एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने या न बनने से उद्धव ठाकरे की राजनीतिक सेहत पर सीधा फर्क पड़ेगा | Opinion

4 1 6
Read Time5 Minute, 17 Second

उद्धव ठाकरे का एकनाथ शिंदे के प्रति आक्रामक होना स्वाभाविक है. सरेआम ‘गद्दार’ कहा जाना निश्चित तौर पर एकनाथ शिंदे के समर्थकों को अच्छा नहीं लगता होगा. उद्धव ठाकरे के समर्थकों को ऐसी बातें सुनकर भले ही थोड़ा सुकून मिलता हो, लेकिन कुल मिलाकर तो नुकसानदेह ही साबित हुआ.

अब तो ये भी कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र के लोगों ने ‘गद्दार’ को ही शिवसेना का असली हकदार मान लिया है. चुनावों के दौरान उद्धव ठाकरे एक बात बार बार दोहराते रहते थे कि इस बार असली और नकली शिवसेना का फैसला जनता कर देगी - और जनता ने कर दिया है. लोकसभा चुनाव में जनता का जो मूड था, वो विधानसभा चुनाव में पूरी तरह बदल चुका था.

ऐसे भी समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र की जनता ने उद्धव ठाकरे वाली जगह एकनाथ शिंदे को सौंप दी है, उसी उम्मीद के साथ कि जिस बात के लिए लोग शिवसेना की पर भरोसा करते थे, वो शिवसेना जारी रखेगी.

और एकनाथ शिंदे का जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाना इस बात पर भी निर्भर करता है कि वो आगे भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहते हैं या नहीं - और ये बात उद्धव ठाकरे की राजनीति के लिए भी बहुत ज्यादा मायने रखती है.

Advertisement

एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के फायदे और नुकसान

शिवसेना में उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत के बाद बंटवारा भर हुआ था. पहले विधानसभा, फिर चुनाव आयोग में और बाद में सुप्रीम कोर्ट में भी एकनाथ शिंदे का ही पक्ष भारी रहा, लेकिन अभी अंतिम फैसला नहीं आया है. पार्टी का का नाम और चुनाव निशान फिलहाल एकनाथ शिंदे के पास ही है.

चुनाव आयोग और कानून के कोर्ट के बाद अब जनता की अदालत में भी बंटवारे पर मुहर लगा दी गई है, बल्कि एकनाथ शिंदे को मालिकाना हक सौंप दिया गया है.

चूंकि बंटवारा तो विधानसभा में ही हुआ था, इसलिए लोकसभा चुनाव के नतीजे गौण हो जाते हैं, असली फैसला तो विधानसभा चुनाव में ही होना था, हो गया है. बीएमसी चुनाव में तो बंटवारे का पोस्टमॉर्टम होगा.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद एकनाथ शिंदे का हक तो बनता ही है, बड़ी जिम्मेदारी भी आ गई है. महाराष्ट्र के लोग अब एकनाथ शिंदे की तरफ भी उसी उम्मीद से देख रहे होंगे, जैसे कभी उद्धव ठाकरे की तरफ देख रहे होंगे.

जिम्मेदारी मिलने के साथ ही एकनाथ शिंदे का आगे का सफर जोखिमभरा भी है - अगर एकनाथ शिंदे फिर से मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो उद्धव ठाकरे की राजनीति हमेशा के लिए खत्म भी हो सकती है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को लेकर महायुति में अभी फाइनल फैसला नहीं हुआ है.
अगर बीजेपी राजी नहीं और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गये तो शिवसेना पर काबिज होने के लिहाज से उनके लिए अच्छा नहीं होगा - और जो कुछ भी एकनाथ शिंदे के लिए बुरा होगा, वो तो साफ तौर पर उद्धव ठाकरे के लिए अच्छा होगा ही.

Advertisement

MNS नेता राज ठाकरे की जो मौजूदा स्थिति है, उससे भी समझने की कोशिश की जा सकती है. राज ठाकरे में वो सारी खासियतें हैं, जो शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे में हुआ करती थी - लेकिन राज ठाकरे का सत्ता की राजनीति से बाहर रहना बर्बादी की वजह बन गया. अब इससे बुरा क्या कहा जाएगा कि उनके बेटे अमित ठाकरे भी माहिम से चुनाव हार चुके हैं. हारे ही नहीं, बल्कि तीसरे नंबर पर आ गये.

फर्ज कीजिये एकनाथ शिंदे भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाते, फिर वो बात तो रहेगी नहीं. बात बात के लिए उस शख्स का मोहताज रहना होगा, जिसके हाथ में सत्ता की कमान होगी - और ये बात तो उद्धव ठाकरे के पक्ष में ही जाएगी.

शिंदे और उद्धव दोनो के लिए महत्वपूर्ण है बीएमसी चुनाव

लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तासीर और तेवर अलग होते हैं, अगर स्थानीय निकायों के चुनाव से तुलना करें तो. बीएमसी चुनाव भी एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के लिए वैसा ही साबित होने वाला है.

बीएमसी चुनाव के नतीजे इस बात से भी प्रभावित हो सकते हैं कि एकनाथ शिंदे फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं कि नहीं?

सत्ता का प्रभाव अलग ही होता है. उपचुनावों में सत्ताधारी दलों की जीत के पीछे असली वजह यही होती है. हालिया उपचुनावों के नतीजे भी मिलते ही जुलते मैसेज दे रहे हैं.

Advertisement

उद्धव ठाकरे की आखिरी राजनीतिक उम्मीद बीएमसी के चुनाव ही माने जा रहे हैं. और, अगर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री नहीं बनते तो ये उम्मीद उद्धव ठाकरे के लिए और भी बढ़ सकती है.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

उदयपुर राजघराने में घमासान: 1984 का वो फैसला... राजतिलक के बाद भी नए महाराणा विश्वराज सिंह को क्यों नहीं मिली सिटी पैलेस में एंट्री?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोमवार को राजस्थान के उदयपुर के पूर्व राजघराने का विवाद अब सड़क पर आ गया है। महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनेक बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक हुआ। राजतिलक की रस्म के बाद वह धूणी माता के दर्शन के लिए सिटी पैलेस

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now