अभिषेक बनर्जी तीसरी बार पश्चिम बंगाल की डायमंड हार्बर से लोकसभा पहुंचे हैं, संसद में ये बताना नहीं भूलते कि वो 7 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते हैं, लगे हाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम जरूर लेते हैं. वो प्रधानमंत्री मोदी की वाराणसी सीट पर जीत के अंतर की बात कर रहे हैं.
तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी के भाषण में निशाने पर तो प्रधानमंत्री मोदी ही रहते हैं, लेकिन बात बात पर वो स्पीकर ओम बिरला को भी टारगेट करते हैं - वो भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव की ही तरह मिसाल देकर साबित करने की कोशिश करते हैं कि स्पीकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के साथ बराबर व्यवहार नहीं करते.
लोकसभा में अभिषेक बनर्जी और स्पीकर ओम बिरला के बीच हुई बहस फिलहाल काफी चर्चित है, और टीएमसी सांसद ने जिस तरह किसानों का जिक्र किया है, उसमें इमरजेंसी को लेकर संसद में रखे गये मौन की तरफ इशारा है - ये संकेत देता है कि कुछ मुद्दों पर टीएमसी कांग्रेस के साथ है.
जैसे इमरजेंसी पर कांग्रेस और टीएमसी साथ खड़े हों
अभिषेक बनर्जी के साथ भी स्पीकर ओम बिरला करीब करीब वैसे ही पेश आये जैसे कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा या शशि थरूर के साथ. जब शपथ के बाद जय हिंद और जय संविधान बोलने पर थोड़ी बहस हो गई थी - और अभिषेक बनर्जी भी स्पीकर से वैसे ही उलझते देखे गये जैसे पिछले सत्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और अखिलेश यादव.
आम बजट पर चर्चा के दौरान अभिषेक बनर्जी ने 2016 की नोटबंदी का जिक्र करते हुए नाकाम बताया तो स्पीकर ओम बिरला ने टोक दिया. ओम बिरला ने अभिषेक बनर्जी से कहा, 2016 के बाद तो 2019 के लोकसभा चुनाव भी हो गए... आप वर्तमान बजट पर बोलें.
अभिषेक बनर्जी को भी शायद इसी तरह के मौके का इंतजार था. फिर तो वो स्पीकर को ही सुनाने लगे, कोई 60 साल पहले के जवाहरलाल नेहरू की बात करेगा, तो आप कुछ नहीं बोलेंगे... मैं 5 साल पहले हुई नोटबंदी की बात करूंगा तो आप कहेंगे कि अभी की बात करो... ये नहीं चलेगा... बिप्लब देव 50 साल पहले के आपातकाल की बात करेंगे लेकिन मैं बोलूंगा तो आपको चुभ रहा है.
पिछली बार, स्पेशल सेशन में स्पीकर के चुनाव के बाद विपक्ष के नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पीकर को उनकी कुर्सी तक बैठाने गये थे. राहुल गांधी ने उसी वाकये की याद दिलाकर कहा था, स्पीकर सर, आपकी कुर्सी में दो व्यक्ति बैठे हैं... एक लोकसभा स्पीकर, जो भारतीय संघ के स्पीकर हैं, दूसरे ओम बिरला हैं... जब मोदी जी गये और आपसे हाथ मिलाया और जब मैंने हाथ मिलाया तो मैंने एक चीज पर गौर किया... जब मैंने आपसे हाथ मिलाया, तो आप सीधे खड़े रहे... जब मोदी जी ने हाथ मिलाया तो आप झुक गये.
और वैसे ही स्पीकर को शुभकामनाएं देते देते समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी कह दिया था, आप लोकतांत्रिक न्याय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में बैठे हैं... आपसे आशा है कि किसी जनप्रतिनिधि की आवाज को दबाई नहीं जाये... और न ही निष्कासन जैसी चीजें हमें ठेस पहुंचायें... आपका अंकुश विपक्ष पर तो रहता है ही, लेकिन आपका अंकुश सत्ता पक्ष पर भी रहे... आपके इशारे पर सदन चले, इसका उल्टा न हो.
