सियासत में कभी कोई खत्म नहीं होता फिनिक्स की तरह राख से होते हैं ज़िंदा...

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मेरा पानी उतरता देख
मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना
मैं समंदर हूं
लौटकर वापस आऊंगा!

सियासत में ज्यादातर नेताओं की तासीर ही ऐसी होती है, धरती पकड़!! आप इनके करियर के खात्मे की बात करेंगे ये फिनिक्स पक्षी की तरह दोबारा अपनी राख से ज़िंदा हो जाएंगे. जब-जब आप इनके साइड लाइन किए जाने या खराब फॉर्म की बात करेंगे. वे जबर्दस्त इनिंग खेल जाएंगे. कई नेताओं में तो आप तेंडुलकर जैसी काबिलियत पाएंगे. इनके पास अपने विरोधियों की तेज रफ्तार गेंदों के खिलाफ सीधे बैट से खेलने की सलाहियत होती है. छोटे गैप में से कलात्मक खेला करने की ताकत होती है! इन धाकड़ सियासतदानों की कन्सिस्टेंसी भी अद्भुत होती है. आप जिन चीजों के बारे में विचार भी नहीं कर पाएंगे इस तरह के प्राणी उन तरीकों को कर गुजर जाएंगे. आपके दिमाग को चैलेंज करती लहराती हुई सी एक योजना फेकेंगे... आप लाजवाब हो जाएंगे. जब तक आप उनकी अगली चाल का अंदाजा लगाएंगे बंदा पारी जमा चुका होगा. दनादन शॉट लगा रहा होगा. आपने पैर क्रीज पर अड़ा चुका होगा. कई तो किसी भी मामले को इस तरह से फिनिश करते हैं कि उनके बाद बस उनके काम की मिसालें ही दी जाती हैं. कई बार इनिंग को जमाने से लेकर अकेले दम पर पूरी सरकारी पारी ढो देने की काबिलियत अलग रखते हैं.

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कई तो आसक्ति और विरक्ति का भी समान भाव रखते हैं. जब लोग दाद दे रहे होंगे. वन्समोर का शोर चल रहा होगा. वो बंदा आगे की जमावट करने के लिए चल दिया होगा. इस तरह की शख्सियतों के दिमागी तरकश में कई तीरे भरे हुए होते हैं. वक्त-वक्त पर वे इन तीरों का मुज़ाहिरा भी करते रहते हैं. तीर चलने से लेकर उड़ते तीरों को पहचानने तक...ये बस कमाल करते हैं. इन नेताओं का व्यक्तित्व ही अलग होता है. कहन का सलीका, रहन का तरीका...चलन का माद्दा...सबकुछ इनमें कूट-कूट कर भरा होता है. वक्तृत्व कला के धनी...शब्दों का चयन तो ऐसा जो बोला जाते ही सीधे आपके दिल में कहीं गहरे उतर जाए.मैं असल में बात कर रहा हूं कि सियासतदां कभी राजनीति में खत्म नहीं होते...बार-बार अलग तरीके से खुद को रीइन्वेंट करते रहते हैं. प्रासांगिक बने रहते हैं. इनके बारे में किसी काम के नहीं रहे..टाइप की बातें करना...फिजूल है.

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चलिए, सियासत से हटकर क्रिकेट से भी इसी तरह का एक उदाहरण लेते हैं.अभी एक महीने पहले ही टीम इंडिया न्यूजीलैंड जैसी सड़ियल टीम से टेस्ट सीरीज 3-0 से हार गई थी. तत्काल ही इस हार पर टीम इंडिया के खात्मे के मर्सिये पढ़े जाने लगे थे. कहा गया था कि अब ये टीम खत्म हो गई है. विराट के बल्ले में जंग लग गया है. रोहित सिर्फ वनडे में ही हिट है. फिर यही टीम विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया से खेलने पहुंची. पहले टेस्ट में पहली पारी में 150 रनों पर ध्वस्त हो गई तो फतवा आया कि लो अब इनका खेल खत्म! तीन दिन बाद ही टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को 295 रन से रौंद दिया. अब? कसीदे पढ़े जाने लगे कि भाई हम तो पहले ही कह रहे थे कि अभी पलटवार करेगी टीम इंडिया...कोहली विराट रूप दिखाएगा. बुमराह बमचक मचा देगा. जायसवाल तो यशस्वी है. लंबी रेस का घोड़ा है. पंत तो लंगर डाल देगा. राहुल तो बॉल फाड़ देगा. लब्बोलुआब यह कि खेल में किसी भी टीम को खत्म मान लेने की भविष्यवाणी कर देना बहुत बड़ी गलती होती है. किसी भी दिन कोई भी टीम पलटवार कर सकती है. जलवा दिखा सकती है.

