कंगना के बयान ही नहीं, इन 5 कारणों से दिलचस्प हुआ मंडी लोकसभा सीट पर चुनाव

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फिल्म एक्ट्रेस और मंडी सीट से बीजेपी की कैंडिडेट कंगना रनौत सोशल मीडिया साइट एक्स (ट्वि‍टर) पर अपने जुझारू तेवरों के लिए जानी जाती रही हैं. सोशल मीडिया साइट पर कई बॉलिवुड एक्टर और एक्ट्रेस को उन्होंने पानी पिलाया है. और अब जब खुद चुनावी मैदान में हैं तो फिर वो कहां पीछे हटने वाली हैं. अपने विरोधियों को किसी भी लेवल पर जाकर लंका लगाने वाली इसक्वीन का चुनावी मैदान मेंतेवर और चढ़े ही होंगे. मंडी से उनके मुकाबले कांग्रेस ने मंडी राजपरिवार के विक्रमादित्य सिंह को उतारा है जो राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं. हिमाचल के सबसे ताकतवर राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने के चलते उन्हें बीजेपी हल्के में नहीं ले सकती. विक्रमादित्य सिंह के पिता वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के कई बार सीएम रह चुके हैं. फिलहाल बॉलिवुड एक्टर और एक्ट्रेस के लिए चुनाव जीतना हमेशा से बहुत आसान रहा है.पर कंगना के लिए यह इतना आसान नहीं रह गया है. इसके पीछे कई कारण हैं. मंडी की राजनीति में कुछ मुद्दों की चर्चा करते हैं.

1-कंगना की जुबानीजंग कहीं खलनायकन बन जाए

हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी अभिनेत्री कंगना रनौत और कांग्रेस उम्मीदवार विक्रमादित्य सिंह के बीच ताबड़तोड़ बयानबाजी हो रही है.इस बीच कंगना के अधिक बोलने के चलते कई बार उनसे गलतियां भी हो जाती हैं जिसे कांग्रेस मुद्दा बनाती है. कांग्रेस का आईटी सेल यह साबित करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहा जिससे कंगना को कम ज्ञान वाला बड़बोला साबित किया जा सके. देश के पहले प्रधानमंत्री वाले सवाल के बाद से ही कांग्रेस उनके पीछे पड़ी हुई है. हालांकि बहुत से लोगों को कंगना का बअंदाज बयानबाजी पसंद भी आ रही है.

विक्रमादित्य ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा में कंगना रनौत का बिना नाम लिए हमला बोला था. उन्होंने कहा कि हम सनातनी हैं. हम हिंदू हैं और देव समाज को मानने वाले हैं. सोशल मीडिया पर जिस तरीके की बातें निकल कर सामने आ रही हैं, उन पर हम ज्यादा कुछ नहीं कह सकते.मोहतरमा के जो खान-पीन की चीजें निकल कर सामने आ रही हैं वो हमारी देवभूमि को कलंकित करती हैं. जिन-जिन मंदिरों में वो जा रही हैं, उन मंदिरों में सफाई करने की जरूरत है. इन बातों ने देव समाज और देव नीति के लोगों को आहत की है.
कंगना ने उसी अंदाज में जवाब दिया कि मुझे पैसा चाहिए होता तो मैं मुंबई से आती ही नहीं. मेरे मन में जनता की सेवा करने का विचार नहीं होता तो मैं क्यों धक्के खाती, और पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर वो है, पर यहां डेढ़-डेढ़, दो फीट के गड्ढे हैं. मैं क्या आपकी और राहुल गांधी की तरह हूं. मैं एक योग्य हूं, मैंने अपने माता-पिता के नाम के बिना पूरी दुनिया में सम्मान पायाहै, मैं कोई आपकी तरह निकम्मी नहीं हूं...जाइए अपने माता-पिता के नाम के बग़ैर वोट मांगिए. जमानत जब्त न हो तो मैं राजनीति छोड़ दूंगी.

