हरियाणा विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल आ चुके हैं. आज तक और C-voter के एग्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस भारी बहुमत लेती दिख रही है. कांग्रेस को 50 से 58 सीटें मिलती दिख रही हैं. जबकि बीजेपी 20 से 28 सीटों पर सिमट रही है. इसी तरह कांग्रेस के वोट शेयर करीब 7 प्रतिशत बढ़ता दिख रहा है. जबकि बीजेपी का भी वोट परसेंटेज एक से डेढ़ प्रतिशत बढ़ता दिख रहा है.इस तरह हरियाणा में तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनती नहीं दिख रही है. कांग्रेस की वापसी के संकेत हैं. पर एग्जिट पोल के जो भी संकेत हैं वो किसी के लिए आश्चर्यजनक नहीं हैं. विधानसभा चुनावों की घोषणा से बहुत पहले हरियाणा की फिजां में बीजेपी के खिलाफ माहौल तारी था. लोकसभा चुनावों के समय भी बीजेपी के खिलाफ बहुत नाराजगी थी पर कांग्रेस में गुटबंदी के चलते बीजेपी ने आधी सीटें (10 में से 5 लोकसभा सीटें) फिर से जीत लीं थीं. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बंटी हुई थी पर राहुल गांधी-प्रियंका गांधी ही नहीं सोनिया गांधी तक ने पार्टी को ऐन वक्त पर एकजुट बनाए रखने के लिए मेहनत की.
1- दोदिन पहले ही बीजेपी ने हार मान ली थी
आम तौर पर भारतीय जनता पार्टी अंतिम समय तक लड़ाई लड़ने के लिए जानी जाती रही है. जिस तरहपाकिस्तानी क्रिकेट टीम भारत की मजबूत टीम को अंत में आकर ध्वस्त करदेते रहे हैं ठीक उसी तरह बीजेपी कई बार मजबूत कांग्रेस का काम खराब कर देती रही है. पर इस बार भारतीय जनता पार्टी ने वोटिंग के दोदिन पहले ही मैदान छोड़ दिया. इसलिए जनता में संदेश चला गया कि बीजेपी मानकर चल रही है कि सरकार कांग्रेस की बन रही है. जबकि पीएम मोदी चुनाव प्रचार के अंतिम समय तक रोड शो करने के लिए जाने जाते रहे हैं. कई बार अपनी इसी कारीगरी के चलते मोदी और बीजेपी ने कांग्रेस और विपक्ष का बनता काम बिगाड़ दिया.पर इस बार बीजेपी का वो जज्बा नहीं दिखा. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह चुनाव प्रचार के लिए हरियाणा नहीं पहुंचे. इसके ठीक विपरीत राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हरियाणा में कांग्रेस कैंडिडेट के लिए अंतिम दिन तक मेहनत की है. इसका सीधा संदेश यही गया कि बीजेपी यह मानकर चल रही है कि इस विधानसभा चुनावों में कुछ हाथ नहीं आने वाला है.
2- हरियाणा बीजेपी में दलित चेहरेका अभाव
संसदीय चुनावों में जिस तरह यूपी में पार्टी की जमीन खिसकने का सबसे बड़ा कारण दलित और अति पिछड़ों का वोट रहा वैसा ही कुछ इस बार हरियाणा में भी हुआ है. हरियाणा में जाट के बाद दलित दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंक है. राज्य की 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं और ये 35 विधानसभा सीटों पर चुनाव नतीजे प्रभावित करने की कूवत रखते है.
2014 में राज्य में बीजेपी की बड़ी सफलता के पीछे यही कारण था कि दलित समाज ने बीजेपी को फुल सपोर्ट किया था. उत्तर प्रदेश में भी दलितों ने 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा में बीजेपी को जबरदस्त सपोर्ट किया था. पर 2024 में कांग्रेस का संविधान बचाओ- आरक्षण बचाओ नारा काम कर गया.