अभिषेक बनर्जी ने किसानों का भी मुद्दा उठाया, लोग सदन में ताली बजा रहे हैं... 700 किसान मारे गये, उनको मौत के घाट उतारा गया - और फिर भी, एक आदमी ने एक मिनट के लिए खड़ा होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी?
साफ है, अभिषेक बनर्जी लोकसभा में स्पीकर की तरफ से इमरजेंसी की निंदा और दो मिनट का मौन रखे जाने के वाकये की याद दिलाने की कोशिश कर रहे थे. ये भी बता दें कि केंद्र सरकार ने अब 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित कर दिया है.
किसानों की मौत का जिक्र आते ही सत्ता पक्ष के कुछ सांसदों ने विरोध किया, तो अभिषेक बनर्जी उनकी तरफ इशारा करते हुए कहने लगे, आपके हाथ खून से सने हुए हैं.
अभिषेक बनर्जी के मुंह से ये सुनते ही बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज फॉर्म में आ गईं, और कहने लगीं, इन्होंने हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी की... और जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उसके लिए इन्हें माफी मांगनी चाहिये और ये शब्द रिकॉर्ड से एक्सपंज कर देना चाहिए.
जैसे संसद में टीएमसी की भी धाक जमाने की कोशिश हो
तृणमूल कांग्रेस लोकसभा में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बाद विपक्ष की बड़ी पार्टी है. दिल्ली में कांग्रेस के साथ साथ समाजवादी पार्टी भी अयोध्या की जीत के साथ धाक जमाने की कोशिश कर रही है - और अभिषेक बनर्जी के ताजा तेवर से तृणमूल कांग्रेस की भी वैसी ही कोशिश लगती है.
अभिषेक बनर्जी अगर ओम बिरला से भिड़ जाते हैं तो भी निशाने पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होते हैं. यही काम राहुल गांधी भी करते हैं, और अखिलेश यादव भी - लेकिन अभिषेक बनर्जी सीधे सीधे प्रधानमंत्री मोदी को भी अलग से टारगेट करते हैं.
लोकसभा में अभिषेक बनर्जी अपने भाषण में कोलकाता में एक फ्लाईओवर गिरने पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान की याद दिलाते हैं, उस समय मोदी जी ने कहा कि ये एक्ट ऑफ गॉड नहीं, एक्ट ऑफ फ्रॉड है.
और फिर बाद के हादसों का नाम ले लेकर पूछने लगते हैं, जब गुजरात के मोरबी में पुल गिरा था तो वो क्या था... एक्ट ऑफ गॉड या एक्ट ऑफ फ्रॉड? जब एयरपोर्ट की छत गिरी तो वो क्या था... एक्ट ऑफ गॉड या एक्ट ऑफ फ्रॉड? जब पहली बारिश में अयोध्या में राम मंदिर की छत चूने लगी तो वो क्या था... एक्ट ऑफ गॉड या एक्ट ऑफ फ्रॉड?
और ऐसे ही रेल दुर्घटनाओं की याद दिलाते हुए बी अभिषेक बनर्जी ने सवाल उठाया... ये सब क्या था, एक्ट ऑफ गॉड या एक्ट ऑफ फ्रॉड?
अभिषेक बनर्जी के भाषण के दौरान विपक्षी सांसदों ने जमकर तालियां बजाई. अभी तक विपक्ष संसद में एकजुट नजर आ रहा है, पहले की तरह बिखरा हुआ नहीं लगता.
कृष्णानगर से तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ बनर्जी के भाषण में भी राहुल गांधी के लिए 'हमारे नेता' कहते हुए सुना गया था, लेकिन ममता बनर्जी के तेवर अभी तक सीधे तौर पर ये नहीं समझने देते कि वो INDIA ब्लॉक में ही हैं या नहीं.
वैसे ममता बनर्जी नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली आने वाली हैं. इंडिया ब्लॉक को लेकर उनका रुख तभी समझ में आएगा जब वो राहुल गांधी, सोनिया गांधी या मल्लिकार्जुन खरगे से मिलती हैं या सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी से मिल कर ही कोलकाता लौट जाती हैं.
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