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एक सभा में वो कहती हैं कि ये कांग्रेसी हिमाचल की लड़कियों का रेट पूछते हैं, अगर ये चंपू लोग कहीं पर मिल जाएं तो इनको थप्पड़ मारो.कंगना ने कहा कि अगर पहाड़ी लड़की का एक चपेड़ पड़ गया तो ये लोग सब्जियों का रेट पूछना भी भूल जाएंगे.

विक्रमादित्य के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए एक बार कंगना रनौत कहती हैं कि जो बात करने का तरीका, ये जो घमंड है. ये तो रावण का भी नहीं रहा था. सीएम सुक्खू कहते हैं एक हीरोइन को लेकर आ रहा है जयराम और एक फ्लॉप फिल्म शूट कर रहा है, अरे सुक्खू जी जयराम ने डंके की चोट पर पांच साल स्थिर सरकार चलाई. पर आपने 15 महीने में दम तोड़ दिया. 4 जून को अपने थिएयर से आपकी सरकार उतरेगी, तब पता चलेगा कि क्या फ्लॉप सरकार होती है और क्या सुपरहिट सरकार होती है.

कंगना डंके की चोट पर बोल रही हैं. उनके बयान कुछ लोगों को बहुत पसंद आ रहे हैं पर कुछ लोग नाराज भी होते हैं. चुनाव के दौरान कभी किसी छोटी सी बात पर कब पब्लिक नाराज हो जाए यह कोई नहीं जानता. पत्रकार ओंमप्रकाश ठाकुर कहते हैं कि वोटिंग के दिन तक पब्लिक कंगना के किसी बयान पर नाराज नहीं होती है तो बाकी सब सकुशल ही है.

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2-कंगना और विक्रमादित्य दोनों को कितना मिल रहा अपनी पार्टियों से सपोर्ट

कंगना रनौत और विक्रमादित्य दोनों की ही सफलता और असफलता उनकी पार्टियों से मिलने वाले सपोर्ट पर निर्भर हैं. विक्रमादित्य की कहानी तो सबको पता है . अभी कुछ दिनों पहले तक पार्टी में उनकी विश्वसनीयता खतरे में पड़ गई थी.विक्रमादित्य सिंह राज्यसभा चुनावों के दौरान खासे चर्चा में रहे. माना गया कि क्रॉस-वोटिंग करने वाले विधायकों का नेतृत्व वही कर रहे थे, जिसकी वजह से कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हार का मुंह तक देखना पड़ा था. तब हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार गिरते गिरते बची थी, क्योंकि बगावत करने वाले विधायक बीजेपी के पाले में हरियाणा पहुंच गये थे.

लोकल राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाता है कि हिमाचल के सीएम सुखविंदर सिंह खुक्खु जानबूझकर विक्रमादित्य को मंडी सीट पर फंसा दिया है. हार और जीत दोनों ही स्थितियों में विक्रमादित्य हिमाचल कांग्रेस की राजनीति में घिर सकते हैं.अगर विक्रमादित्य लोकसभा चुनाव हार जाते हैं तो उनके राजनीतिक दबदबे पर काफी बुरा असर पड़ेगा.क्योंकि बीजेपी के लिए कांग्रेस का कोई नेता तभी अहमियत रखता है, जब विधायकों का अच्छा नंबर उसके साथ हो. दूसरी ओर अगर विक्रमादित्य, कंगना रनौत को हरा देते हैं, तो बीजेपी की नाराजगी तो झेलनी ही पड़ेगी, हिमाचल प्रदेश की राजनीति से बाहर होकर दिल्ली पहुंच जाएंगे - और सवाल ये है कि दिल्ली में करेंगे क्या?