दलितों में ये संदेश चला गया कि बीजेपी 400 सीट लाकर संविधान बदल सकती है. दूसरे हरियाणा में बीजेपी के पार कुमारी सैलजा जैसा दलित फेस आज तक तैयार नहीं हो सका. किसी तरह पार्टी ने अशोक तंवर को तोड़कर पार्टी में लाया भी गया तो वो ऐन वोटिंग के तीन-चार दिन पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. जाहिर है कि दलित वोटर्स के बीच इसका बहुत प्रभाव पड़ा है.
3-राज्य के कद्दावर नेताओं को बैकफुट पर धकेलना
-रामविलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यू, ओमप्रकाश धनखड़, अनिल विज आदि का ठीक से पार्टी ने इस्तेमाल किया होता पार्टी की हरियाणा में जो दुर्गति होती दिख रही है वह नहीं होता.मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को सीएम बनाये जाने से नाराज हुए अनिल विज बीजेपी के लिए बड़ी टेंशन बन गए. पूर्व गृह मंत्री अनिल विज अंबाला कैंट से चुनाव लड़े पर प्रदेश स्तर पर उनका या तो यूज नहीं किया गया या. लोकसभा चुनाव में भी वो प्रचार करने नहीं निकले थे, जिसके चलते बीजेपी अंबाला सीट हार गई थी.
अहीरवाल के बड़े नेता और बीजेपी सरकार में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत पार्टी से नाराज हुए बड़े नेता रामबिलास शर्मा के निर्दलीय नामांकन में पहुंचकर उन्हें समर्थन दिया था. रामबिलास शर्मा पुराने आरएसएस के नेता और पूर्व मंत्री हैं. इस बार उनका टिकट बीजेपी ने काट दिया है. हरियाणा में करीब 7 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर हैं, रामिबलास शर्मा की नाराजगी से बीजेपी का ब्राह्मण मतदाता बिखर सकता है.
जिसका राव इंद्रजीत ने भी विरोध किया था. अहीरवाल इलाके में अगर सीटों की संख्या घटती है तो इसका मतलब है राव इंद्रजीत पूरे मन से पार्टी के लिए काम नहीं किया.
हरियाणा की बीजेपी सरकार में मंत्री रहे हरियाणा ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष कर्ण देव कंबोज भी पार्टी का नुकसान हुआ है. कंबोज हरियाणा के बड़े ओबीसी नेता हैं. वो करनाल की इंद्री और यमुनानगर के रादौर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. जिसके बाद नाराज कर्णदेव कंबोज कांग्रेस में शामिल हो गये. बीजेपी की एक और पूर्व मंत्री कविता जैन भी पार्टी से नाराज हैं. इस बार उनका टिकट काट दिया गया है. टिकट कटने के बाद कविता जैन फूट फूटकर रोने लगी थीं. कविता सोनीपत से विधायक रही हैं.
4-शहरों में चरमराईं नागरिक सुविधाएं
गुड़गांव-फरीदाबाद ही नहीं रोहतक-झज्जर-करनाल तक में खराब सीवर , बिजली आपूर्ति, कूड़े के ढेर आदि के चलते नागरिक सुविधाओं की व्यवस्था बुरी तरह खराब हुई है. अभी हाल ही में हुई बरसात में गुड़गांव और फरीदाबाद का जो बुरा हाल हुआ वो देखने लायक था. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस राज में इन शहरों की व्यवस्था बहुत अच्छी थी. पर आम जनता की नजर में सुशासन यही है कि घर के सामने से कूड़ा उठ जाए, सड़कों पर गड्ढे न हों , 24 घंटे बिजली और पानी की नियमित रूप से मिलता रहे.पर इन मूलभूत सुविधाओं से भी जब आम लोग महरूम होते हैं तो सरकार बदलना लाजिमी हो जाता है. एक बात और ये भी है कि जब हरियाणा वाले यूपी में जाते हैं तो उन्हें लगता है कि वास्तव में उनके राज्य में तो कोई काम हुआ ही नहीं. पिछले कुछ सालों में यूपी के नोएडा और गाजियाबाद जैसे शहरों का कायाकल्प हो गया.हरियाणा के शहरों के मुकाबले यहां साफ सफाई , सड़कें और बिजली आदि की व्यवस्था चकाचक हुई है.
