पूर्व प्रधानमंत्री और 92 वर्षीय एचडी देवगौड़ा ने अपने पोते निखिल कुमारस्वामी को चन्नापटना विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतारकर उनका राजनीतिक करियर संवारने का आखिरी कोशिश की, लेकिन उनकी यह कोशिश भी किसी काम नहीं आई. इस हार से जनता दल (सेक्युलर) के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं आ खड़ी हुई हैं.
36 वर्षीय अभिनेता-राजनेता निखिल कुमारस्वामी के लिए यह पांच सालों में तीसरी हार है. 2019 में मांड्या लोकसभा सीट और 2023 में रामनगर विधानसभा सीट गंवाने के बाद, निखिल को कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी योगेश्वर से 25,000 से अधिक वोटों के अंतर से शिकस्त झेलनी पड़ी. चन्नापटना में यह हार तब हुई जब भाजपा ने योगेश्वर को टिकट देने से इनकार कर दिया, और उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया.
...लेकिन सिद्धारमैया के लिए राहत भरी खबर
कांग्रेस के लिए यह चुनाव परिणाम राहत लेकर आया. चन्नापटना के साथ-साथ संदूर और शिगगांव में हुए तीनों उपचुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. इन परिणामों ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को अस्थायी राहत दी, जो एमयूडीए भूमि आवंटन घोटाले और परिवार के खिलाफ आरोपों जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. सिद्धारमैया ने इन जीतों को भाजपा और जेडीएस के षड्यंत्रों के खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया बताया. हालांकि, यह राहत अस्थायी हो सकती है क्योंकि लोकायुक्त और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनके और उनके परिवार पर लगे आरोपों की जांच जारी है.
डीके शिवकुमार का अहम योगदान
चन्नापटना में कांग्रेस की जीत का श्रेय डीके शिवकुमार और उनके भाई डीके सुरेश को दिया जा रहा है. इन दोनों ने योगेश्वर को भाजपा से कांग्रेस में शामिल करने और कुमारस्वामी के प्रभाव को कम करने में खास भूमिका निभाई है. यह कदम कुमारस्वामी द्वारा हाल ही में भाजपा-जेडीएस गठबंधन में निभाई गई भूमिका का जवाब था. गौरतलब है कि इस गठबंधन ने न केवल कुमारस्वामी को मांड्या से लोकसभा में भेजा, बल्कि उनके बहनोई डॉ. सीएन मंजूनाथ को भी डीके सुरेश के खिलाफ भारी अंतर से जीत दिलाई थी.
भाजपा में असंतोष
कुमारस्वामी के मांड्या से सांसद बनने और उन्हें मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाए जाने से राज्य भाजपा के नेताओं में असंतोष था. इसके बावजूद, चन्नापटना उपचुनाव के लिए टिकट आवंटन में भाजपा के स्थानीय नेताओं की अनदेखी हुई.
चन्नापटना सीट से निखिल कुमारस्वामी को उम्मीदवार बनाए जाने का निर्णय गौड़ा परिवार ने लिया, जो भाजपा के लिए घातक साबित हुआ. एचडी देवगौड़ा ने उम्र और स्वास्थ्य की परवाह किए बिना सात दिनों तक प्रचार किया और 25 से अधिक सभाएं कीं. उन्होंने जनता से निखिल का समर्थन करने की अपील भी कि, लेकिन उनकी अपील बेअसर रही.
देवगौड़ा के अन्य पोते, प्रज्वल रेवन्ना और सूरज रेवन्ना, पहले ही अलग-अलग मामलों और विवादों में फंस चुके हैं, जिससे देवगौड़ा निखिल के जरिए जेडीएस का भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे. लेकिन यह प्रयास भी विफल रहा.
शिगगांव और संदूर में कांग्रेस की जीत
शिगगांव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के बेटे भारत बोम्मई को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें कांग्रेस के यासिर पठान के हाथों 13,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. यह सीट भाजपा 1994 से नहीं हारी थी.
संदूर में कांग्रेस की अन्नपूर्णा तुकाराम ने भाजपा के बंगारु हनुमंथु को 9,000 वोटों से हराया. यह सीट तुकाराम ने लोकसभा में बलारी से चुने जाने के बाद खाली की थी.
भाजपा की अंदरूनी कलह
कर्नाटक भाजपा की लगातार असफलताओं ने पार्टी की कमजोरी उजागर कर दी है. गुटबाजी पार्टी के लिए बड़ी समस्या बन गई है. उपचुनाव परिणामों के तुरंत बाद, भाजपा नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र (पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे) को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया.
यतनाल और रमेश जारकीहोली जैसे वरिष्ठ नेताओं ने विजयेंद्र के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किए और कांग्रेस सरकार के खिलाफ अलग बैठकों का आयोजन किया. कर्नाटक भाजपा के लिए दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना बेहद जरूरी है. इन उपचुनावों में हार के बाद, भाजपा नेतृत्व अपनी राज्य इकाई में बड़े बदलाव कर सकती है ऐसी संभावना है. पार्टी को न केवल आंतरिक गुटबाजी से निपटना होगा, बल्कि कांग्रेस की बढ़ती ताकत और जेडीएस के साथ संभावित गठजोड़ के प्रभाव को भी संतुलित करना होगा.
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