बीजेपी पंजाब में हर चुनावों में जोर तो खूब लगा रही है पर उसके हाथ कुछ खास नहीं आ रहा है. पर 20 नवंबर को पंजाब में होने वाले चार विधानसभा उपचुनावों में पार्टी के लिए एक उम्मीद की किरण अचानक दिख गई है. शिरोमणि अकाली दल के उपचुनावों से दूर होने के चलते बीजेपी को ऐसा लग रहा है कि उनकी पूर्व सहयोगी पार्टी के चुनावों में न रहने का फायदा उसे ही होना वाला है. पार्टी एसएडी के कोर वोटों को हासिल करने के लिए हर संभव उपाय कर रही है. अभी तक तो पार्टी के तेजतर्रार नेता और राज्य बीजेपी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उपचुनावों से दूरी बनाए रखी थी, पर अब उनकेबयानों से ऐसा लगता है कि पार्टी ने ताल ठोंककर मोर्चा संभाल लिया है.पर शिरोमणि अकाली दल के वोटों को बीजेपी के लिए ट्रांसफर कराना पार्टी के लिए इतना आसान भी नहीं है. अभी तक बीजेपी का प्रचार-प्रसार भी सुस्त पड़ा हुआ है जबकि सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने रोड शो और रैलियां करके राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है.
1-बीजेपी को क्यों जगी है उम्मीद
पंजाब में हो रहे 4 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं.बीजेपी ने अपने तीन उम्मीदवार अकाली पृष्ठभूमि वाले दिए हैं. जाहिर है कि पार्टी की नजर शिरोमणि अकाली दल के वोट बैंक पर है. पार्टी ने जिला व मंडल स्तरीय अकाली नेताओं से संपर्क साधना भी शुरू कर दिया है. पिछले गुरुवार को सुनील जाखड़ ने अकाली दल के पुनरुत्थान की बात कहकर सबको चौंका दिया. उन्होंने लिखा, एक पंजाबी के रूप में, मुझे लगता है कि एसएडी पंजाब के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि 1920 में था . मैं हमारी उच्च धार्मिक संस्था, श्री अकाल तख्त साहिब से सम्मानपूर्वक अपील करता हूँ कि दोषी व्यक्तियों को उनकी गलतियों का अहसास हो और उन्हें उचित दंड मिले. हालांकि, पंथिक पार्टी की सुरक्षा भी जरूरी है. जाखड़ ही नहीं उपचुनावों में खड़े कैंडिडेट भी एसएडी के प्रति हमदर्दी दिखाते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट में भाजपा के बरनाला उम्मीदवार केवल ढिल्लों कहते हैं कि अकाली दल द्वारा छोड़ी गई जगह को भरने की जरूरत है. ढिल्लों सोशल मीडिया पर अकाली दल के दिग्गज और पूर्व पंजाब मुख्यमंत्री, प्रकाश सिंह बादल की प्रशंसा करते हुए एक वीडियो भी पोस्ट कीहै.उन्होंने पोस्ट में कहा, आज, मैं पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल को याद कर रहा हूं, जो एक सच्चे राजनेता थे. उन्हें लोगों की नब्ज का पता था और विधानसभा में उन्होंने सभी सदस्यों का सम्मान और गरिमा बनाए रखी, जो आज के समय में गायब हो गया है, जब विधायक बिल्लियों और कुत्तों की तरह लड़ते हैं.
ढिल्लों ही नहीं गिद्दड़बाहा में, वरिष्ठ बादल के भतीजे और भाजपा नेता मनप्रीत सिंह बादल ने भी एक पुराना वीडियो पोस्ट करके बादल की तारीफ की है. मनप्रीत सीनियर बादल को याद करते हुए कहते थे कि मनप्रीत गिद्दड़बाहा से इतना प्यार करता है कि वह यहां के लोगों के लिए आसमान से तारे भी ला सकता है. मनप्रीत ने 1995 में एसएडी टिकट पर यह सीट जीती थी और इसके बाद 1995, 1997, 2002 और 2007 में इसे बरकरार रखा. एसएडी-भाजपा सरकार के साथ मतभेदों के बाद, उन्होंने 2011 में पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब की स्थापना की और बाद में इसे कांग्रेस में विलय कर दिया. ढिल्लों, मनप्रीत और जाखड़ के अलावा, भाजपा के चब्बेवाल और डेरा बाबा नानक के उम्मीदवार — रवि करण काहलों और सोहन सिंह ठंडल — भी पूर्व एसएडी नेता हैं. काहलों 2022 के विधानसभा चुनाव एसएडी के टिकट पर लड़े और कांग्रेस के सुखजिंदर रंधावा से मात्र 466 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे , जबकि ठंडल चार बार एसएडी के विधायक और पूर्व मंत्री रह चुके हैं. जाहिर है कि बीजेपी को ये चारों कद्दावर नेताओं का साथ मिला है. अगर इसके बाद भी उपचुनावों में बीजेपी की दुर्गति होती है तो पार्टी का पंजाब में पैर जमाना मुश्किल हो जाएगा.
