रावण ब्राह्मण नहीं था, फिर भी उसे ब्राह्मण क्यों कहा गया?

4 1 10
Read Time5 Minute, 17 Second

रावण के बारे में सारी दुनिया आज तक यही जानती आई है कि वो एक ब्राह्मण था, शास्त्रों का ज्ञाता था. भगवान शिव का महान भक्त था , और संसार का एक ब़डा तपस्वी और वेदों का ज्ञाता था. ये भी कहा जाता है कि श्रीराम को ब्राह्मण रावण का वध करने की वजह से ब्रह्महत्या का पाप भी लगा था.

लेकिन अगर हम प्रामाणिक राम कथाओं को ठीक से पढ़ें तो कहीं भी किसी भी प्रामाणिक राम कथा में रावण के लिए कहीं भी ब्राह्मण उपाधि का प्रयोग नहीं मिलता है. यहां तक कि सबसे प्राचीन राम कथा यानि वाल्मीकि रामायण में भी रावण के लिए एक बार भी ब्राह्मण वर्ण की उपाधि का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

अगर महाभारत के वन पर्व में दी गई रामकथा जिसे रामोपाख्यान कहते हैं , उसका भी अध्ययन करें तो वहां भी रावण के लिए सिर्फ निशाचर या राक्षस उपाधियों का प्रयोग किया गया है , कहीं भी उसे द्विज या ब्राह्मण नहीं कहा गया है. महाभारत के बाद की सबसे प्राचीन रामकथा कालिदास रचित रघुवंशम है. इस ग्रंथ में भी रावण को सिर्फ राक्षसों का राजा कहा गया है और उसे कालिदास ने भी कहीं भी ब्राह्मण नहीं कहा है.

Advertisement

रामचरितमानस में भी रावण के ब्राह्मण होने का उल्लेख नहीं

यहां तक कि आज से 600 साल पहले जब तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की तो उन्होंने भी इस बात का ध्यान रखा कि वो कहीं भी किसी भी दोहे में रावण के लिए ब्राह्मण उपाधि का प्रयोग नहीं करें.आखिर जब सारा संसार आज रावण को ब्राह्मण मानता है तो फिर वाल्मीकि से लेकर व्यास तक, कंब से लेकर तुलसी तक क्यों इस तथ्य से मौन रहे कि रावण ब्राह्मण था?

आज जब हम सभी किसी भी विद्वान से ये पूछते हैं कि रावण का वर्ण या जाति क्या थी तो उनके पास सिर्फ एक दो तर्क ही हैं जिसके आधार पर वो रावण को ब्राह्मण सिद्ध करते हैं. पहला तर्क ये है कि वो ऋषि विश्रवा का पुत्र था और ऋषि विश्रवा ब्रह्मा जी के पौत्र थे इसलिए रावण भी ब्राह्मण ही था.

दूसरा तर्क वो रामचरितमानस के इस दोहे से देते हैं जहाँ हनुमान जी रावण को समझाते हुए कहते हैं कि –

ऋषि पुलस्ति जसु विमल मयंका. तेहि ससि महुं जनि होहु कलंका..
अर्थात हे रावण तुम ऋषि पुलस्त्य के चंद्रमा के समान विमल यश को कलंकित मत करो.

लेकिन इस दोहे में भी कहीं भी ऋषि पुलस्त्य को ब्राह्मण नहीं कहा गया है और न ही रावण के लिए ब्राह्मण उपाधि का इस्तेमाल मिलता है.इस दोहे से सिर्फ ये तर्क दिया जाता है कि चूंकि ऋषि पुलस्त्य ब्रह्मा के पुत्र थे इसलिए वो ब्राह्मण ही थे और उनका पौत्र रावण भी ब्राह्मण ही था.

Advertisement

ऋषि होना और ब्राह्मण होना अलग- अलग बातें

लेकिन ऋषि होना और ब्राह्मण होना दो अलग अलग बातें हैं. कई ऋषि ऐसे हुए है जो ब्राह्मण नहीं थे. व्यास और वाल्मीकि के ब्रह्मत्व को लेकर ही अलग अलग तरह की बातें हैं. जाबाल ऋषि तो वैश्या के पुत्र थे. इसलिए सिर्फ ऋषि हो जाना ब्राह्मण हो जाना नहीं है.

