1999 में अमेठी में अपनी मां के लिए प्रचार करने से लेकर केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से सांसद (सांसद) के रूप में शपथ लेने तक, प्रियंका गांधी का दो दशकों से भी अधिक सियासी समय काफी उतार-चढ़ाव भरा सफर रहा है और उन्होंने सियासी चुनौतियों का बखूबी से सामना भी किया है.
इस दौरान उनकी भूमिकाओं में लगातार बदलाव हुआ. इसमें कभी संकटमोचन तो कभी आश्चर्यजनक जीत तो फिर कभी करारी हार और पार्टी के लिए जबरदस्त बैक रूम प्रबंधन तक शामिल है. हालांकि उनके चुनावी पदार्पण में देरी हुई, लेकिन लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश करने से उनकी राजनीतिक यात्रा में एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है.
प्रियंका गांधी की ताकत
1. रणनीतिकार: प्रियंका गांधी ने अक्सर पार्टी में संकट को कम करने के लिए सफल कदम उठाए हैं. अपनी पार्टी की ओर से सदन में विपक्ष बनाम सरकार के बीच गतिरोध को सुलझाने में वह मददगार साबित हो सकती हैं.
2. प्रखर वक्ता: प्रियंका के सवालों के जवाब बेहतरीन होते हैं.अगर चुनाव प्रचार के दौरान उनके तीखे हमलों को देखा जाए तो संसद में बहस के दौरान पार्टी के प्रखर वक्ताओं की सूची में उनका नाम शामिल रहेगा.
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3. भाषा पर पकड़: हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में धाराप्रवाह बोलने की कला में माहिर प्रियंका गांधी पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके द्वारा दिए गए भाषण पार्टी के संदेश को देश भर में फैलाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
4. मिलनसार व्यक्तित्व: प्रियंका का सहज व्यवहार उन्हें एक सुलभ नेता बनाता है. यही व्यवहार न केवल सदन में कांग्रेस सांसदों को उत्साहित करेगा बल्कि क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ गठबंधन की बाधाओं को दूर करने में भी सहायक हो सकता है. सियासी दलों के विभिन्न नेताओं के साथ उनकी मित्रता न केवल अच्छे दृश्य प्रदान कर सकती है बल्कि कांग्रेस के संचार को भी मजबूती दे सकती है.
5. इंदिरा फैक्टर: चूंकि प्रियंका गांधी की तुलना उनकी दादी इंदिरा गांधी से की जाती है, इसलिए लोगों की उनसे उम्मीदें बढ़ सकती हैं. इससे उन्हें न केवल अपनी क्षमता साबित करने का मौका मिलेगा बल्कि उनका राजनीतिक वजन भी बढ़ेगा.
कमज़ोरी
1. नौसिखिया: प्रियंका गांधी लंबे समय से राजनीति में हैं, लेकिन संसदीय राजनीति एक अलग खेल है. मीडिया की नज़रों में नई सियासी पिच पर खेलना उनकी कमज़ोरियों को उजागर कर सकता है और उनकी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकता है.
2. वंशवादी राजनीति: अभी तक सदन में सरकार का हमला नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन पर केंद्रित होता था, जिसमें कांग्रेस की वंशवादी राजनीति पर तीखा हमला भी शामिल है. अब उनकी छोटी बहन प्रियंका गांधी के सदन में आने से सियासी परिदृश्य बदल जाएगा और वंशवादी राजनीति को लेकर उन पर हमलों का एक नया दौर शुरू हो जाएगा.
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3. सियासी खेल: यह वह समय भी होगा जब तीनों गांधी संसद में होंगे, सोनिया गांधी राज्यसभा में और प्रियंका और राहुल गांधी लोकसभा में. यह पार्टी के भीतर बड़ी लॉबिंग के दरवाजे खोल सकता है. यह प्रियंका के लिए एक टेस्ट होगा.
4. नॉलेज टेस्ट: चुनावी रैलियों में लोगों को संबोधित करना और सार्वजनिक नीतियों और विधेयकों पर बहस करना, चर्चा करना, हमलों का जवाब देना और उसका प्रतिकार करना अलग बात है. राष्ट्रीय मुद्दों से लेकर कल्याणकारी योजनाओं तक के बारे में गहन नॉलेज सुर्खियों में रहेगाी. विरासत में मिली राजनीति के कारण उनसे बहुत उम्मीदें रहेंगी.
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