अधिकारियों का पैर छूने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मजाक बनाने से पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों का नौकरशाहों के बारे में राय जरूर जान लें. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी एक बार कहा था कि मुझे मलाल है कि मैं भारतीय ब्यूरोक्रेसी को सुधार नहीं सका. 4 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ ऐसे विचार रखे थे नौकरशाहों के लिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आईएएस बन गए मतलब अब फर्टिलाइज़र का कारखाना भी चलाएंगे और केमिकल का कारखाना भी चलाएंगे? आईएएस हो गए तो वो हवाई जहाज़ भी चलाएंगे? ये कौन सी बड़ी ताकत बना दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जवाहर लाल नेहरू का दर्द यूं ही नहीं था. अब नीतीश कुमार की बेबसी में हम नौकरशाहों का आतंक दे सकते हैं. नौकरशाही ने नीतीश कुमार को ही नहीं देश के हर जनप्रतिनिधि को दुखी किया है.
बुधवार को नीतीश कुमार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में नीतीश कुमार एक इंजीनियर के सामने उनके पैर छूने की बात कह रहे हैं. ये बात कहते हुए वो इंजीनियर की तरफ बढ़ने लगते हैं, तभी इंजीनियर हाथ जोड़कर उनसे ऐसा न करने की विनती करते हैं. पिछले हफ्ते भी नीतीश कुमार ने मंच पर ऐसा ही कुछ किया था, जिसका वीडियो काफी वायरल हुआ था. तब वो पटना के ही एक प्रोग्राम में मंच पर बोलते हुए एक IAS अफसर के आगे हाथ जोड़ने लगे थे. पैर पकड़ने की बात करने लगे थे.
नीतीश कुमार की ईमानदारी और सरलता के चलते नौकरशाही हावी
नीतीश कुमार के बारे में हम कुछ भी कह सकते हैं पर उनके विरोधी भी उन्हें भ्रष्ट नहीं कहते हैं. माना जाता है कि भ्रष्ट नेताओं की नौकरशाही खूब सुनती है. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में नौकरशाह उन्हीं नेताओं की सुनते रहे हैं जो या तो भ्रष्ट रहे हैं या नौकरशाहों के साथ तमीज वाला व्यवहार नहीं करते रहे हैं. उत्तर प्रदेश की एक सीएम के आगे नौकरशाह थर-थर कांपते थे. बिहार के पूर्व सीएम रहे लालू प्रसाद यादव के बारे में भी ऐसी कई कहांनियां हैं. फिलहाल इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नौकरशाह नीतीश कुमार की सरलता और ईमानदारी का फायदा उठा रहे हैं.
नीतीश कुमार पिछले दिनों दो बार अधिकारियों के सामने हाथ जोड़ते नजर आए. दोनों ही बार उनके हाथ जोड़ने का कारण अधिकारियों से ये रिक्वेस्ट करना ही था कि कृपया वो कामजल्दी पूरा करें. गंगा पर पुल बनाने की डेडलाइन कई बार खत्म हो चुकी है. इसी तरह भूमि सर्वेक्षण के काम में भी बहुत देर हो चुका है. अब आप कह सकते हैं कि ऐसे नकारा अफसरों को बर्खास्त करना चाहिए सीएम को. पर बड़ी बात यह है कि आईएएस अफसरों को बर्खास्त करना आसान नहीं होता है. दूसरे एक अफसर को हटाकर दूसरे को काम पर लगाना भी इतना आसान नहीं होता. कोई भी शख्स किसी के सामने गिड़गिड़ाता तभी है जब वह हर उपाय करके देख चुका होता है. देश की नौकरशाही कितनी लापरवाह है यह सरल शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि देश में हर साल जो बजट विकास के लिए निर्धारित किया जाता है उसमें 50 प्रतिशत के करीब रकम खर्च ही नहीं हो पाता है. कई ऐसे विभागों में भी रकम नहीं खर्च हो पाता है जहांपहले येशिकायत होती हैकि उनके यहां बजट की बहुत कमी है.