इसलिए भी ये तर्क बहुत ही सरल है. इस तर्क को आसानी से ध्वस्त किया जा सकता है कि ऋषि विश्रवा का पुत्र होने की वजह से रावण ब्राह्मण था. सबसे पहली बात तो ये कि खुद ऋषि विश्रवा ब्राह्मण ही थे या वो ब्रह्मा के कुल से आते थे इस अंतर को समझना जरुरी है.

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर से कई मानस पुत्रों को उत्पन्न किया. इन मानस पुत्रों में ऋषि मरीचि, पुलस्त्य, पुलह, दक्ष, नारद, वशिष्ठ और अत्रि प्रमुख थे. ये देवताओं से भी पहले उत्पन्न हुए थे और ये मानव नहीं थे बल्कि इन्हें प्रजापति यानि सृष्टि का विस्तार करने वाला कहा गया. ये कोई दिव्य सत्ताएं थी जो ब्रह्मा के शरीर से प्रगट हुई थीं.

इन्हें ही ब्रह्मर्षि कहा जाता था. इन ब्रह्मर्षियों में ऋषि मरीचि ने कश्यप को उत्पन्न किया. इन्हें भी प्रजापति कहा जाता था. इन्होंने ब्रह्मा के ही एक अन्य मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों से विवाह किया. इन पुत्रियों में दिति, अदिति, दनु, विनता , कद्रू आदि प्रमुख थीं.ऋषि कश्यप और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई. दिति के दो पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थेजिनसे दैत्यों का वंश चला. तो क्या ब्रह्मा के प्रपौत्र होने की वजह से हम दैत्यों को भी ब्राह्मण मानते हैं ?

Advertisement

वाल्मीकि रामायण में भी जिक्र नहीं

इसके बाद दक्ष पुत्री अदिति और मरीचि पुत्र और ब्रह्मा के पौत्र कश्यप से 12 आदित्यों का प्रागट्य हुआ. इनमें इंद्र, वरुण , अयर्मा,विवस्वान सूर्य. धाता, विधाता और वामन प्रमुख हैं. इन्हें ही देवता भी कहा जाता है. तो क्या ब्रह्मा के वंश में उत्पन्न होने की वजह से देवताओं को भी ब्राह्मण मान लेना चाहिए.

इसी प्रकार कश्यप और विनता से पक्षीराज गरुड़ उत्पन्न हुए और दक्ष पुत्री दनु और कश्यप से दानवों का वंश चला. तो क्या दानवों और गरुड़ को भी ब्रह्मा के वंश का होने की वजह से ब्राह्मण माना जाएगा? क्या कश्यप और कद्रू के संयोग से उत्पन्न हुए शेषनाग, वासुकि और अन्य नागों के वंश को भी ब्राह्मण माना जाना चाहिए?

तो इसी तर्क से ऋषि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा का पुत्र रावण कैसे ब्राह्मण हो सकता है ? क्या ऋषि विश्रवा के एक दूसरे पुत्र कुबेर को भी हम ब्राह्मण कहते हैं ? नहीं न! तो क्या यही वजह थी कि रावण को न तो वाल्मीकि ने ब्राह्मण कहा और न ही किसी और प्रामाणिक राम कथा के रचयिता ने.

फिर रावण के लिए वाल्मीकि रामायण में क्या क्या कहा गया है इसे भी देख लेते हैं. पूरे वाल्मीकि रामायण में रावण को सिर्फ राक्षस वंश का कहा गया है और उसे निशाचर कहा गया है जो राक्षसों का एक गुण है.

Advertisement

तो आखिर राक्षस होते कौन हैं और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई? इसको लेकर वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में कई श्लोक मिलते हैं जिसके अनुसार ब्रह्मा जी ने जल के अंदर रहने वाले जीवों की रक्षा करने के लिए और उनके अंदर यज्ञ के संस्कार उत्पन्न करने के लिए एक विशेष प्रकार के प्राणियों की योनि की सृष्टि की.

इन विशेष प्राणियों ( जो कि न तो देवता थे, न दैत्य और न ही मानव) में जिन लोगों के समूह ने जलगत प्राणियों की रक्षा का भार अपने उपर लिया वो राक्षस कहे गए और जिस समूह ने जल के अंदर रहने वाले प्राणियों के अंदर यज्ञ संस्कार उत्पन्न कराने का दायित्व लिया वो यक्ष कहे गए. तो एक प्रकार से राक्षस और यक्ष दोनों एक ही योनि के अलग अलग समूह थे, लेकिन वो न तो दैत्य थे , न दानव, न देवता और न ही मनुष्य.

