बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए वसुंधरा राजे, संजय जोशी और शिवराज सिंह के नामों में कितना दम है? | Opinoin

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मेन स्ट्रीम मीडिया की कई वेबसाइटों से लेकर तमाम यूट्यूबरों और सोशल मीडिया की अकाउंट्स में आजकल इस बात की चर्चा बहुत जोरों से है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक संजय जोशी या बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजेको भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी मिल सकती है. एक नाम और है, और वो हैशिवराज सिंह चौहान का.वैसे तो बीजेपी में मोदी-शाह के युग में जिसके नाम की चर्चा किसी पद के लिए हो जाती है वो उसे शायद ही कभी मिलती है. भारतीय जनता पार्टी में अब सभी फैसले बेहद गोपनीय ढंग से होते हैं. किसके नाम पर मुहर लगनी है ये उसको भी नहीं पता होता है जिसे वो पद या कुर्सी मिलने वाली होती है. राष्‍ट्रपति, राज्‍यपाल औरमुख्‍यमंत्री के नाम जिस तरह से तय हुए, उसके ट्रेंड से हम यह समझ सकते हैं.जाहिर है कि बीजेपी के अध्यक्ष पद पर किसकी ताजपोशी होनी है यह मामला और भी अधिक गोपनीय होगा.

इसलिए बीजेपी के अध्यक्ष पद किसको मिलने वाला है इसके लिए आंकलन करना सिवाय मगजमारी के और कुछ नहीं है. पर चूंकि वसुंधरा राजे और संजय जोशी का नाम लगातार चर्चा में आने से सबके अंदर एक उत्सुकता बन गई है.क्या वास्तव में पार्टी का सबसे बड़ा पद इन दोनों में से किसीको मिल सकता है? आपको बता दें कि हाल ही में अलवर में हुए कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और वसुंधरा राजे की मुलाकात को लेकर चर्चाओं का बाजार और गर्म हो गया. पर कुछ ऐसी बातों पर चर्चा करते हैं जो इस पद को हासिल करने के लिए इन दोनोंकी राह में रोड़ा बन सकते है. शिवराज सिंह चौहान के नाम की चर्चा हम आखिर में करेंगे.

1-पिछले एक दशक में संजय जोशी और वसुंधराके नाम से कोई उपलब्धि नहीं

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किसी भी पार्टी में कोई भी पद हासिल करने के लिए 2 मानदंड सबसे जरूरी होते हैं. पहले होती है जाति,दूसरे होती है उपलब्धियां. जाति पर चर्चा हम इसी लेख में आगे करेंगे. पहले बात करते हैं उपलब्धियों की. संजय जोशी और वसुंधरा राजे पिछले एक दशक से पार्टी से अलग-थलग हैं. पार्टी में होने के बावजूद भी ये लोग करीब करीब इस तरह रहे जैसे पार्टी के बाहर हों. वसुंधरा राजे तो राजस्थान विधानसभा चुनावों के पहले से पार्टी की बैठकों में आना भी पसंद नहीं करतीं थीं. पार्टी में होने के बावजूद कई बार उनकी कोशिश रही कि अपने नाम से यात्रा निकाले. राजे ने संगठन को भी अपने ठेंगे पर रखा.

बहुत से नेता पार्टी के लिए नहीं तो कम से कम समाज के लिए कोई काम करते रहते हैं. पर इन दोनों ने समाज के लिए भी इस दौरान कोई काम नहीं किया है. संजय जोशी ने एक दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ जरूर की ताकि फिर एक बार पहले जैसे मधुर संबंध हो जाएं पर पार्टी या देश के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया. वसुंधरा या जोशी को अध्यक्ष बनाने के बाद बीजेपी या आरएसएस अपने कार्यकर्ताओं को क्या जवाब देंगे कि उन्होंने इन कारणों से इन लोगों को पार्टी के सर्वोच्च पद पर बिठाया. एबीवीपी के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके श्रद्धालु महासभा के राष्ट्रीय संयोजक बृजकिशोर दुबे कहते हैं जोशी या वसुंधरा के नाम को आगे बढ़ाने वाले ऐसे लोग हैं जो बीजेपी का हित नहीं चाहते हैं. पार्टी में मोदी और शाह केएंटी लोग अपने फायदे के लिए ये अफवाह फैला रहे हैं. इन लोगों के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में कलह और बढ़ जाएगा.

