ट्रंप-मोदी की दोस्ती क्या पुतिन बर्दाश्त कर पाएंगे या बनेंगे नए समीकरण? | Opinion

4 1 11
Read Time5 Minute, 17 Second

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के बाद फिर से यह कयासबाजी शुरू हो गई है कि क्या भारत और अमेरिका की दोस्ती परवान चढ़ेगी? ट्रंप का पहले कार्यकाल पर नजर डालें तो पता चलता है कि उनके नजर में भारत की अहमियत कुछ ज्यादा ही थी. हालांकि इसके पीछे बहुत से कारण थे पर कूटनीति यही होती है. बिना फायदे के कोई देश किसी भी देश से संबंध नहीं रखता है. आज भारत अमेरिका के लिए चाहे व्यापार के दृष्टिकोण से या सामरिक और वैश्विक संतुलन के नजरिए से देखे अमेरिका के लिए जरूरी बन चुका है. पर भारत के साथ मुश्किल यह है कि अमेरिका से जितना संबंध मजबूत होगा, भारत अपने सबसे पुराने दोस्त रूस उससे उतना ही दूर होगा. पिछले कुछ सालों में जैसी परिस्थितियां बन रही हैं उसके हिसाब से भारत के लिए अब अपनी कूटनीति में बदलाव की जरूरत भी महसूस की जा रही है. रूस और चीन दिन प्रतिदिन एक दूसरे के नजदीक आ रहे हैं. दोनों की दोस्ती विश्व की कूटनीति पर प्रभावी होती जा रही है. अमेरिका भी भारत को इसलिए ही महत्व दे रहा है कि क्योंकि रूस और चीन दोनों एक हो चुके हैं.

1-ट्रंप और मोदी के रिश्ते उम्मीद जगाते हैं

ट्रंप ने हालांकि अपने पहले कार्यकाल के अंतिम वर्ष 2020 में भारत की यात्रा की थी. पर पीएम मोदी से उनकी 4 साल के कार्यकाल में कुल तीन बार मुलाकात हुई. इसके साथ ही हर मुलाकात भारत-अमेरिकी रिश्तों के लिहाज से मील के पत्थर साबित हुई थी.साबित यही हुआ थाकि उस दौर में भारत अमेरिका के कितना निकट पहुंच गया था. मोदी और ट्रंप की पहली मुलाकात जून, 2017 में हुई थी. कुछ महीने पहले ही राष्ट्रपति बने ट्रंप ने मोदी को व्हाइट हाउस में रात्रि भोज पर आमंत्रित किया.

इतना ही नहीं ट्रंप ने अपने कार्यकाल में सबसे पहले व्हाइट हाउस में रात्रि भोज करने का निमंत्रण दिया. इस तरह ट्रंप के कार्यकाल में मोदी पहले वैश्विक नेता बन गए. दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में सीमा पार आतंकवाद समेत हर तरह के आंतकवाद के खिलाफ भारत व अमेरिका ने बेहद सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया और सीधे तौर पर पाकिस्तान को चेतावनी दी गई. यह पहली बार था जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति खुलकर पाकिस्तान के खिलाफ भारत का साथ दे रहा था. ट्रंप ने खुद कहा कि भारत व अमेरिका के बीच ऐसे मजबूत संबंध पहले कभी नहीं रहे. इसके कुछ ही महीने बाद अमेरिका व भारत के बीच टू-पल्स-टू वार्ता शुरू करने की सहमति बनी.

Advertisement

मोदी ने दूसरी यात्रा अगस्त 2019 में जम्मू व कश्मीर से धारा 370 हटाने के कुछ ही हफ्तों बाद की थी. भारत को इस बात की चिंता थी कि कहीं अमेरिका व दूसरे पश्चिमी देश इस फैसले के खिलाफ कोई कड़वी बात न कहें पर ऐसान कुछ नहीं हुआ. इसके बाद अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष ट्रंप भारत आए. पर दुबारा राष्ट्रपति न बनने के चलते ये भारत-अमेरिका का रिश्ता परवान चढ़ने से रह गया.