यही वजह है कि सीता ये जानती थीं कि राक्षस मनुष्य योनि से भिन्न प्रकार के प्राणी हैं. इसलिए जब रावण उनसे विवाह करने के लिए दबाव डालता है तो वो राक्षसियों से कहती हैं कि –
न मानुषि राक्षसस्य भार्या भवितुर्महति.

यानि कोई मनुष्य योनि में उत्पन्न कन्या राक्षस की पत्नी बन ही नहीं सकती. ये कुछ वैसा ही है जैसे किसी जानवर के साथ किसी मनुष्य का विवाह हो जाए.

Advertisement

रावण केब्राह्मणनहीं होने के पीछे का तर्क

अब इन राक्षसों और यक्षों ने शीघ्र ही पृथ्वी के भी कई इलाको पर कब्जा कर लिया. बाद में ब्रह्मा जी ने विश्रवा के पुत्र कुबेर को राक्षसों और यक्षों का राजा बना कर लंका में स्थापित कर दिया. बाद में राक्षसों में ही माली, सुमाली और माल्यवान जैसे शक्तिशाली राक्षस हुए जिन्होंने कुबेर का विरोध किया औ देवलोक पर हमला कर दिया.

इस हमले का प्रतिकार करने के लिए देवताओं की तरफ से विष्णु आए और उन्होंने माली , सुमाली और माल्यवान को जल के अंदर रहने के लिए विवश कर दिया. तब सुमाली ने ये सोचा की अगर उसके वंश में कोई ऐसा उत्पन्न हो जिसके पास ब्रह्मा के प्रजापति पुत्रों जैसी शक्ति भी हो और उसके अंदर राक्षसों का रक्त भी हो तो विष्णु से बदला लिया जा सकता है.

इसके लिए उसने दौत्रित्र परंपरा का सहारा लिया जिसे प्रजापति दक्ष ने शुरु किया था. इस परंपरा के अनुसार कोई पिता अपनी पुत्री के संतानों को अपने वंश में शामिल कर सकता है. इसके बाद उसने अपनी पुत्री कैकसी को विश्रवा के पास संतान उत्पन्न करने के लिए भेजा. कैकसी ने बिना विवाह किए विश्रवा से रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पनखा जैसी संतानें उत्पन्न की.

Advertisement

एक तो विश्रवा के साथ कैकसी का वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं हुआ था दूसरे सुमाली ने दौहित्र परंपरा के आधार पर कैकसी से शर्त रखी थी कि उसकी संताने राक्षसों के कुल की मानी जाएंगी. इसलिए रावण , कुंभकर्ण , विभीषण और शूर्पनखा को राक्षसों के वंश का कहा गया. वैसे भी अगर विश्रवा के वंश मे भी वो शामिल होते तो वो ब्रह्मा के कुल के माने जाते न कि ब्राह्मण. यही वजह है कि रावण ने हमेशा खुद को राक्षसों के वंश का बताया और यहाँ तक कि जब विभीषण श्रीराम की शरण में जाते हैं तो वो अपना परिचय कुछ इस तरह से देते हैं –
नाथ दसानन कर मैं भ्राता. निसिचर वंस जनम कुलत्राता..
“हे श्रीराम ! मैं दसानन रावण का भाई हूँ और मेरा जन्म निसाचर राक्षसों के कुल में हुआ है.“

चार वर्णों की उत्पत्ति

वास्तव में रावण मनुष्य योनि का था ही नहीं वो सिर्फ राक्षस था. मानवों की उत्पत्ति तो मनु और शतरुपा से होती है. मनु के पुत्र मानवों ने ही कर्म के आधार पर बाद में चार वर्ण बनाएं जिन्हें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र कहा गया.

राक्षसों, दैत्यों, देवताओं के अंदर वर्ण व्यवस्था जन्म और कर्म के आधार पर नहीं बल्कि गुण और धर्म के आधार पर तय होती थी. इसलिए जब रावण का वध हो जाता है तो श्रीराम विभीषण से उसके बारे में यही कहते हैं कि –
नैवं विनष्टाः शोचने क्षत्रधर्मव्यवस्थिताः..
वृद्धिमाशंसमाना ये निपतन्ति रणाजिरे..