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चलिए मैदान से परे फिर मूल बात पर आते हैं कि किसी भी सियासतदां को कभी खत्म नहीं माना जा सकता है. जब-जब विशेषज्ञ किसी नेता के खात्मे का ऐलान करते हैं कुछ ही दिनों बाद वो मुकद्दर का सिकंदर बना दिखाई देता है. फिनिक्स की तरह अपनी राख से खड़ा हो जाता है...बार-बार अपनी राख से जिंदा होने की इसी कला को ही तो ज्ञानीजन बाज़ीगरी कहते हैं. सियासत में इस बाज़ीगरी की अपनी अलग ही तासीर है. इसके आगे विशेषज्ञता या भविष्यवाणियां नहीं चलतीं. खैर, बात आगे बढ़ाएं इससे पहले पलटकर शुरुआती शेर पर आते हैं...

मेरा पानी उतरता देख
मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना
मैं समंदर हूं
लौटकर वापस आऊंगा!

महाराष्ट्र विधानसभा में एक बार देवेंद्र फडणवीस ने यह बात कही थी. इसके माध्यम से जाने-अनजाने में ही वह एक ऐसा सच उजागर कर गए थे कि किसी सियासतदां को कभी खारिज मत समझो...वो कभी भी वापस लौटकर आ सकता है. अपना औरा और ठौरा यानी सत्ता पा सकता है. कुछ बरस पहले तक फडणवीस राज्य के सीएम थे. फिर उद्वव ठाकरे के समर्थन वापस लेने के चलते सत्ता से बाहर हुए. फिर अजित पवार के साथ एक सुबह शपथ लेकर कुछ दिनों के लिए सीएम बने. बाद में बदलते हालात में राज्य के मजबूर डिप्टी सीएम बन गए. फिर परिस्थितियां बदलीं तो अमित शाह की नजरों में खटकने की अटकलों के बीच उनके सियासी खात्मे की बातें कही जाने लगीं. आज वह फिर महाराष्ट्र के सीएम इन वेटिंग हैं. राजनीति में कुछ भी हो सकता है. किसी के भी दिन बहुर सकते हैं. कोई फर्श से अर्शपर आ सकता है. हीरो से जीरो बन सकता है. लेकिन यकीन जानिए उसकी वापसी की संभावना हमेशा बनी रहेगी. अपनी ही राख से फिनिक्स बनकर वापस आता रहेगा.

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आप कहेंगे कि गुरु कहां आपने सियासत के बीच पक्षी घुसेड़ दिया तो सुनिए... इस ग्रीक मिथकीय पक्षी के बारे में मशहूर है कि जब कभी ये मरता है तो खुद जल उठता है. इसके बाद अपनी ही राख से दोबारा जिंदा हो जाता है. अभी पिछले साल की ही बात है. मप्र के सीएम शिवराज सिंह एक सभा में कह रहे थे कि कांग्रेस उनके श्राद्ध की बात कह रही है, लेकिन वह फिनिक्स पक्षी हैं. लोगों के लिए जीते हैं. लोगों की सेवा करने के लिए बार-बार अपनी राख ले जन्म लेंगे. उनके साथ भी क्या हुआ. लगभग 20 साल तक वह राज्य के सीएम रहे. फिर एकाएक पिछले चुनाव में उन्हें दरकिनार कर दिया गया. उन्हें हांसिये पर डाल दिया गया. यहां तक कहा गया कि जीतने पर देखेंगे कि सीएम किसे बनाना है. फिर राज्य में भाजपा को बंपर जीत हासिल हुई. लेकिन सीएम बना एक अन्जान सा चेहरा मोहन यादव. यहां भी शिवराज की सियासी पारी के खात्मे की बात शुरू हो गई. मंत्रियों की नियुक्ति में उनकी नहीं सुनी गई. लोकसभा की तीसरी सूची में बमुश्किल उनका नाम शामिल दिखा. राज्य का सबसे ताकतवर नेता असहाय सा दिखाई देने लगा. फिर आता है लोकसभा का परिणाम जहां वह देश में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकॉर्ड बना देते हैं. हालात बदलते हैं. भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना पाती है. उन्हें केंद्र में कृषि मंत्री का पद दिया जाता है. झारखंडमें चुनाव प्रभारी बना दिया जाता है. आज उनके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की अटकलें चल रही हैं. बस, छह से आठ महीनों के भीतर उनके लिए सबकुछ बदल गया. फर्श की तरफ जाता हुआ उनका करियर फिर कुलांचे भरने लगा.

