प्रदूषण से बचने के लिए देश की राजधारी शिफ्ट कर देंगे, लेकिन दिल्‍ली के 3 करोड़ लोगों का क्‍या? | Opinion

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शशि थरूर ने दिल्ली में प्रदूषण से पैदा हालात परचिंता जताई है. उन्‍होंने दिल्‍ली के देश कीराजधानी बने रहने के औचित्‍य पर सवाल उठाया है. अगर उनके सवाल का मतलबये निकाला जा रहा है कि देश की राजधानी को दिल्ली से कहीं और शिफ्ट कर देना चाहिये, तो ये न तो कोई सॉल्यूशन है, न ही कोई अच्छी सलाहियत.

दिल्ली को देश की राजधानी बनाये रखने को लेकर शशि थरूर ने सोशल साइट X पर जो सवाल उठाया है, वो आम जनमानस ही नहीं व्यवस्था के लिए भी फिक्र की बात होनी चाहिये. लेकिन, क्या देश की सरकार, और सरकारी व्यवस्था इतनी लचर हो गई है कि चीजों को ठीक करने की जगह, मुश्किलों से भागना पड़ रहा है? ये बड़ा सवाल तो है ही कि दिल्ली साल-दर-साल प्रदूषण की स्थिति गंभीर क्यों होती जा रही है - हर साल दिवाली के बाद दिल्ली की हवा जहरीली क्यों हो जाती है?

शशि थरूर का सवाल है कि दिल्ली में प्रदूषण से जो हाल हो रखा है, क्या उसके बाद भी दिल्ली को देश की राजधानी बनाये रखना चाहिये? या कहें कि दिल्ली के देश की राजधानी बने रहने का कोई मतलब रह गया है?

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सुप्रीम कोर्ट भी ये सवाल उठा चुका है, लोग इस गैस चैंबर में क्यों हैं? सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी वैसी ही लगती जैसा कि अदालत ने सीबीआई के बारे में एक बार कहा था, जैसे कोई 'पिंजरे का तोता' हो.

शशि थरूर ने सिर्फ सवाल किया है, या सलाह भी दी है?

सोशल साइट एक्स पर शशि थरूर ने दिल्ली में प्रदूषण की विकराल स्थिति को लेकर एक पोस्ट लिखी है, जिस पर काफी लोगों ने प्रतिक्रिया दी है. और, बहुत सारे X यूजर अपने अपने हिसाब से उन संभावित शहरों के नाम भी बताने लगे हैं जिन्हें देश की राजधानी बनाया जा सकता है.

शशि थरूर ने अपनी पोस्ट में दिल्ली की तुलना ढाका से की है, और दुनिया भर के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों के नाम बताने वाली एक तस्वीर भी शेयर की है. असल में, बांग्लादेश के ढाका शहर का नाम दिल्ली के ठीक बाद यानी दूसरे नंबर पर है.

कांग्रेस नेता ने लिखा है, दिल्ली आधिकारिक तौर पर दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर है... चार गुणा खतरनाक स्तर पर और दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर ढाका से करीब 5 गुणा ज्यादा खराब स्थिति है... ये सही नहीं है कि हमारी सरकार वर्षों से इस संकट को देख रही है, और कुछ भी नहीं कर रही है.

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शशि थरूर ने बताते हैं, मैंने 2015 से सांसदों, विशेषज्ञों और संबंधित के साथ वायु गुणवत्ता पर गहन चर्चा करता आ रहा था, लेकिन पिछले साल ये सब बंद कर दिया, क्योंकि न तो इससे कोई बदलाव ही हो रहा था, न ही किसी को भी ऐसी बातों की परवाह ही दिखी.

हर साल नवंबर से जनवरी के बीच दिल्ली की हालत का जिक्र करते हुए शशि थरूर ने पूछा है, क्या इसे देश की राजधानी बने रहना चाहिये?

शशि थरूर के सवाल पर लोगों की तरफ से सोशल मीडिया पर सलाहों ही बौछार होने लगी है. वैसे भी अपने देश में सबसे ज्यादा सलाह ही दी जाती है, जो व्हाट्सऐप के फॉर्वर्डेड मैसेज की तरह लगती है.