अर्थात् – विभीषण जो लोग अपने अभ्युदय की इच्छा से क्षत्रिय धर्म में स्थित हो संमरांगण में मारे जाते हैं ,इस तरह नष्ट होने वाले लोगों के विषय में शोक नहीं करना चाहिए.
यानि श्रीराम रावण को क्षत्रिय धर्म में स्थित बताते हैं न कि ब्राह्मण धर्म में.

रावण जब मांसीता का हरण करने के लिए आता है तब मां सीता उसका कुल और गोत्र पूछती हैं, तब भी रावण खुद को सिर्फ राक्षसों का राजा बताता है.

स त्वं नाम च गोत्रं च कुलमाचक्ष्व तत्वतः
एकश्च दंडकारण्ये किम अर्थ चरसि द्विज..

हे ब्राह्मण अब आप भी अपने नाम गोत्र और कुल का ठीक ठीक परिचय दीजिए. आप अकेले इस दंडकारण्य में किसलिए विचरते हैं..

मांसीता के इस प्रकार परिचय पूछने पर रावण क्या कहता है ये इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है -
येन वित्रासिता लोकाः सदेवासुरमानुषाः.
अहं स रावणों ना सीते रक्षोगणेश्वरः

अर्थात् – सीते! जिसके नाम से देवता असुर और मनुष्यों सहित तीनों लोक थर्रा जाते हैं मैं वही राक्षसों का राजा रावण हूं.

इसका अर्थ तो यही है कि रावण खुद को भी सिर्फ राक्षसों के राजा के रुप में सीता से परिचित करवा रहा है. यही वजहें हैं कि वाल्मीकि से लेकर तुलसीदास सभी ये जानते थे कि रावण उसी प्रकार से ब्रह्मा के कुल से आता है जिस प्रकार दैत्य, देवता, गरुड़ , नाग आदि आते हैं , इसलिए उसे ब्राह्मण नहीं कहा.

क्या राम जी को लगा था ब्रह्महत्या का पाप?

अब एक और समस्या ये आती है कि कुछ पुराणों के अनुसार श्रीराम ने जब रावण का वध किया तो उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा था. स्कंद पुराण के अध्याय 47 में दी गई कथा के अनुसार श्रीराम ने रामेश्वर में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना रावण के वध के बाद लगे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए की थी. जबकि कुछ पुराण ये कहते हैं कि श्रीराम ने रावण के वध से पूर्व ही रामेश्वरम में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी.

अगर वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के इस श्लोक को देखें तो हमें ये तो पता चलता है कि श्रीराम ने रावण के वध से पूर्व भगवान शिव की पूजा की थी और उनसे कृपा भी प्राप्त की थी लेकिन उन्होंने किसी ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी ये पता नहीं चलता है. श्रीराम अयोध्या लौटते वक्त सीता को पुष्पक विमान से वो स्थान दिखाते हैं जहाँ उन्होंने लंका जाने से पहले भगवान शिव से कृपा प्राप्त की थी-

एतत् कुक्षौ समुद्रस्य स्कंधावारनिवेशनम्
अत्रं पूर्वं महादेवः प्रसादमकरोद् विभुः

तो इस श्लोक से तो यही पता चलता है कि श्रीराम ने सेतु बांधने से पहले ही महादेव की पूजा की थी लेकिन ज्योतिर्लिंग की स्थापना का जिक्र नहीं करते. लेकिन अगर ये मान भी लिया जाए कि श्रीराम ने बाद में यहां आकर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी. जैसा कि स्कंद पुराण में वर्णित है तो फिर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के बाद वो उसी पाप से मुक्ति के लिए कई और स्थानों पर क्यों गए ये एक रहस्य ही है, क्योंकि देश में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके बारे में ये मान्यता प्रचलित है कि श्रीराम ने यहांआकर खुद को रावण के वध से लगे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त किया था.

इनमें एक स्थान अहमदाबाद के पास धर्मारण्य है , तो दूसरा स्थान हरिद्वार के पास ब्रह्मपुरी तो तीसरा तीर्थ है सुल्तानपुर जिले में स्थित धोपाप स्थान और आखिरी हरदोई जिले का ब्रह्महत्या हरण तीर्थ. इन सबके बारे में ये कहा जाता है कि यहीं श्रीराम ने स्वयं को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त किया था.

