स्टालिन ने उदयनिधि को क्यों दिया जल्दी प्रमोशन? एक साथ सामने आ गई थीं तीन चुनौतियां | Opinion

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उदयनिधि स्टालिन को तो तमिलनाडु का डिप्टी सीएम बनना ही था. बल्कि, बहुत पहले ही बन जाना था. लेकिन, एक के बाद एक कुछ ऐसी घटनाएं होती रहीं, और उनको थोड़ा इंतजार करना पड़ा. हालांकि, ये इंतजार उदयनिधि को अपने पिता की तरह नहीं करना पड़ा.

देखा जाये तो वो चार साल में कहां से कहां पहुंच गये हैं, और डीएमके के फिर से सत्ता में आने पर उनको अगले मुख्यमंत्री के रूप में भी देखा जा रहा है. डीएमके के भीतर एक धड़ा जो उदयनिधि के समर्थकों का है, वो तो बिलकुल ऐसा ही सोचता है.

उदयनिधि स्टालिन की तमिलनाडु में वैसी ही भूमिका रही है, जो महाविकास आघाड़ी की सरकार में आदित्य ठाकरे की मानी जाती रही. सरकार और संगठन दोनो पर कंट्रोल बनाये रखने की कोशिश.

दोनो नेताओं में कॉमन बात ये रही कि अपने अपने राज्यों में दोनो ही तीसरी पीढ़ी के खानदानी नेता हैं. फर्क बस ये है कि उदयनिधि स्टालिन पार्टी में आदित्य ठाकरे के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय और बाहर उससे भी ज्यादा विवादित रहे हैं. खासतौर से सनातन धर्म पर अपने विचार को लेकर. सत्ता से बाहर होने के बावजूद आदित्य ठाकरे तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जी जान से जुटे ही हैं, तमिलनाडु में उदयनिधि के सामने यही चुनौती 2026 में खड़ी होने वाली है - और प्रमोशन देकर उनको अभी से तैयार किया जा रहा है.

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तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भले ही लंबा वक्त बाकी हो, लेकिन एक बात तो अभी से पक्की है कि तमिलनाडु में 2026 की लड़ाई युवा चेहरों के बीच ही होने जा रही है. उदयनिधि के मुकाबले मैदान में नजर आ रहे उनके चैलेंजर करीब करीब हमउम्र ही हैं.

उदयनिधि स्टालिन 46 साल के हैं, जबकि तमिलनाडु में बीजेपी का चेहरा के. अन्नामलाई अभी 38 साल के ही हैं - और इस लड़ाई में तीसरे प्रतियोगी एक्टर थलपति विजय भी पहले से ही कूद पड़े हैं, जो 49 साल के हो चुके हैं. उदयनिधि और विजय तो सिल्वर स्क्रीन से सियासत में आये हैं, जबकि अन्नामलाई आईपीएस अफसर रहे हैं, और वीआरएस लेकर राजनीति में आये हैं.

डिप्टी सीएम की कुर्सी उदयनिधि ऐसे वक्त संभाल रहे हैं जब अन्नामलाई सक्रिय राजनीति से तीन महीने की छुट्टी लेकर लीडरशिप की पढ़ाई करने लंदन गये हुए हैं. एक्टर विजय ने राजनीति में आने और 2026 का चुनाव लड़ने की घोषणा तो लोकसभा चुनावों से पहले ही कर दी थी, 17 सितंबर को द्रविड़ आंदोलन के दिग्गज पेरियार ईवी रामासामी को श्रद्धांजलि देकर विजय ने भविष्य में अपनी राजनीतिक आइडियोलॉजी का भी संकेत दे दिया है.

उदयनिधि के सामने खड़ी चुनौतियां

ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों में राजनीतिक विरासत के दावेदार कई हो जाते हैं, और उत्तराधिकार की लड़ाई बहुत पहले से शुरू हो जाती है. डीएमके के संस्थापक एम. करुणानिधि के सामने भी ऐसी ही चुनौती थी, और जाहिर तौर पर एमके स्टालिन के सामने भी रही है. ऐसी लड़ाइयों में यूपी-बिहार में भी राजनीतिक दलों को बर्बाद और आबाद होते देखा गया है.