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दुबे कहते हैं कि आज भाजपा जहां पर खड़ी हैं यहां पर एक बेहद जानकर, तकनीकी एवं देश के सम्पूर्ण कलेवर से परिचित 48 से 55 वर्ष का सौम्य, मृदुभाषी, ईमानदार, सर्वसमावेशी भाव का स्वयंसेवक व्यक्ति बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष चाहिए न की किसी नकारात्मक ऊर्जा से युक्त व बदले की भावना वाला , चाहे वो कोई भी हो ! क्योंकि अब भाजपा जहां पर है वहां से उसको और आगे जाना है. और आगे तो उपरोक्त गुणों वाला स्वयंसेवक ही ला सकता है ! यह बात अब संजय जोशी में न है और न ही किसी को उनमें ढूंढना ही चाहिए !

2-वसुंधरा और जोशीकी कार्यशैली भी आज कीबीजेपी में फिट नहीं बैठती

दोनों नेताओं की कार्यशैली भी ऐसी नहीं है कि जो वर्तमान बीजेपी की कार्यशैली से मेल खाती हो. मोदी-शाह के युग में बीजेपी नेता 24x7 काम करते हैं. बृजकिशोर कहते हैं कि वसुंधरा पुरानी बीजेपी की नेता हैं. लेकिन, वे हमेशा से अपने लोगों पर मेहरबान रही हैं. यही कारण रहा है कि राजस्थान बीजेपी में कई गुट रहे हैं. वसुंधरा के बीजेपी अध्यक्ष बनने से फिर एक बार पार्टी में राष्ट्रीय लेवल पर गुटबंदी को बढ़ावा मिल सकता है. वसुंधरा ने सरकार भी हमेशा केवल अपने एजेंडे पर ही चलाई है.वो स्वयं हमेशा संगठन पर भारी रहने वाली मुख्यमंत्री रही हैं.

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गुटबाजी के लिए संजय जोशी भी मशहूर रहे हैं. कहा जाता है कि गुजरात प्रभारी बनने के बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर करवा दिया था. संजय जोशी को बीजेपी अध्यक्ष बनाने से विपक्ष के पास उनके सीडी कांड को फिर उभारने का मौका होगा. जिसके चलते बीजेपी की बहुत भद पिट सकती है. दूबे कहते हैं कि वस्तुतः वसुंधरा और जोशी को लेकर जितनी भी बातें हो रही हैं केवल कयासबाजी ही हैं. केंद्र की सरकार को अस्थिर करने , नेतृत्व को परेशान करने और एक बैलेंस बनाने की कोशिश ही हैं.

3- मोदी-शाह के साथ वसुंधरा और संजय जोशी के समीकरण जगजाहिर है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और संजय जोशी के समीकरण जगजाहिर रहे हैं. 1989-90 में संघ ने संगठन को मजबूत करने के लिए जोशी को गुजरात भेजा था.उस समय उन्हें संगठन मंत्री का पद दिया गया था. जबकि नरेंद्र मोदी संगठन मंत्री के रूप में पहले से काम कर रहे थे.दोनों ही ने मिलकर पार्टी के लिए काम किया और 1995 में बीजेपी की गुजरात में पहली बार सरकार बनी.उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए दोनों का ही नाम चला पर दोनों ही पिछड़ गए. केशुभाई और शंकर सिंह वघेला के बीच दावेदारी थी.मोदी और जोशी ने केशुभाई पटेल का साथ दिया पर सुरेश मेहता मुख्यमंत्री बन गए.इस बीच मोदी को दिल्ली भेज दिया गया और संजय जोशी संगठन महामंत्री बन गए. गुजरात में फिर बीजेपी की सरकार बनी और मोदी अपनी वापसी चाहते थे पर जोशी के चलते यह संभव नहीं हो सका.2001 मोदी की वापसी हुई पर उन्होंने मुड़कर नहीं देखा. पहले गुजरात के मुख्यमंत्री बने फिर देश के प्रधानमंत्री.