2- पर बीजेपी के लिए आसान नहीं है ग्रामीण क्षेत्रों में एसएडी के वोट को अपने लिए ट्रांसफर कराना
पर इतना सब होने के बाद भी बीजेपी की जीत आसान नहीं है. इसका कारण है कि पार्टी को अपने नेताओं का भी पूरा साथ नहीं मिल रहा है. पार्टी के तेजतर्रार नेता और प्रदेश अध्यक्ष कुशल वक्ता सुनील जाखड़ ने तो उपचुनाव से अपने आप को दूर ही रखा हुआ है. पहले वह केवल पार्टी की बैठकों में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन अब चुनाव प्रचार में भी शामिल नहीं हो रहे हैं. पार्टी के पंजाब मामलों के प्रभारी व गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी इन सीटों पर जा अवश्य रहे हैं, लेकिन वह केवल प्रेस कान्फ्रेंसों तक सीमित हैं.बीजेपी के लिए मुश्किल का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि चार में तीन सीटें ग्रामीण हैं. इसलिए पार्टी ने अपने काडर से उम्मीदवार न देकर शिरोमणि अकाली दल से आए उम्मीदवारों को टिकट दिया.
3-क्या सोची समझी रणनीति के तहत सुखबीर चुनावों से अलग हुए हैं
आम आदमी पार्टी कहना है कि भाजपा और एसएडी आपस में मिले हुए हैं.आम आदमी पार्टी के आरोपों में दम है. पार्टी कहती ह कि अकाल तख्त ने केवल सुखबीर को फटकार लगाई है, अन्य लोग उपचुनाव लड़ सकते थे. इन आरोपों का एसएडी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. पंजाब आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता नील गर्ग कहते हैं कि उन्हें शिरोमणि अकाली दल को लेकर कोई परवाह नहीं है. शून्य में शून्य जोड़ने पर शून्य ही होता है. पंजाब के लोग किसान आंदोलन (2020) के दौरान 750 किसानों के बलिदान और भाजपा के किसान-विरोधी बयानों को नहीं भूलेंगे. आप चारों सीटों पर मजबूत है. कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी की तरह की ही बात कर रही है.
पार्टी के राज्य प्रवक्ता अर्शप्रीत सिंह खदियाल ने दावा किया कि एसएडी को कृषि कानूनों पर भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.खदियाल कहते हैं कि आंतरिक रूप से एसएडी पार्टी भाजपा के साथ ही थे. उन्होंने लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे, उनके पार्षद ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया और अब वे उपचुनाव से दूर रह रहे हैं. वे अपने छोटे वोट बैंक के साथ भाजपा की मदद करना चाहते हैं.
2017 के विधानसभा चुनावों से एसएडी की चुनावी किस्मत घटती जा रही है, जहां उन्होंने 117 सीटों में से 15 सीटें जीती थीं और पांच साल बाद तीन सीटों पर सिमट गए. लोकसभा चुनावों में भी, पार्टी ने 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल दो और एक सीट जीती हैं.शिरोमणि अकाली दल को एक सहारे की सख्त जरूरत है. जाहिर है कि वो सहारा बीजेपी की ओर से मिल सकता है. जाहिर है कि इसके लिए सुखबीर बादल बीजेपी के लिए छोटी मोटी कुरबानी देने के लिए तैयार रहेंगे. क्योंकि अब बीजेपी की समझ में भी आ गया है कि पंजाब में अकेले दम पर मजबूत होना नामुमकिन है.
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