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करुणानिधि ने जब एमके स्टालिन को आगे किया, तो कनिमोझी और बाकी भाई मन मसोस कर रह गये थे. लेकिन, मजबूर थे. कर भी क्या सकते थे. कनिमोझी ने भाई को तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन भतीजे को भी उसी रूप में नेता मानना मुश्किल रहा होगा. झारखंड में तो ये समस्या खुलकर सामने आ गई थी, जब हेमंत सोरेन को नेता के रूप में स्वीकार कर चुके परिवार के लोग कल्पना सोरेन के विरोध में खड़े हो गये थे

डीएमके में फिलहाल ये बंटवारा हो चुका है, उदयनिधि स्टालिन तमिलनाडु में जमे रहेंगे, और दिल्ली का काम कनिमोझी बाकी नेताओं के साथ पहले की तरह ही देखती रहेंगी. उदयनिधि स्टालिन काफी समय से डीएमके और सरकार में नंबर 2 के रोल में देखे जा रहे थे, और अक्सर महत्वपूर्ण मौकों पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की तरफ से कार्यक्रमों का उद्घाटन भी किया करते आ रहे थे.

पिता-पुत्र के की आपस में तुलना की जाये तो उदयनिधि का राजनीतिक सफर एमके स्टालिन के मुकाबले काफी आसान नजर आता है. 2009 में जब एमके स्टालिन को तमिलनाडु का डिप्टी सीएम बनाया गया था तब तक वो चार बार विधायक, और चेन्नई का मेयर भी रह चुके थे - और पिता की छत्रछाया में ही सही, लेकिन सक्रिय राजनीति में उनके पास तीन दशकों का लंबा अनुभव भी रहा.

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उदयनिधि ने तेजी से तरक्की की है. महज चार साल में वो पहली बार विधायक बनने से लेकर मंत्री और अब डिप्टी सीएम की कुर्सी तक पहुंच चुके हैं - तमिलनाडु में ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब पिता मुख्यमंत्री और बेटा डिप्टी सीएम बना हो. उदयनिधि स्टालिन DMK की युवा शाखा के प्रमुख भी हैं.

तेजी से उभरने की एक वजह ये भी रही है कि एमके स्टालिन के लिए सरकार चलाने के साथ साथ संगठन में अनुशासन कायम रख पाना भी चुनौती बनती जा रही थी, जिसे उदयनिधि ने ठीक से संभाला है.

लोकसभा चुनाव से पहले उदयनिधि सनातन धर्म पर अपने बयान के कारण काफी विवादों में थे, और बाद में भी वो दोहराते रहे कि अपने बयान पर कायम हैं. उनका कहना है, मुझसे अपने बयान के लिए माफी मांगने को कहा गया, लेकिन मैं माफी नहीं मांग सकता... मैं स्टालिन का बेटा, क्लैग्नार का पोता हूं... और मैं सिर्फ उनकी विचारधारा को फॉलो कर रहा हूं.

सनातन धर्म को लेकर उदयनिधि स्टालिन ने कहा था, कुछ चीजों का केवल विरोध नहीं होना चाहिये... बल्कि, जड़ से खत्म किया जाना चाहिये... हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना वायरस का विरोध नहीं कर सकते... हमें इन्हें खत्म करना होगा... इसी तरह हमें सनातन को खत्म करना है.

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लोकसभा के नतीजों से क्या संकेत मिलता है

2026 के जो तीन संभावित प्लेयर माने जा रहे हैं, सबसे शानदार प्रदर्शन तो उदयनिधि स्टालिन का ही रहा है. उदयनिधि ने तमिलनाडु में INDIA ब्लॉक को 31 लोकसभा सीटें दिलाई, जिसमें 22 अकेले डीएमके के खाते में आये.

