालों वित्तमंत्रियों में से एक हैं. जाहिर उनके फैसलों से जनता और सरकार दोनों संतुष्ट होते होंगे तभी वो अपनी कुर्सी पर मजबूती के साथ टिकी हुईं है. लोकतंत्र में जनता की जवाबदेही ही सब कुछ होती है. फिलहाल जीएसटी कौंसिल की 55वीं बैठक में जो फैसले लिए गए हैं उसे मिडिल क्लास ने पूरी तरह नकार दिया है.दरअसल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कैरेमेल पॉपकॉर्न पर जीएसटी बढ़ाकर 18% कर दिया. यही नहीं कारों की रिसेल पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया गया है.पर दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि निर्मला ताई से जिस छूट की डिमांड तमाम बीजेपी नेता तक कर चुके हैं उस पर उन्होंने गौर तक नहीं किया. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी काफी दिनों से हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी खत्म करने की मांग कर रहे हैं. शायद यही कारण है कि जीएसटी कौंसिल से मध्य वर्ग बेहद खफा है.सोशल मीडिया पर मीम्स और निर्मला सीतारमण और भारतीय जनता पार्टी पर जीएसटी के टेरर से बचाने की लोग गुहार लगा रहे हैं.पर सवाल यह भी है कि जीएसटी कौंसिल के फैसलों के लिए वो किस हद तक जिम्मेदार हैं?
1-क्यों हो रही आलोचना
अभी 2 दिन पहले ही जीएसटी कौंसिल की बैठक में लिए गए जिन फैसलों पर सरकार की सबसे अधिक आलोचना हो रही है उनमें कारों की रिसेल और पॉपकॉर्न पर लगने वाले जीएसटी की दरों का सबसे अधिक मजाक बनाया जा रहा है. विवाद तब शुरू हुआ जब यह पता चला कि नमकीन पॉपकॉर्न को ‘नमकीन’ की श्रेणी में रखा गया है और उस पर कम रेट से टैक्स लगाया गया, जबकि कैरेमलाइज्ड पॉपकॉर्न को ‘मिठाई’ के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिस पर अधिक टैक्स लगाया गया.पॉपकॉर्न पर तीन अलग-अलग स्लैब (5%, 12% और 18%) के तहत टैक्स लगाया जाएगा. वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि पहले से पैक किए गए, लेबल वाले रेडी-टू-ईट स्नैक्स पर 12% जीएसटी लगता है, जबकि चीनी कन्फेक्शनरी के तहत आने वाले कैरेमल पॉपकॉर्न पर 18% टैक्स लगता है.
दूसरा जो फैसला है जिसकी चर्चा सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा है वह रिसेल कार की बिक्री पर लगने वाला जीएसटी.जीएसटी काउंसिल की बैठक में पैनल ने बिजनेस वेंचर द्वारा बेची गई यूज्ड ईवी पर 12 फीसदी की जगह 18 फीसदी जीएसटी को मंजूरी दे दी. प्रेस कॉन्फ्रेंस में निर्मला सीतारमण ने इसे उदाहरण से समझाते हुए कहा था कि यदि एक कार 12 लाख रुपये में खरीदी गई और उसे पुरानी कार के रूप में 9 लाख रुपए में बेची गई, तो कीमत के अंतर पर टैक्स लगाया जाएगा. जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई. इससे लोगों को लगा कि अगर वह कार बेचेंगे तो उनपर टैक्स लगाया जाएगा. जबकि उन्होंने अपनी कार को घाटे में बेचा है. इसी बात को कुछ मीडिया रिपोर्ट में वीडियो के जरिए से समझाया गया. जिसकी वजह से आम लोगों के बीच ये भ्रम और भी ज्यादा बढ़ गया.
2-क्या निर्मला सीतरमण की बात को लोग समझ नहीं सके?