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वसुंधरा राजे के संबंध भी पार्टी में केंद्रीय नेतृत्व से सहज नहीं रहे.कई बार ऐसे मौकै आए जब वसुंधरा ने खुलकर केंद्रीय नेतृत्व की अवहेलना की. केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहा वसुंधरा ने बनने नहीं दिया.पीएम मोदी ने भी राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान कई बार वसुंधरा को अपनी सभा में नहीं बुलाया. और बुलाया तो वसुंधरा के अलावा अन्य नेताओं को महत्व देखे गए थे. राजस्थान मुख्यमंत्री के नियुक्ति के समय भी राजस्थान में ऐसा माहौल बन गया था जैसे वसुंधरा शक्ति प्रदर्शन पर उतर आईं हों.अपरोक्ष रूप से वसुंधरा ने कई बार ऐसे बयान भी दिए जिसका मतलब केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ निकाला गया.ऐसी दशा में अगर उन्हें बीजेपी अध्यक्ष बनाया जाता है तो जाहिर है कि पार्टी में कलह चरम सीमा पर होगी.

4-ब्राह्रण और राजपूत तो बनने से रहे

एक बात और है,ये दोनों नेतासवर्ण हैं. वसुंधरा राजे वैसे तो जाट के घर ब्याही गईं हैं पर मायका राजपूत रहा है. उनकी बहू गूजर जाति से की है. इस लिहाज से वह अपने को सभी जातियों की प्रतिनिधि मानती नहीं .पर उनका नाम काटने के लिए उनका राजपूत होना काफऱी है.बीजेपी में आज हर पद पर नियुक्तियां आगे के चुनावों की रणनीति को ध्यान में रखकर होती हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एक दलित नेता हैं. दूसरे संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के चलते पार्टी से दलित वोटर्स दूर जा रहे हैं. बीजेपी की चिंता अपने दलित वोट को बचाए रखने और उनके और अधिक विस्तार की भी है. उम्मीद की जानी चाहिए भारतीय जनता पार्टी इस बार किसी दलित को पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाएगी. हो सकता है वह दक्षिण भारतीय दलित हो और महिला भी हो. क्योंकि पार्टी का दक्षिण विजय अभियान अभी अधूरा है.

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5-शिवराज के नाम में क्या है

दरअसल संजय जोशी हों या वसुंधरा राजे , दोनों का नाम इसलिए आगे बढ़ रहा है क्योंकि इन्हें संघ चाहता है. संघ चाहता है इस बार बीजेपी का अध्यक्ष वह बने जो संघ की सुने. पर यह भी सही है कि ऐसे लोग जिनका संबंध मोदी और शाह से 36 का हो वो पार्टी के लिए हितकारी नहीं साबित होंगे. संघ कुछ भी करेगा पर ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा जिससे पार्टी में कलह मच जाए. केंद्रीय मंत्रीशिवराज सिंह चौहान भी पहले संघ के बहुत नजदीक रहे हैं. शिवराज की काबिलियत है कि उन्होंने खुद केंद्रीय नेतृत्व के साथ एजजेस्ट कर लिया है. कहा जा रहा है कि शिवराज के नाम पर बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व भी सहमत है. शिवराज की जाति भी ओबीसी है जो वर्तामान राजनीति के लिहाज से फिट है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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