2024 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद आरएसएस और बीजेपी की जुगलबंदी अब फिर से शुरू हो गई है. हरियाणा विधानसभा चुनावों में फतह के लिए दोनों एक साथ मिलकर तैयारियां कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पदाधिकारियों ने रिश्तों में आई खटास के बाद आपसी तालमेल बढ़ाने के लिए सोमवार शाम पांच घंटे की मैराथन बैठक की. दोनों संगठनों के बीच कई मुद्दों पर बात हुई.कई तरह के गिले शिकवे भी दूर किए गए. पर इस मीटिंग में जिस सबसे महत्वपूर्ण बात पर चर्चा हुई वह यह कि भाजपा नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिया जाए या नहीं. दरअसल हरियाणा बीजेपी में करीब दर्जन भर नेता ऐसे हैं जो अपने सगे संबंधियों के लिए टिकट मांग रहे हैं. और सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग ऐसे हैं जो अपने संबंधियों को जिताने में सक्षम भी हैं. दूसरी बात यह भी है कि अगर इनके लोगों को टिकट नहीं मिला तो इन लोगों के तटस्थ होने का डर भी है. हरियाणा में वैसे भी पार्टी कीमुश्किलें कम नहीं हैं. पार्टी कोई और परेशानी मोल लेने की स्थिति में नहीं है. बीजेपीके सामने संकट यह है कि वंशवाद को मुद्दा बनाकर ही हरियाणा जैसे स्टेट में चौटाला परिवार और हुड्डा परिवार का विरोध करके सत्ता में आई. अब अगर पार्टी बीजेपी नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देती है तो किस मुंह से वंशवाद का विरोध कर पाएगी.
भाजपा और आरएसएस की बैठक में क्या-क्या हुआ
द हिंदू में छपी एक खबर के अनुसार भाजपा-आरएसएस की इस समन्वय बैठक में आरएसएस सरकार्यवाह अरुण कुमार, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान केंद्रीय मंत्री एम.एल. खट्टर, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (हरियाणा चुनाव के लिए पार्टी के प्रभारी हैं),लोकसभा सांसद बिप्लब देबऔर भाजपा महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष ने भाग लिया. बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि आरएसएस और भाजपा के बीच सबसे अच्छा तालमेल कैसे बनाया जा सकता है. साथ ही, इस बात पर क्लीयर स्टैंड लेने की कोशिश की गई कि राज्य के जिन नेताओं द्वारा अपने रिश्तेदारों के लिए टिकटों की मांग की जा रही है उससे किस तरह निपटा जाए. इस बात पर भी चर्चा हुई कि अगर पार्टी नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देती है तो इसे जनता के बीच में कैसे लाया जाएगा.क्योंकि वंशवाद का विरोध ही बीजेपी की एक प्रमुख यूएसपी रही है.
दरअसल भाजपा और आरएसएस ने वंशवादी राजनीति के खिलाफ कड़ा रुख अपनाती रही. हालांकि इसके बावजूद भी बहुत से लोगों को टिकट दिया गया जो अपवाद रहा. हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए ही बनी हुई है. इसलिए जीतने की क्षमता ही महत्वपूर्ण हो जाती है. हरियाणा में भी यही हाल है. अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे कई नेता अपने स्थानीय चुनाव क्षेत्र में इतनी मजबूत स्थिति में हैं कि उनकी अनदेखी पार्टी को भारी पड़ सकती है.
रिश्तेदारों के लिए हरियाणा में कौन-कौन टिकट मांग रहा है
अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट चाहने वाले पार्टी नेताओं में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी शामिल हैं, जो अपनी बेटी आरती राव के लिए टिकट चाह रहे हैं. राव इंद्रजीत ने अभी हाल ही में अपना दुख बयान किया था कि उन्हें अभी तक राज्य मंत्री के दर्जे से ऊपर नहीं किया गया. सांसद धर्मवीर, जो अपने भाई या बेटे के लिए टिकट चाहते हैं, केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर, जिनके बेटे, देवेंद्र पाल चौधरी मैदान में हैं; हरियाणा के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई को अभी तक कुछ नहीं मिला है , जाहिर है कि उन्हें भी पार्टी के साथ जोड़े रहना है तो उन्हें भी टिकट देना होगा. उनकी डिमांड अपने बेटे के लिए भी है. पूर्व सांसद रमेश कौशिक अपने भाई देविंदर कौशिक के लिए टिकट मांग रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता अपने भतीजे को पंचकूला से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतारना चाहते हैं. पार्टी जानती है कि ये लोग इस पोजिशन में हैं कि अगर टिकट मिलता है तो ये सीट निकाल लेंगे.
दूसरी बात यह भी है कि इस बार लड़ाई बहुत कांटे की होने वाली है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी पहले ही अपनी 5 सीटें गवां चुकी है. इसलिए पार्टी आरएसएस को विश्वास में लेना चाहती है. क्योंकि आरएसएस अगर इस मुद्दे पर साथ आ जाती है तो पार्टी के कैडर को प्रबंधित करने और मनोबल को ऊंचा रखने में सहारा मिल जाएगा.
पीएम मोदी ने बताईथी परिवार वाद की परिभाषा
भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस ही नहीं तमाम क्षेत्रीय पार्टियों पर परिवारवाद का आरोप लगाती रही है. पार्टी का वंशवाद के खिलाफ यह नारा प्रभावी था क्योंकि कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी, आरजेडी, इनेलो, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार) सहित दक्षिण में भी कई पार्टियां परिवार वाद के सहारे ही चल रही हैं. बीजेपी पर भी परिवारवाद का आरोप लगता रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय जनता पार्टी में भी तमाम रिश्तेदारों को टिकट मिला हुआ है. पर एक तो दूसरी पार्टियों के मुकाबले बहुत कम है. दूसरी बात रिश्तेदारों को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दी गई है.लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज तक के एडिटर्स के साथ बातचीत में परिवारवाद की परिभाषा इस तरह दी थी.
पीएम मोदी ने कहा, 'जब मैं कहता हूं परिवारवादी पार्टी तो मीडिया के लोग मुझसे पूछते हैं कि राजनाथ सिंह का बेटा भी तो है. मैं बता दूं कि दोनों में फर्क है. मैं जब परिवारवादी पार्टी कहता हूं तो उसका मतलब है कि पार्टी ऑफ द फैमिली, बाय द फैमिली और फॉर द फैमिली. किसी परिवार के 10 लोग अगर पब्लिक लाइफ में आते हैं तो मैं नहीं मानता कि यह बुरा है. चार लोग अगर बढ़-चढ़कर आगे जाते हैं तो मैं इसे भी बुरा नहीं मानता. लेकिन वोपार्टी नहीं चलाते, पार्टी फैसला लेती है.'
कुछ इस तरह की बातें पीएम मोदी ने इस साल फरवरी में लोकसभा में भी कही थी. पीएम मोदी ने तब भी कुछ इस तरह की ही बात की थी.उन्होंने परिवारवाद को लेकर कहा था कि हम किस तरह के परिवारवाद की बात करते हैं? यदि किसी परिवार में एक से अधिक लोग जनसमर्थन से अपने बलबूते पर राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तो उसे हम परिवारवाद नहीं कहते हैं. हम परिवारवाद उसे कहते हैं जो पार्टी परिवार चलाता है. पार्टी के सारे निर्णय परिवार के लोग करते हैं ,वो परिवारवाद है. पीएम मोदी कीइन बातों से लग रहा था कि पार्टी भविष्य में रिश्तेदारों को टिकट देने के मामले में लचीला रुख अपना सकती है.
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