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बिहार के नीतीश कुमार की ही बात लीजिए. उनके बाद सीएम कौन होगा? जेडीयू कौन संभालेगा? पार्टी लालू खा जाएंगे. तेजस्वी चबा जाएंगे. भाजपा ही कब्जा कर लेगी...लेकिन हुआ क्या? केंद्र में आज वह मोदी के तारणहार हैं. उनके समर्थन से मोदी सरकार चल रही है. पलटूराम वाली अपनी छवि के विपरीत पिछले किसी भी मौके परऐसा नहीं लगा कि वह मोदी सरकार के लिए खतरा हो सकते हैं. उनकी अहमियत बढ़ी हुई है. भाजपा उनके ही नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. अप्स एंड डाउन के बीच पिछले 20 सालों से वह बिहार में सरकार चला रहे हैं. अगली बार भी उनके ही सीएम बनने की बात कही जा रही है.देश के कद्दावर नेता शरद पवार की ही बात लीजिए. वह महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य हैं. पितामह हैं. जाने क्या-क्या हैं. सबसे कम उम्र में महाराष्ट्र के सीएम बने. फिर राष्ट्रीय राजनीति में किंग मेकर बन गए. बाद में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस से बाहर आ गए. अपनी पार्टी बनाई. जब-जब उन्हें खारिज करने की बात आई. वह फिर बड़े रोल में उभर कर सामने आए. महाराष्ट्र की पिछली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी बनाने के पीछे उनका ही सबसे बड़ा हाथ माना गया था. उन्होंने ही कांग्रेस को उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने के लिए तैयार किया. एक बार फिर राज्य में किंग मेकर के रोल में दिखे. फिलहाल भतीजे के विद्रोह से जूझ रहे हैं. पार्टी को अजित पवार के कब्जे से निकालने की कोशिश में जुटे हैं. 84 साल के हो चुके हैं. सियासत में जमे हैं. कब उनका जलवा जलाल हो जाए कहा नहीं जा सकता.

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मोदी सरकार के एक और दोस्त चंद्रबाबू नायडू की सियासी कहानी भी रोलर कोस्टर राइड की तरह है. आंध्र प्रदेश के सबसे लोकप्रिय अभिनेता रहे एनटी रामाराव के दामाद नायडू ने उन्हीं से विद्रोह करके सरकार पर कब्जा किया था. फिर लंबे समय तक आंध्र प्रदेश पर शासन किया. नायडू ने मोदी से पहले वाजपेयी सरकार को भी समर्थन दिया था. उनके एक इशारे पर सरकार इधर से उधर होती थी. तब कहा जाता थाकि सरकारें आंध्र भवन से चलती थीं. फिर एंट्री होती है आंध्र प्रदेश के एक और लोकप्रिय मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी के बेटे जगन मोहन रेड्डी की...जिन्होंने पूरे राज्य का दौरा कर 2019 में बंपर जीत हासिल की. 13 साल से ज्यादा समय तक राज्य के सीएम रहे नायडू लगभग हासिये पर चले गए. उन्हें लगभग दो महीने तक जेल में रखा गया. तब उन्हें केंद्र से कोई मदद मिल नहीं पा रही थी. जगन मोहन मोदी सरकार को बिना शर्त संसद में समर्थन देने का काम कर रहे थे. ऐसे हालात में कोई और होता तो टूट जाता लेकिन नायडू सियासी अखाड़े के खांटी पहलवान हैं. एक बार फिर जोर लगाकर खड़े हो गए. उन्होंने ना सिर्फ राज्य के मेगास्टार पवन कल्याण के साथ गठबंधन किया बल्कि राज्य में जोरदार जीत पाई. आज वह मोदी सरकार के तारणहार बने हुए हैं. नए राज्य और उसकी राजधानी के लिए मदद पा रहे हैं.

पास के राज्य तमिलनाडु की सियासत में तो जयललिता और करुणानिधि के रूप में इस तरह के दो जबर्दस्त उदाहरण हैं. इनमें से कोई एक जीतता था तो दूसरे से बदला लेने पर उतारू हो जाता था. उसे जेल भिजवाता था. उसका आर्थिक और राजनीतिक साम्राज्य तहस-नहस करना शुरू कर देता था. नेताओं को तोड़ना, आर्थिक सोर्स बंद करना जैसे काम होते थे. लेकिन अगले चुनावों में फिर पहला ताकतवर होकर उभरता था.कुल मिलाकर ऐसा मानने में कोई गुरेज नहीं है कि राजनीति में स्थायी तौर पर कोई खत्म नहीं माना जा सकता है. हां, उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं. तो अगली बार जब किसी भी सियासतदां की पारी को खत्म मानने का विचार आपके दिमाग में आए तो बस जरा इन धरती पकड़ नेताओं की पारी को याद कर लीजिए.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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