लोगों की तरफ से देश की संभावित राजधानी के रूप में जिन शहरों के नाम आ रहे हैं, वे हैं - चेन्नई, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद और अहमदाबाद. जाहिर है, ये सलाह लोगों की अपनी अपनी पसंद के हिसाब से सामने आ रहे हैं.

ऐसे ही एक यूजर की सलाह पर शिवगंगा से कांग्रेस सांसद कार्ति पी. चिदंबरम की भी प्रतिक्रिया देखने को मिली है. देश की राजधानी दिल्ली से चेन्नई कर देने की सलेम धरणीधरण के सुझाव पर कार्ति चिदंबरम पूछते हैं, क्या चेन्नई सबसे साफ सुथरा है? वाकई?

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क्या देश की राजधानी बदल देने से दिल्ली दुरुस्त हो जाएगी?

शशि थरूर के सवाल और राजधानी बदले जाने की लोगों की सलाहों के बीच इंडोनेशिया का भी जिक्र चल पड़ा है. 2022 में, इंडोनेशिया ने पर्यावरण की चुनौतियों और जलवायु संबंधी चिंताओं से परेशान होकर अपनी राजधानी जकार्ता से नुसंतारा में शिफ्ट करने का कानून पास किया. जकार्ता से करीब 1 हजार किलोमीटर दूर नये शहर में राजधानी फिलहाल निर्माणाधीन है. बताते हैं कि राजधानी के पूरी तरह से शिफ्ट होने का काम 2045 तक ही शिफ्ट होने की अपेक्षा है. इस मामले में होने वाले खर्च की तो बात ही अलग है.

अलग अलग मुल्कों की अलग अलग परिस्थितियां होती हैं, लेकिन अगर इंडोनेशिया के हिसाब से भी देखें और थोड़ी देर के लिए मान लें कि भारत सरकार भी ऐसा कोई कानून पास कर लेती है तो ये काम 2047 तक पूरा हो पाएगा - जब देश स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मना रहा होगा.

लेकिन ऐसा किया जाना तो समस्या से भागने वाली बात होगी. करीब करीब वैसे ही जैसे जिंदगी से भाग कर जब लोग आत्महत्या जैसा आखिरी कदम उठाते हैं, तो उसे कायरता करार दी जाती है - राजधानी बदल डालने की जगह क्या ऐसा कोई उपाय नहीं खोजा जा सकता है कि दिल्ली को भी प्रदूषण से निजात दिला दी जाये.

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ऐसा भी नहीं है कि ये पूरे साल का मामला है. फरवरी से अक्टूबर तक तो करीब करीब सब ठीक ही रहता है, क्योंकि ज्यादा मुश्किल तो नवंबर से जनवरी तक ही नजर आती है - क्या कुछ दिनों के लिए प्रदूषण की समस्या को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है?

दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाने में जो खर्च आएगा, वो तो दिल्ली से राजधानी शिफ्ट करने के मुकाबले मामूली ही होगा - और ये चिंता सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की बीजेपी सरकार की ही नहीं, बल्कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार की भी होनी चाहिये.

फर्ज कीजिये देश की राजधानी दिल्ली से कहीं और शिफ्ट कर दी जाये. शशि थरूर के लिए तो ये अच्छा हो जाएगा. संसद सत्र में हिस्सा लेने के लिए उनको दिल्ली नहीं आना पड़ेगा. ऐसा ही बाकी सरकारी कामकाज के लिए भी दिल्ली की तरफ देखने की भी जरूरत नहीं होगी. ये भी दिलचस्प है कि ऐसी चर्चा ऐसे वक्त हो रही है, जब कुछ ही दिनों में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं.

राजधानी का क्या चली जाएगी. जैसे जगहों के नाम बदल दिये जाते हैं, सरकार चाहे तो ये भी कोई मुश्किल काम नहीं होगा. खर्चीला मामला जरूर है, लेकिन नामुमकिन तो कतई नहीं - लेकिन, शशि थरूर ने क्या दिल्लीवालों के बारे में भी कुछ सोचा है?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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