2-रूस के सबसे खास दोस्त चीन को चपत लगाने का कोई मौका नहीं गवाएंगे ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव के प्र्चार में ही ऐसे संकेत दे दिए हैं कि उनके पद संभालते ही सभी आयातपर 10 प्रतिशत टैरिफ और चीनी सामानों पर विशेष 60 प्रतिशत टैरिफ अमेरिका लगा सकता है. ट्रंप के लिए यूरोप भी एक चुनौतीपूर्ण समस्या की तरह है. भारत-अमेरिका के बीच व्‍यापार घाटे को देखकर बौखलाए ट्रंप ने भारत के खिलाफ सख्‍त रुख अपनायाथा. जाहिर है कि चीन के खिलाफ यदि अमेरिका कठाेर रवैया अपनाता है तो भारत कोउम्मीद रहेगीकि वहचीन की खाली जगह को भर सके. ट्रंप बहुत बड़े सौदेबाज हैं, ये सभी जानते हैं कि भारत से बिना कुछ फायदा लिए वे कुछ देने वाले नहीं हैं. अगर ट्रंप को खुश करने के लिए भारत कोई कदम उठाता है तो जाहिर है कि रूस को बुरा लगेगा और उससे भारत की दूरी बढ़ेगी.

Advertisement

3-क्वाड को मजबूत करने प्रयास हर हाल में होगा, जिससे भारत और रूस के बीच दूरी बढ़नी तय है

चीन और रूस के साथ ट्रंप का संबंध दिल्ली के लिए विशेष रुचि का विषय होगा. जब पहली बार ट्रंप सत्ता में आए तो क्वाड ढांचा 2017 में पुनर्जीवित हुआ. अब एक बार फिर ट्रंप की सरकार बन रही है जाहिर है क्वाड पर फिऱ तेजी से काम होने की उम्मीद जगी है.जाहिर है अमेरिका ऐसा कुछ जरूर करेगा जिससे कि एशिया और इंडो-पैसिफिक में चीनी शक्ति को सीमित किया जा सके. सी राजमोहन लिखते हैं कि समस्या रिपब्लिकन रणनीतिकारों के उस धैर्य में होगी जो भारत की क्वाड को एक मजबूत क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन बनाने की अनिच्छा से है. उनमें से कई को चिंता है कि क्वाड एक व्यापक गैर-सैन्य एजेंडे वाला संगठन बन गया है और बीजिंग के खिलाफ एक सैन्य संतुलन बनाने पर अपना प्राथमिक ध्यान खो रहा है. क्वाड पर अमेरिकी असंतोष का समाधान करना भारतीय नीति के लिए एक प्रमुख मुद्दा होगा. भारत अगर क्वाड को सुरक्षा संगठन बनाने पर एक कदम भी चलने की कोशिश करता है तो जाहिर है कि रूस से दूर होने की कीमत चुकानी पड़ेगी.

4- यूक्रेन में शांति बहाली हुई तो भारत-रूस संबंधों पर दबाव कम होगा

Advertisement

ट्रंप की कोशिश होगी कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक संभावित समझौते का पता लगाया जाए जिससे यूक्रेन युद्ध को रोका जा सके. जाहिर है कि ट्रंप की तत्परता उन अमेरिकी दबावों को कम कर देगी जिनका भारत ने रूस को अलग-थलग करने के लिए हाल के वर्षों में सामना किया है. ट्रंप से उम्मीद की जा रही है कि रूस और चीन दोनों से लड़ने की बाइडेन की नीति को वो छोड़ सकते हैं. वैसे तो अमेरिका और रूस के बीच किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचना आसान नहीं लग रहा है पर अगर ट्रंप असंभव को संभव करते हैं, तो यह यूरेशिया पर भारत की कूटनीति के लिए गोल्डेन पीरियड होगा. सी राजमोहन लिखते हैं कि ट्रंप का यूरोप में युद्ध समाप्त करने का प्रयास यूक्रेन में शांति में अधिक सक्रिय योगदान देने के लिए भारत के लिए द्वार खोलता है.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

पटना: जेपी नड्डा ने दिवंगत लोकगायिका शारदा सिन्हा के परिवार से की मुलाकात

News Flash 07 नवंबर 2024

पटना: जेपी नड्डा ने दिवंगत लोकगायिका शारदा सिन्हा के परिवार से की मुलाकात

Subscribe US Now