हनुमान जी से जुड़ा कोई तथ्य नहीं?

अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर जब श्रीराम को रावण का वध करने की वजह से ब्रह्महत्या का पाप लगा था तो फिर हनुमान जी ने भी तो रावण के कई पुत्रों का वध किया था और वो भी इस तर्क से ब्राह्मण ही थे. फिर हनुमान जी के द्वारा ब्रह्महत्या के पाप के विमोचन से जुड़ा कोई तीर्थ क्यों नहीं मिलता ?

हो सकता है कि किसी काल में ब्राह्मणों की लगातार हत्याएं की जा रही हों और बाद में उन आतातायियों के अंदर प्रायश्चित की भावना जागी हो तो उन्हें किस प्रकार समाज में फिर से मिलाया जाए इसके लिए ब्राह्मणों ने एक शांति समझौता किया हो और ऐसे तीर्थों की स्थापना की हो जिनसे कुछ कथाएं जोड़ दी गईं हों ताकि ऐसी व्यवस्था भी बन जाए कि ब्राह्मणों की हत्या के बाद भी किसी को समाज में स्थान मिल सके अगर वो प्रायश्चित कर लेता हो, तो ये संभव है.

इस बात को इस बात से भी मजबूती मिलती है कि उत्तर प्रदेश के के गाजीपुर में एक तीर्थ है जिसे महाहर धाम कहा जाता है ,यहांतेरह मुखी शिवलिंग स्थापित हैं. यहांकी मान्यता ये है कि जब दशरथ जी ने ब्राह्मण पुत्र श्रवण कुमार का वध किया था तो उन्हें भी ब्रह्महत्या का पाप लग गया था और इसी पाप से मुक्ति के लिए वो महाहर धाम आए थे और यहीं पूजा करने से दशरथ जी को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी.

लेकिन वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रवण कुमार ब्राह्मण नहीं था वो तो वर्णसंकर जाति से आता था. जब दशरथ जी ने श्रवण कुमार को बाण मारा और वो दर्द से बिलखने लगा तो दशरथ जी उसके पास आए और उसे मुनि के रुप में देख कर ये समझ गए लगता है कि उन्होंने किसी ब्राह्णण को मार डाला है और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लग गया है.

वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड के इस श्लोक को देखिए जिसमें श्रवण कुमार खुद अपनी जाति बता रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं ब्राह्मण नहीं हूंइसलिए तुम्हें ब्रहाहत्या का पाप नहीं लगेगा ..
ब्रह्महत्यां कृतं तापं ह्दयाद पनीयताम.
न द्विजातिरहं राजन् मा भूत् ते मनसो व्यथा.

श्रवण कुमार यहांदशरथ जी से कहते हैं कि हे दशरथ – मुझसे ब्रह्महत्या हो गई है इस चिंता को अपने दिल से निकाल दो. राजन् मै ब्राह्णण नहीं हूं.इसलिए तुम्हारे मन में ब्रह्म हत्या को लेकर चिंता नहीं होनी चाहिए. इसके बाद के श्लोक में श्रवण कुमार अपनी वर्णसंकर जाति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि –
शूद्रायामस्मि वैश्येन जातो नरवराधिप.

यानि नरश्रेष्ठ मैं वैश्य पिता द्वारा शूद्र जातिय माता के गर्भ से उत्पन्न हुआ हूं.

रिसर्च की जरूरत
तो अगर दशरथ जी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा ही नहीं था तो फिर फिर इस तीर्थ से जुड़ी ये कहानी कैसे प्रचलित हो गई ? तो इसका अर्थ ये हो सकता है कि ब्राह्मणों और दूसरी जातियों के बीच के संघर्ष के बाद जो शांति स्थापित हुई हो उसके बाद ऐसे तीर्थो की स्थापना कर उन लोगों को समाज में सम्मान दिलाया गया हो जिनसे ब्राह्मणों की हत्याएं हुई हैं.