थलपति विजय ने तो पहले ही बोल दिया था कि वो अगला विधानसभा चुनाव ही लड़ेंगे, इसलिए बचते हैं बीजेपी नेता के. अन्नामलाई. के. अन्नामलाई ने कोयंबटूर लोकसभा सीट से बतौर बीजेपी उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे लेकिन डीएमके के गणपति राजकुमार पी से एक लाख से ज्यादा वोटों से हार गये. के. अन्नामलाई पर एक तोहमत ये भी डाली गई है कि वो लंबे समय तक बीजेपी के साथ रही AIADMK से रिश्ता तोड़ डाले हैं. खुद भले ही चुनाव हार गये हों, लेकिन अन्नामलाई ने तमिलनाडु की 39 में से 12 सीटों पर बीजेपी को दूसरा स्थान दिलाने में तो सफल रहे ही, जहां AIADMK तीसरे स्थान पर पहुंच गई.

2026 के विधानसभा चुनाव का चैलेंज

डिप्टी सीएम की कुर्सी संभालने के बाद उदयनिधि को बीजेपी के अन्नामलाई, AIADMK के ई. पलानीसामी और सवुक्कु शंकर जैसे यूट्यूबर के आरोपों का जवाब देना होगा - और थलपति विजय की स्टार पावर को भी फेस करना ही होगा.

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थलपति विजय उम्र में बड़े जरूर हैं, लेकिन राजनीति में तो उदयनिधि और अन्नामलाई ही सीनियर माने जाएंगे. विजय की ही तरह उदयनिधि का भी फिल्मी दुनिया का अच्छा खासा अनुभव रहा है, आने वाले चुनाव में कैसी टक्कर होती है अभी देखना है. एमजी रामचंद्रन, एम. करुणानिधि और जे. जयललिता भी फिल्मों से ही राजनीति में आये और सफल रहे, कमल हासन ने भी हाथ आजमाने की कोशिश की, और रजनीतिकांत को लेकर भी काफी संभावना देखी गई, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से अब वो सक्रिय नहीं रहे - ऐसे में थलपति विजय नया चैलेंज बन कर आ चुके हैं.

अब उदयनिधि को एक साथ बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे और परिवारवाद की राजनीति के आरोप, विजय के स्टार पावर और अंदर की पारिवारिक तनानती से कदम कदम पर जूझना है.

उदयनिधि को डिप्टी सीएम बनाये जाने पर बीजेपी नेता तमिलिसाई सुंदरराजन कहती हैं, मैं पूछना चाहती हूं कि ये लोकतंत्र है या वंशवाद... ये गलत उदाहरण है... तमिलनाडु की राजनीति में ये अच्छी बात नहीं है. वैसे ही, AIADMK प्रवक्ता कोवई सत्यन का कहना है, ये लोकतंत्र के नाम पर वंशवाद का शासन है... पिता, पुत्र और पौत्र... डीएमके इसी से बना है... डीएमके का मतलब सिर्फ एक परिवार है... जिसमें करुणानिधि, स्टालिन और उदयनिधि स्टालिन हैं.

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मार्च, 2024 में उदनिधि ऐसे आरोपों को अपने हिसाब से जवाब दे चुके हैं. उदयनिधि का कहना है, हां, हम एक परिवार से हैं... हम ऐसे ही पार्टी चलाएंगे, क्योंकि पूरा तमिलनाडु ही करुणानिधि का रिश्तेदार है... बीजेपी हमें एक परिवार की पार्टी कहती हैं... मैं इस बात से सहमत हूं कि पूरे तमिलनाडु की तरह डीएमके भी करुणानिधि का परिवार है... और डीएमके एक परिवार की पार्टी है.

और चुनाव जीतकर जब वो पार्टी और परिवार सत्ता पर काबिज हो, तो राजनीतिक विरोधियों के पास शोर मचाने के अलावा विकल्प क्या है. काफी साल तक DMK और AIADMK एक दूसरे के विकल्प बने रहे हैं - देखना है, 2026 में कोई तीसरा विकल्प भी उभर कर आता है क्या?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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