इजरायल ने जिस तरह लेबनान और सीरिया में पेजर, मोबाइल और सोलर पैनलों में ब्लास्ट को अंजाम दिया है, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. इजरायल का टारगेट तोहिज्बुल्लाह आतंकी थे, लेकिन आशंका यह है कि इजरायल वाले फॉर्मूले को अपनाकर यदि आतंकियों ने घरेलू डिजवाइसों को बम बनाना सीख लिया तो दुनिया का क्या होगा?
दुनिया में हथियार बनवाए सरकारों ने.अपनी सेना के इस्तेमाल के लिए. लेकिन, उनका बढ़-चढ़कर उपयोग किया आतंकियों ने. सिर्फ न्यूक्लियर बम छोड़ दिया जाए, तो बाकी सब तरह के हथियार आतंकियों की पहुंच में आ गए. अब दुनिया जिस तरह आगेबढ़ रही है, उसने वायरफेयर के डाइमेंशन बदल गए हैं. ड्रोन से हमला करना अब कल की बात हो गई. इजरायल ने लेबनाम-सीरिया में जिस तरह के पेजर ब्लास्ट करवाए हैं, उसके बाद कहा जाने लगा है कि व्यापक संहार का नया दरवाजा खुल गया है. इजरायल ने अपनी सुरक्षा के लिए ही सही, दुनिया में व्यापक हमले की एक नई इबारत लिख दी है. पेजर के बाद मोबाइल, सोलर पैनल में भी ब्लास्ट हो रहे हैं. ऐसी घरेलू डिवाइसों के बम में बदले जाने के सफल प्रयोग ने पूरी दुनिया के सामने सवाल खड़ा कर दिया है- कहीं उनके घर में रखे डिवाइस को बम में तो नहीं बदला जा सकता?
डर से नाता
80 और 90 के दशक में जब हिंदुस्तान में आतंकवाद का तूफान आया था. पहले खालिस्तान और फिर कश्मीर के नाम पर आतंकियों का जिहाद. खालिस्तानी आतंकियों ने तो बंदूक और बम का सहारा लिया, लेकिन जिहादी आतंकियों ने ब्लास्ट करवाने के लिए कई इनोवशन किए. RDX से लेकर तमाम तरह के विस्फोटकों को अलग डिवाइस में लगाकर ब्लास्ट करवाए गए. इंडियन मुजाहिदीन ने तो कहीं टिफिन बॉक्स और कुकर का भी इस्तेमाल किया. 90 के दशक के गवाह रहे लोगों ने दूरदर्शन पर यह पैगाम आम होते देखा होगा, जिसमें कहा जाता था कि 'अपने आसपास रखी लावारिस वस्तु को हाथ न लगाएं. वो बम हो सकती है. तुरंत पुलिस को सूचना दें'. आप उस समय के भय को एक उदाहरण से समझिये. एक सज्जनसब्जी लेकर स्कूटर से लौट रहे थे. सब्जी का एक झोला रास्ते में गिर गया. पिताजी घर आए, और झोला न पाकर वापस ढूंढने के लिए उसी रास्ते पर गए. देखा कि झोला बीच सड़क पर जहां का तहां पड़ा है. उसे देखकर कई वाहन चालक दूर से निकल रहे हैं. कोई उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर रहा है. लोगों के उस बर्ताव में उनकी सावधानी और भय दोनों ही शामिल थीं.
इजरायलीहमले से आतंकी सबक न ले लें
अब आइये, जरा एक नजर उस सूरते हाल में डालें जो इजरायल और उसके आसपास दिखाई दे रही है. 7 अक्टूबर को हमास के आतंकियों ने जब इजरायल के नागरिकों पर हमला किया, तो ग्लाइडर पर सवार होकर आए थे. बिल्कुल नया और सरप्राइज करने वाला था ये. जाहिर है, अपने हमले को कारगर बनाने के लिए आतंकियों ने अपने स्तर का इनोवेशन किया था. इससे पहले दुनिया इस बात चर्चा कर ही रही थी कि गाजा में हमास ने इतने प्रभावशाली राकेट कैसे बना लिए. कैसे उन्होंने सामान्य पाइप को रॉ मटेरियल की तरह यूज करके रॉकेट लांचर बनाए. इजरायल और हमास के बीच यह चूहा-बिल्ली का खेल काफी वक्त से चल रहा था. लेकिन, लेबनान और सीरिया के भीतर इजरायल के ताजा हमले ने दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया. इजरायल को बेशक ये हक है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए. पर उसके उठाए गए कदम का अनुसरण यदि दुनिया के आतंकी करने लगेंगे तो क्या होगा?
सप्लाय-चेन में 'विस्फोट'
इजरायल के हमले का सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू है सप्लाय-चेन का कंप्रोमाइज़ होना. यानी निर्माता और ग्राहक के बीच होने वाले लेन-देन में घुसपैठ. कहा यही जा रहा है कि इजरायल ने बहुत होशियारी से पेजर बनाए जाने के दौरान उसमें विस्फोटक फिट करवाए. और समय आने पर उनकी बैटरी को गर्म करके विस्फोटकों को डेटोनेट करवाया. अब आप सोचिये, क्या ये घुसपैठ कोई सरकार ही करवा सकती है? आतंकी नहीं? दुनियाभर में कितने ही डिवाइस रोज खरीदे-बेचे जाते हैं. कौन ये चेक करेगा कि किसमें, किसने विस्फोटक फिट किया है.
बारूद पर बैठी है दुनिया...
दुनिया के कई देश अपने भीतर की फाल्ट लाइन से जूझ रहे हैं. जिन देशों का घर दुरुस्त है, तो उनका कोई पड़ोसी खून का प्यासा हुआ जा रहा है. व्यापक विनाश की चाह रखने वालों की दुनिया में कमी नहीं है. बस रिस्क ये होता है कि विनाश का ये 'स्वर्ग' देखने के लिए उन्हें मौत की परीक्षा देनी होती थी. लेकिन, इजरायल का फार्मूला तो पूरी तरह रिस्क फ्री है. लेबनान और सीरिया में हुए हमलों की जिम्मेदारी इजरायल पर डाली जा रही है, सिर्फ इसलिए कि वो उसके खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं. वरना, ऐसे हमले में किसी का चेहरा तो सामने आने से रहा.
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