कारों की रिसेल को लेकर तमाम मेन स्ट्रीम मीडिया के वे पत्रकार जो सरकार समर्थक माने जाते हैं, उन लोगों ने भी जीएसटीकौंसिल के फैसले की आलोचना शुरू कर दी. शायद बहुत से लोग इसे समझ नहीं सके हैं. पीआईबी ने इसे अपने ट्वीट में इस तरह समझाया है... सभी पुराने और इस्तेमाल किए गए वाहनों, जिसमें ईवी और अन्य वाहन- 1200 सीसी या उससे अधिक इंजन क्षमता वाले और 4000 मिमी या अधिक लंबाई वाले पुराने और इस्तेमाल किए गए पेट्रोल वाहन; 1500 सीसी या उससे अधिक की इंजन क्षमता और 4000 मिमी या उससे अधिक की लंबाई वाले डीजल वाहन और एसयूवी शामिल हैं, की बिक्री पर जीएसटी दर को 12% से बढ़ाकर 18% करना. (नोट: जीएसटी केवल उस मूल्य पर लागू होता है जो आपूर्तिकर्ता को वाहन बेचने पर मिलने वाला मार्जिन होता है, यानी खरीद मूल्य और बिक्री मूल्य (मूल्यह्रास) के बीच का अंतर यदि मूल्यह्रास का दावा किया गया है तो मूल्य) और वाहन के मूल्य पर नहीं. साथ ही, यह अपंजीकृत लोगों के मामले में लागू नहीं है.)
इसे इस तरह भी समझ भी सकते हैं कि यदि आप 15 लाख रुपए में कार खरीदते हैं और इसे किसी किसी दोस्त या रिश्तेदार या फिर जानकार को 11 लाख रुपए में बेचते हैं, तो कोई जीएसटी नहीं लगाया जाएगा. पर यदि यही कार कोई बिजनेस वेंचर जैसे कार 24 या स्पिनी आदि बेचते हैं तो उन्हें जीएसटी देना पड़ेगा.जैसे यदि कोई डीलर 13 लाख रुपए में कार खरीदता है और उसे 17 लाख रुपये में बेचता है, तो 18 फीसदी जीएसटी केवल 4 लाख रुपए के प्रॉफिट मार्जिन पर उसे देना होगा.. इसका मतलब ये हुआ है कि अब पुरानी गाड़ी खरीदते समय फिर चाहे वो पेट्रोल, डीजल हो या फिर ईवी 18 फीसदी टैक्स प्रॉफिट मार्जिन पर देना होगा.
3-जीएसटी कौंसिल के फैसलों में निर्मला सीतारमन का कितना योगदान
जीएसटी और इसके इंप्लिमेंटेशन को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की भूमिका कितनी है ये समझने वाली बात है.वित्त मंत्री सीतारमण ने एक बार जोर देकर कहा था कि जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में लिये गए फैसले एकतरफा नहीं होकर सभी राज्यों की सहमति से लिए जातेहैं. दरअसल जीएसटी कौंसिल में राज्यों के वित्तमंत्रियों भी शामिल होते हैं. कोई भी फैसला लेते हुए राज्यों की निर्णायक भूमिका (करीबदो तिहाई )होती है. जबकि केंद्र की वोटिंग में भूमिका एक तिहाई ही है. आज की तारीख में भी कई राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है.
सीतारमण का यह बयान तब आया है जब द्रमुक की तरफ से कहा गया कि तमिलनाडु की तरफ से केंद्र को दिए गए एक रुपया के मुकाबले राज्य को सिर्फ 29 पैसे ही वापस मिले हैं. सीतारमण ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'तमिलनाडु के मंत्री भी जीएसटी काउंसिल के मेंबर हैं. जीएसटी काउंसिल में लिए गए सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए गए हैं और असहमति को नजरअंदाज करके कोई फैसला नहीं लिया गया है.’ उन्होंने यह भी बताया था कि जीएसटी की सर्वोच्च इकाई जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में कोई भी मंत्री अकेले कोई फैसला नहीं ले सकता है. उन्होंने यह भीकहा था कि उनके पास वित्त आयोग की तरफ से अनुशंसित दर को बढ़ाने या घटाने का अधिकार तक नहीं है.
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