इसलिए हमें श्रीराम के उपर लगे ब्रह्म हत्या के पाप की सत्यता को लेकर भी थोड़ा रिसर्च करना चाहिए .. अब क्यों इन तीर्थों को श्रीराम के ब्रह्महत्या के पाप से जोड़ा गया इसको लेकर मैं आपको बाद में बताउंगा .. अब हम मूल मुद्दे पर आते हैं कि क्या रावण ब्राहण था .. सच में ब्राहम्ण था ....

रावण को ब्राहम्ण मानने के पीछे कुछ तर्क दिये जाते हैं जैसे कि वो ऋषि विश्रवा का पुत्र था और ऋषि पुलत्स्य का पौत्र था इसलिए वो ब्राह्मणथा .. लोग रामचरितमानस का एक दोहा अक्सर बोल देते हैं कि -

ऋषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका. तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका.

लेकिन इसमें सिर्फ तुलसीदास जी ने ये कहा है कि तुम ऋषि पुलत्स्य जी का यश निर्मल चंद्रमा के समान है , उस चंद्रमा में तुम कलंक मत बनो..

-यहाँ तुलसी दास जी ने न तो ऋषि पुलत्स्य को ब्राह्मण कहा है और न ही रावण को उस वंश का होने की वजह से ब्राह्मण कहा है.

कई ऋषि ऐसे भी हुए हैं जो ब्राह्मण नहीं थे. जैसे वाल्मीकि और व्यास के बाह्मण होने को लेकर विवाद है. रामायण में जाबाल ऋषि का जिक्र आता है वो भी ब्राह्मण नही थे. मैंने आपको अभी बताया कि श्रवण कुमार के पिता माता मुनि थे लेकिन वैश्य वर्ण के थे.. विश्वामित्र भी जन्म से क्षत्रिय थे.. तपस्या से ब्राम्हण बने थे. इस लिए ऋषि पुत्र होना ब्राहम्ण पुत्र होना दो अलग अलग बातें हैं.

श्रीराम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था.. तो फिर मेघनाद को मारने के लिए लक्ष्मण जी को भी लगा होगा .. हनुमान जी ने भी रावण के पुत्र अक्ष कुमार का वध किया था तो उनको भी लगा होगा .. तो सिर्फ श्रीराम और लक्ष्मण जी ने खुद को ब्रह्महत्या के पाप से क्यों मुक्त किया. लक्ष्मण जी के बारे में भी ये कहा गया है कि उन्होंने भी उत्तराखंड के एक तीर्थ मे मेघनाद के वध की वजह से लगे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए पूजा की थी .. तो फिर हनुमान जी पर ब्रह्महत्या का पाप क्यों नहीं लगा जिन्होंने रावण के पुत्र अक्ष कुमार का वध किया था.

-एक और प्रश्न ये है कि श्रीराम के बारे में ये कहा गया है कि रामो विग्रहवान धर्मः यानि राम धर्म की मूर्ति हैं.. तो क्या वो ये नहीं जानते थे कि ब्राहम्ण को शास्त्रों के अनुसार प्राणदंड दिया ही नहीं जा सकता है . फिर उन्होंने ये जानते बूझते हुए रावण का वध क्यों किया .. वो उसे कैद भी कर सकते थे .. और इसके बाद सीता माता को कैद से मुक्त करा सकते थे ..-इसका अर्थ साफ है कि श्रीराम और वाल्मीकि दोनों ही ये जानते थे कि रावण ब्राह्मण था ही नहीं इसलिए वाल्मीकि ने जब पहली बार रामायण की रचना की तो उन्होंने रावण को कहीं भी ब्राह्मण के रुप में नहीं लिखा.

(लेखक अजीत कुमार मिश्रा, पूर्व पत्रकार और ShuddhSanatan.org नाम की संस्था के फाउंडर हैं)

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

जर्मन चांसलर और स्पेन के पीएम आ रहे भारत, सबसे बड़े पनडुब्बी प्रोजेक्ट PI-75 के लिए लगाएंगे दांव, जानें प्लान

बर्लिन/मैड्रिड: भारतीय नौसेना इस समय एयर इंडिपेडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली की पनडुब्बी हासिल करने के लिए तेजी से जोर लगा है। भारतीय नौसेना के इस सबसे बड़े पनडुब्बी अधिग्रहण कार्यक्रम को प्रोजेक्ट 75 या PI-75 नाम दिया गया है, जिसके लिए दो देशों

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now