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इसी तरह कंगना रनौत के बारे में कहा जा रहा है कि स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ता और नेता नहीं चाहते कि कंगना रनौत चुनाव जीतें. हिमाचल में 2 दशकों से राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे ओमप्रकाश ठाकुर कहते हैं कि स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ कंगना रनौत तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं. ठाकुर कहते हैं कि अभी तक कंगना बढ़त बनाई हुईं हैं पर उनकी सफलता और असफलता इस बात पर निर्भर करेगी वो कितना जल्दी स्थानीय कार्यकर्ताओं से अपने रिश्ते सुधार लेती हैं.

3- मुद्दों में कांग्रेस मजबूत, संसाधनों में बीजेपी

जिस तरह हिमाचल विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने लोकल मुद्दों पर चुनाव लड़ा और बीजेपी राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करती रही . नतीजा यह हुआ कि बीजेपी को क्लोज फाइट में हार मिली.कुछ इसी तर्ज पर इस बार लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने माहौल को लोकल बना दिया है. ओपीएस पर बीजेपी अभी भी अपना रुख साफ नहीं कर सकी है. अग्नीवीर मुद्दे और महिलाओं के हर महीने मददके मुद्दे को लेकर कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है. बीजेपी अभी भी राममंदिर और राष्ट्रवाद के मुद्दे से बाहर नहीं आ सकी है. हालांकि बीजेपी का भारी प्रचार प्रसार और कंगना का फिल्म ऐक्ट्रेस वाला ग्लैमर लोगों को बांधे हुए है.

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4-विक्रमादित्य की भाजपा वाली रणनीति

विक्रमादित्य की बीजेपी वाली रणनीति कई मामलों में उनके लिए फायदेमंद है तो कई कारणों से नुकसानदायक भी साबित हो सकती है. राम मंदिर उद्घाटन के समय से ही देश के एक मात्र कांग्रेस नेता विक्रमादित्य थे जो अयोध्या जाने का खुला ऐलान किए थे. इसी तरह उनका चुनाव प्रचार भी बीजेपी स्टाइल में चल रहा है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में मंडी भाजपा के मीडिया विंग के सदस्य राकेश वालिया कहते हैं कि विक्रमादित्य डरे हुए हैं और उनका अभियान भाजपा की नकल पर चल रहा है. विक्रमादित्य का स्वागत विक्रमादित्य जी को जय श्री राम…’ जैसे नारों से किया जा रहा है, क्या आपने किसी अन्य कांग्रेस उम्मीदवार को इस तरह से स्वागत करते देखा है? ऐसा केवल मंडी संसदीय क्षेत्र में किया जा रहा है. हम इसके खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमारी शैली की नकल क्यों करें और वह भी सभी सीटों पर इसका पालन क्यों न करें.

5-विधानसभाओं में कंगना को बढ़त

मंडी सीट पर विक्रमादित्य की मां और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रमुख प्रतिभा सिंह का कब्जा है, 1952 से अब तक कुल 20 लोकसभा चुनावों में से 14 बार कांग्रेस ने यह सीट जीती है. दरअसल, कांग्रेस की 14 लोकसभा जीतों में से छह बार यह सीट वीरभद्र सिंह के परिवार के पास रही. इस लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस यहां से बहुत मजबूत स्थिति में है. हालांकि भाजपा ने भी पांच बार सीट जीती है. लेकिन इसके अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों का झुकाव ज्यादातर भाजपा की ओर है. मंडी सीट 17 विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बनी है. इन 17 सीटों पर कांग्रेस ने केवल चार सीटों पर जीत हासिल की, जिनमें कुल्लू जिले की दो, शिमला और किन्नौर जिले की एक-एक सीट शामिल हैं. कांग्रेस मंडी जिले में अपना खाता खोलने में कामयाब रही और उसने भाजपा से धरमपुर विधानसभा सीट छीन ली, जो हमीरपुर संसदीय सीट के अंतर्गत आती है. इस तरह देखा जाए तो बीजेपी यहां महत्वपूर्ण बढ़त बनाती नजर आ रही है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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