5-कानून व्यवस्था चरमराई
हरियाणा में कानून व्यवस्था का हाल बहुत ही खराब है. व्यापारियों से वसूली पिछले कुछ सालों में उद्योग बन गया है. लूट पाट की घटनाएं भी बढ़ीं हैं. फरीदाबाद वाले अकसर यह कहते हुए मिल जाते हैं कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सख्ती के चलते सारे बदमाशों ने हरियाणा की राह पकड़ ली है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2022 की रिपोर्ट भी इस बात की तसदीक करते हैं. साल 2022 में प्रदेश में 2.43 लाख आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, जो साल 2021 से 17.6 फीसदी अधिक हैं. बच्चों के खिलाफ अपराधों में भी 7.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. प्रदेश में बुजुर्गों के खिलाफ अपराधों में भी 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.सात नामी शख्सियतों की हुई सरेआम हत्या व तीन बार हुआ गैंगवार प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल बन गए थे.
एनसीआरबी के मुताबिक, हरियाणा में महिलाओं से दुष्कर्म और बच्चों के खिलाफ अपराध के 57.2 फीसदी मामलों में अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की दर भी काफी खराब रही है. भाजपा सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल विज ने बीते साल 372 जांच अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया था.
6-एंटी इनकंबेंसी
वैसे भी तीसरी बार लगातार चुनाव जीतना किसी भी पार्टी या नेता के लिए आसान नहीं होता. हरियाणा में भी एंटी इनकंबेंसी का लेवल बहुत ज्यादा था. लगातार तीसरी बार सत्ता में वो ही पार्टियां आती रही हैं जिनके नेता अपने राज्य में खुद को इस तरह स्थापित कर लेते हैं. जैसे बंगाल में ममता बनर्जी, गुजरात में नरेंद्र मोदी, उड़ीसा में नवीन पटनायक आदि. देश में अब तक जिन नेताओं ने लगतार तीसरी बार किसी राज्य में चुनाव जीता है वो भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष बन जाते हैं. जबकि हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को उनके दूसरे कार्यकाल के खत्म होने के पहले ही हटा दिया गया. नायब सिंह सैनी इतने कमजोर मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे कि खुद के लिए मनचाही सीट तक नहीं पा सके. ऐसे सीएम से क्या ही उनके समर्थक और राज्य की जनता या उनकी पार्टी क्या उम्मीद कर सकती है.
7-आप-जेजेपी और इनेलो लड़ाई से बाहर हो गए
हरियाणा में 2014 और 2019 की जीत का अगर हम विश्लेषण करते हैं तो देखते हैं कि 2014 के चुनावों में इनेलो के मजबूत होने का बीजेपी को काफी फायदा मिला . उसी तरह 2019 में जेजेपी के मजबूत होने का फायदा बीजेपी को मिला. इस बार ऐसा लग रहा था कि आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल हरियाणा में अच्छी लड़ाई लड़ेंगे. पर केजरीवाल हरियाणा में कांग्रेस के खिलाफ फ्रैंडली मैच खेलते देखे गए. अंतिम समय में तो वो बिल्कुल चुनाव से ही गायब रहे. इनेलो और जेजेपी ने बीएसपी और आजाद समाज पार्टी से गठबंधन भी किया पर कोई काम नहीं आया. एग्जिज पोल के मुताबिक बीजेपी का वोट परसेंटेज 2019 के लेवल पर बरकरार है इसका मतलब सीधा है कि उसको इनेलो और जेजेपी के कमजोर होने का नुकसान हुआ है.
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