दिल्ली की कानून व्यवस्था को लेकर अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को प्रेस कान्फ्रेंस में बीजेपी और अमित शाह की जमकर खबर ली. दिलचस्प ये है कि अरविंद केजरीवाल जब कोई मुद्दा उठाते हैं तो उसका जवाब या तो भाजपा प्रवक्ता देते हैं या फिर भाजपा का आईटी सेल. दिल्ली भाजपा का ऐसा कोई नेता सामने नहीं आता, जिसे केजरीवाल का चैलेंजर कहा जा सके. वो चेहरा जिसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करे. और भाजपा की यही कश्मकश अरविंद केजरीवाल की ताकत है. क्योंकि, उनको चुनौती देने वाला कोई चेहरा नहीं है.
2013 के बाद से बीजेपी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मुकाबले कोई मजबूत चेहरा नहीं उतार सकी है. 2015 में बाहर से किरण बेदी को सीएम फेस बनाकर एक प्रयोग किया, लेकिन सिर्फ 3 विधानसभा सीटें ही जीत पाई - और तब किरण बेदी भी अपना चुनाव हार गई थीं.
2020 का चुनाव बीजेपी बिना चेहरे के लड़ी थी. बीजेपी जब ऐसे चुनाव लड़ती है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही चेहरा होते हैं. 2023 के विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ऐसा ही किया था. 2024 के लोकसभा के बाद के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने किसी भी चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था. हरियाणा में नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री चुनावों को ध्यान में रखकर ही बनाया गया था, लेकिन बीजेपी ने एक रणनीति के तहत कई नेताओं से बयान दिला दिया कि वे भी दावेदार हैं. महाराष्ट्र में तो बीजेपी नेता अमित शाह ने बोल ही दिया था कि एकनाथ शिंदे 'फिलहाल' मुख्यमंत्री हैं, और मतलब आप देख ही रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर और झारखंड की बात करें तो वहां ऐसा करने का बहुत मतलब भी नहीं था. मोर्चे पर रविंद्र रैना जम्मू-कश्मीर में और झारखंड में बाबूलाल मरांडी तैनात जरूर रहे, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाये गये थे.
अब बारी दिल्ली की आ चुकी है, और असल बात तो ये है कि दिल्ली में अभी तक बीजेपी के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे वो अरविंद केजरीवाल के मुकाबले खड़ा कर सके - और अभी तक इस बारे में औपचारिक तौर पर बीजेपी की तरफ से कुछ बताया भी नहीं गया है.
दिल्ली में क्या है बीजेपी की स्ट्रैटेजी
बीजेपी खेमे से जिस तरह की खबरें आ रही हैं, ऐसा लगता है कि बीजेपी अरविंद केजरीवाल को बहुत हल्के में ले रही है. हल्के में तो बीजेपी अरविंद केजरीवाल को शुरू से ही ले रही है, लेकिन हर बार मामला भारी पड़ जाता है.
2013 में बीजेपी का चेहरा डॉक्टर हर्षवर्धन थे, और तब सबसे ज्यादा 32 सीटें बीजेपी को मिली थी, लेकिन बीजेपी ने सरकार नहीं बनाने का फैसला किया, और केजरीवाल ने कांग्रेस को हराने के बाद भी उसी के सपोर्ट से सरकार बना ली थी. तब आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं.
2015 के चुनाव में बीजेपी ने बाहर से किरण बेदी को लाकर पैराशूट एंट्री दी, और कार्यकर्ताओं ने ही बीजेपी को हरा दिया. 2020 में बीजेपी बगैर चेहरे के चुनाव लड़ी थी. मनोज तिवारी कहने को तब प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन बीजेपी नेता अमित शाह जब भी अरविंद केजरीवाल को बहस के लिए चैलेंज करते, उनकी जबान पर मनोज तिवारी नहीं बल्कि प्रवेश वर्मा का ही नाम आ जाता.
और इस बार भी सुनने में आ रहा है कि बीजेपी का फोकस व्यक्ति पर नहीं, मुद्दों पर है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि बीते दस साल से सत्ता पर लगातार काबिज अरविंद केजरीवाल के सामने सत्ता विरोधी लहर की भी चुनौती है, इसलिए पार्टी चेहरे के बजाय सड़कों की हालत और अरविंद केजरीवाल पर लगे आरोपों को उछालने की कोशिश करेगी.
अरविंद केजरीवाल को घेरने के लिए कैलाश गहलोत जैसा एक नेता भी बीजेपी को मिल गया है, जिसका पूरा इस्तेमाल किया जाना है. दिल्ली शराब घोटाला और मुख्यमंत्री आवास के शीशमहल का मुद्दा तो मार्केट में चल ही रहा है.
अभी तो यही लगता है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में भी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ही डबल इंजिन सरकार के दावे के साथ उतरेगी. अब तरकश में छिपी हुई कोई तीर बीच बीच में नजर आये तो लोग अपने अपने हिसाब से अंदाजा लगा सकते हैं.
दिल्ली में नजर आएंगे बीजेपी के 7 चेहरे
आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल भले ही अग्निपरीक्षा देने की बात कर रहे हों, लेकिन असली इम्तिहान तो दिल्ली के सांसदों का होने वाला है. ये विधानसभा चुनाव बीजेपी से बड़ी अग्निपरीक्षा दिल्ली के सभी सांसदों के लिए साबित होने वाला है.
सूत्रों के के हवाले से खबर आई है कि बीजेपी की तरफ से सांसदों को साफ साफ बोल दिया गया है कि उनकी लोकसभा सीट के अंतर्गत पड़ने वाली सभी 10 विधानसभाओं में चुनाव जीतने की जिम्मेदारी उनकी ही है.
सुनने में आया है कि चुनाव जीतने के बाद जब दिल्ली के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचे थे, तभी उनको ये टास्क दे दिया गया था. वो समझ लें कि बीजेपी उन्हें जिताकर लोकसभा तक लाई है, और अब दिल्ली में बीजेपी को लाना उनकी जिम्मेदारी है.
मुश्किल ये है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी को अब तक कोई नेता भी नहीं मिल सका है. 2020 की हार के बाद संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की तरफ से सलाहियत भी दी गई थी कि बीजेपी दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व की तलाश करे, मोदी-शाह के भरोसे न बैठे रहे. मोदी-शाह हर चुनाव नहीं जिता सकते - चुनाव सिर पर आ गया है, लेकिन बीजेपी कोई स्थानीय नेता प्रोजेक्ट नहीं कर सकी है.
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