अपने देश की ब्यूरोक्रेसी किस तरह तानाशाही करती है, कैसे उन्हें किसी भी अथॉरिटी का डर नहीं होता यह इन 2 सच्ची घटनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं.
1-उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में एक कद्दावर मंत्री थे सिद्धार्थनाथ सिंह. पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती होने के चलते जिनकी एक अलग पहचान थी. सीएम और डिप्टी सीएम के बाद सरकार में वे सबसे बड़े मंत्री थे. उनके सरकारी आवास में पानी रिस रहा था और अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे थे. बार-बार शिकायत करने के बावजूद भी एक्शन नहीं हो रहा था. उन्होंने इस समस्या को ट्वीट करके अधिकारियों पर आरोप लगाया. जाहिर है कि उनकी ईमानदारी और उनकी सरलता ने उन्हें ट्वीट करने को मजबूर किया होगा. योगी सरकार में नौकरशाही के हावी होने की कई बार खबरें आईं. अधिकारियों के न सुनने के चलते तो सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने अपने मंत्रिपद से इस्तीफा ही दे दिया था. राजभर के बेटे की शादी थी, वो अपने गांव की सड़क तक नहीं बनवा सके और मंत्रिपद से रिजाइन कर दिया.
2-केंद्र में कद्दावर मंत्री नितिन गडकरी का एक मामला देखिए. कुछ साल पहले की बात है. पद्म पुरस्कारों के लिए सिफारिश का मुद्दा मीडिया में चल रहा था. इस बीच नितिन गडकरी का एक बयान आया. वे समझाना चाहते थे कि किस तरह पद्म पुरस्कारों की सिफारिश होती है. उन्होंने एक वाकया सुनाया कि हिंदी फिल्मों की गुजरे जमाने की अभिनेत्री आशा पारिख पद्म पुरस्कार मांगने उनके घर आईं थीं. गडकरी ने ये भी बताया कि जिस दिन पारिख आईं थीं उनकी बिल्डिंग की लिफ्ट खराब थी. और बजुर्ग अभिनेत्री 10 वीं मंजिल तक सीढ़ियों से चढ़कर आईं थीं. आम तौर पर मुंबई की हर टॉवर में करीब 3 लिफ्ट होती हैं. जाहिर है कि जिस सोसाइटी में गडकरी रहते होंगे वहां का ध्यान प्रशासन विशेष तौर पर रखता होगा.जब लिफ्ट खराब हुई होगी तो गडकरी ने स्थानीय प्रशासन को भी फोन किया होगा. इसके बावजूद लिफ्ट नहीं चल सकी. अगर सोसायटी में किसी को इमर्जेंसी की जरूरत होती तो क्या होता? सभी लिफ्ट खराब हो जाएं और टावर में केंद्रीय मंत्री खुद मौजूद हों और प्रशासन हाथ पर हाथ धार बैठा हो. आप इस घटना से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देश की नौकरशाही किसी की नहीं सुनती. या इतनी लापरवाह, अकर्मण्य और भ्रष्ट है कि बड़े बड़े लोग भी इसका शिकार होते हैं.
यह देश का दुर्भाग्य है कि देश के सभी नेता समझते हैं कि नौकरशाही को खत्म किए बिना देश का विकास संभव नहीं है. पर इस पर नियंत्रण का कोई उपाय सफल नहीं हो सका है. इसे खत्म करना आसान भी नहीं है. जितना इसे खत्म करने की कोशिशें हुईं उतना ही यह मजबूत होती गई. नरेंद्र मोदी सरकार ने नौकरशाहों के वर्चस्व, कर्मण्यता और सुस्ती को खत्म करने के लिए ही प्रशासन में लैटरल एंट्री की शुरूआत की है. पर लैटरल एंट्री से आए अफसरों का क्या रवैया रहा,देश के विकास में उनका कितना योगदान रहा इसका विश्लेषण होना अभी बाकी है.
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