महाराष्ट्र में महायुति गजब का चुनाव लड़ रहा है.बीजेपी आक्रामक हिंदुत्व पर उतर आई है. दूसरी तरफ उसका एक सहयोगी दल एनसीपी और कुछ बीजेपी नेता बंटेंगे तो कटेंगे के विरोध पर उतर आए हैं. बंटेंगे तो कटेंगे या एक हैं तो सेफ हैं भाजपा मेंइस बार के महाराष्ट्र चुनाव अभियान का सबसे बड़ा मुद्दा है. इतना ही नहीं पार्टी ने अपने घोषणापत्र में धर्मांतरण विरोधी कानून का वादा किया है, किसानों को यह कहकर चेताया जा रहा है कि कांग्रेस के शासन में उनकी जमीन वक्फ बोर्ड के कब्जे में जा सकती है.पार्टी के अन्य नेताओं ने कांग्रेस को स्वतंत्रता-पूर्व हैदराबाद राज्य के रजाकारों से भी जोड़ा है. बीजेपी नेता उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का एक वीडियो सामने आया, जिसमें उन्होंने एआईएमआईएम को औरंगजेब से जोड़ते हुए जबरदस्त हमला किया है और पाकिस्तान पर कब्जा करने का वादा किया है. पर ठीक इसके विपरीत पार्टी और गठबंधन में इसके खिलाफ आवाजें भी उठने लगी हैं. पर किसी के भी खिलाफ कोई एक्शन नहीं है.सब घालमेल है. पर बीजेपी जैसी पार्टी में इतना घालमेल अपने आप नहीं हो सकता है. कोई भी राजनतिक विश्लेषक इसे स्वीकार नहीं कर सकता.
1- देखिए कितना विरोधाभास है
सबसे पहले एनसीपी नेता अजित पवार बंटेंगे तो कटेंगे के खिलाफ बोलते हैं. इसके पहले कहते हैं कि एनसीपी के कैंडिडेट के लिए मोदी-योगी या शाह सभा नहीं करेंगे. पर 12 नवंबर को अजित पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुणे रैली के मंच पर बात करते देखा गया , लेकिन 14 नवंबर की मुंबई की रैली से गायब हो जाते हैं. एनसीपी नेता बीजेपी और पीएम मोदी तक को भला बुरा कहने वाले नवाब मलिक की बेटी को टिकट देते हैं. फिर बाद में नवाब मलिक को भी टिकट देते हैं. इसके पहले बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी को भी टिकट देते हैं. बीजेपी हर बार सिर्फ विरोध करती है. मिलना जुलना चलता रहता है. एनसीपी नेता अजित पवार बीजेपी के धर्मांतरण एनसीपी नेता ने कहा वो उससे सहमत नहीं है. इसके बाद बीजेपी नेता पंकजा मुंडे भी बंटेंगे तो कटेंगे का विरोध करती हैं.कहतीं हैं कि ये उत्तर प्रदेश के लिए ठीक है पर महाराष्ट्र में इसके लिए जगह नहीं है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान बीजेपी के राज्यसभा सदस्य अशोक चह्वान के विरोध के बाद मामला गंभीर होता है. पर बीजेपी चुप है. उसके नेता चुप हैं. क्या महाराष्ट्र में हिंदुत्व के इस उभार को पार्टी नेता पचा नहीं पा रहे हैं. क्या और भी नेता हैं जो अंदर ही अंदर सुलग रहे हैं? या ये बगावती भाषा इंटरनल पॉलिटिक्स की देन है? या सभी आपस में राजी खुशी हो रहा है.
2-जातिवाद और किसानों के मुद्दों पर बीजेपी पिछड़ रही थी समाधान हिंदुत्व में दिखा
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी से मराठे नाराज हैं. राहुल गांधी के जाति जनगणना का दांव अगर चल गया तो पिछड़े वोटों में सेंध लगना तय दिख रहा है.दलित वोट जिस तरह लोकसभा चुनावों में रूठ गए थे उन्हें वापस लाने में अभी भी पार्टी को दिक्कत दिख रही है. इन सबका को एक ही उपाय से बांधे रखा जा सकता है. इसके लिए बीजेपी सकल हिंदू समाज नामक संगठन के जरिए राज्य भर में लव जिहाद विरोधी रैलियां करवा रहीं थी. जिसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं का समर्थन प्राप्त है. देवेंद्र फडणवीस ने यूं ही नहीं वोट जिहाद को चुनावी चर्चा में शामिल कर लिया है.मुंबई की वर्सोवा सीट पर फडणवीस ने कहा, लव जिहाद और लैंड जिहाद का मुकाबला धर्म युद्ध से करना होगा.दरअसल भाजपा को चिंता वाजिब है कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के पीछे मराठा-मुस्लिम एकता बन गई तो वो साफ हो सकती है.इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि भाजपा ने जब यह रणनीति तभी यह स्पष्ट हो गया कि जाति और किसान मुद्दों को सुलझाने के प्रयास पर्याप्त परिणाम नहीं दे रहे हैं.एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार किसान महायुति द्वारा कृषि क्षेत्र के खराब प्रबंधन को लेकर कई शिकायतें गिनाते हैं पर लेकिन यह भी कहते हैं कि हिंदुत्व एजेंडा बनाए रखने का श्रेय उन्हें यानि बीजेपी को देना होगा.
3- हिंदुओं के साथ मुसलमानों का भी वोट चाहिए
दरअसल जिस तरह का विरोध हो रहा है ये सब ऐसा लगता है कि महायुति के नेता हिंदुओं के साथ अल्पसंख्यकों का वोट भी हासिल करना चाहते हैं.अब देखिए अजित पवार इसलिए विरोध में खड़े हैं, क्योंकि उनके वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अल्पसंख्यक वर्ग से आता है.यही कारण है कि उन्होंने चुनावों में नवाब मलिक की बेटी सना मलिक, हसन मुश्रीम, बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्धीकी समेत कई मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. जाहिर है कि वो चाहते हैं कि मोदी और बीजेपी के नाम पर हिंदुओं के वोट मिल जाएं और बंटेंगे तो कटेंगे का विरोध करके अल्पसंख्यक वोट भी मिल जाएं.पर यह आग से ही खेलना है. हो सकता है कि दोनों ही एनसीपी कैंडिडेट से दूरी बरतें. इसी तरह पंकजा मुंडे का विरोध है. वो एक दिग्गज ओबीसी नेता हैं उनकी राजनीति बीड के इर्द गिर्द घूमती है. जहां 12 फीसदी मुस्लिम वोटर एक्स फैक्टर हैं.पंकजा नहीं चाहती हैं कि ये वोटर्स एमवीए की ओर चले जाएं.दूसरे उनकी खुन्नस प्रदेश बीजेपी से भी है. हो सकता है कि इंटरनल पॉलिटिक्स के चलते वो ऐसा बोल रही हों. तीसरे नेता हैं अशोक चव्हाण . चव्हाण लंबे वक्त तक कांग्रेसी रहे हैं. वे नांदेड़ से राजनीति करते रहे हैं जहां मुस्लिमों की आबादी लगभग 14 फीसदी है. भोकर से उनकी बेटी श्रीजया भी चुनावी मैदान में हैं.चूंकि तमाम मुस्लिम कार्यकर्ता और नेताओं से उनके पुराने संबंध हैं . उन संबंधों को बनाए भी रखना है और उन्हें भुनाना भी है. अगर एक नारे का विरोध करके कुछ पुराने संबंध बने रहते हैं तो बुराई क्या है.
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