प्रशांत किशोर चाहते थे कि बिहार में होने वाले उपचुनावों की तारीख भी टाल दी जाये. बिहार की चार विधानसभा क्षेत्रों बेलागंज, इमामगंज, रामगढ़ और तरारी में उपचुनाव होने हैं. प्रशांत किशोर चाहते थे कि बिहार में 13 नवंबर के बजाय 20 नवंबर को उपचुनावों के लिए वोटिंग 20 कराई जाये.
अव्वल तो सुप्रीम कोर्ट ने जन सुराज पार्टी की याचिका खारिज कर दी है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर प्रशांत किशोर उपचुनावों के लिए नई तारीख लेना ही क्यों चाहते थे?
प्रशांत किशोर को सुप्रीम कोर्ट से मदद क्यों नहीं मिली
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरी है, और चारों सीटों से उसके उम्मीदवार मैदान में हैं. प्रशांत किशोर चाहते थे कि बिहार में उपचुनावों की तारीख यूपी और पंजाब की तरह बदल दी जाये - और इसी उम्मीद से वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की बेंच ने ये कहते हुए जन सुराज पार्टी की पीठ ने पीके की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, हमें चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना पसंद नहीं है.
जन सुराज पार्टी की तरफ से याचिका में दलील दी गई थी कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल में उपचुनावों की तारीख धार्मिक आयोजनों के आधार पर बदल दी गई है, लेकिन चुनाव आयोग ने बिहार में छठ जैसा लोक पर्व होने के बावजूद उपचुनावों की तारीख आगे नहीं बढ़ाई है. याचिका में कहा गया था, चुनाव आयोग का बिहार में चुनाव स्थगित करने के अनुरोध पर विचार न करना अन्यायपूर्ण, और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है.
जन सुराज की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश की थी एक ही अधिसूचना से कुछ चुनाव स्थगित हो गये, तो बिहार चुनाव स्थगित होना चाहिये. उनका कहना था कि चुनाव आयोग केरल, उत्तर प्रदेश और पंजाब के लिए ऐसा करता है तो एक राज्य के लिए क्यों नहीं?
15 अक्टूबर को चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर उपचुनाव के लिए वोटिंग की तारीख 13 नवंबर फाइनल की थी. चुनाव नतीजे तो अब भी 23 नवंबर को ही आने वाले हैं, लेकिन बाद में मतदान की तारीख बदल दी गई थी. बीजेपी की तरफ से यूपी सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने 27 अक्तूबर को चुनाव आयोग को पत्र लिखा था, जिसमें कार्तिक पूर्णिमा की वजह से मतदाननी की तारीख में बदलाव की मांग की गई थी.
चुनाव आयोग ने यूपी में उपचुनाव के लिए मतदान की तारीख 13 नवंबर से बदल कर 20 नवंबर कर दी है. चुनाव आयोग की तरफ से नई तारीख की घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना था कि बीजेपी चुनाव हारने के डर से ऐसा कर रही है.
चुनाव आयोग के बयान में कहा गया था कि बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस और आरएलडी की गुजारिश पर चुनाव की तारीखों को आगे बढ़ाया जा रहा है. चुनाव आयोग के मुताबिक, पंजाब में कांग्रेस की तरफ से ही चुनाव बदलने की रिक्वेस्ट की गई थी.
नई तारीख पर प्रशांत किशोर को क्या हासिल हो जाता
निश्चित तौर पर प्रशांत किशोर के सुप्रीम कोर्ट जाने से कुछ न कुछ फायदा तो मिला ही है. याचिका दायर करने और खारिज होने के बहाने जन सुराज पार्टी को अलग से पब्लिसिटी तो मिली ही. कम से कम दो बार खबर तो बनी ही. बिहार से बाहर भी जन सुराज पार्टी को मुख्यधारा के मीडिया में जगह तो मिली ही - सोशल मीडिया तो उनकी टीम मैनेज कर ही लेती है.
चुनावी हार-जीत अपनी जगह है, उपचुनावों में जन सुराज पार्टी ने अब तक जो संदेश दिया है, वो होनहार बिरवान जैसा संदेश तो कतई नहीं देता. तरारी और इमामगंज में जो हुआ, वैसी उम्मीद तो प्रशांत किशोर से बिलकुल नहीं थी - प्रशांत किशोर ने ऐसे व्यक्ति को तरारी से उम्मीदवार घोषित कर दिया जो बिहार में वोटर ही नहीं था. विधानसभा चुनाव में उम्मीदावर का राज्य का वोटर होना जरूरी होता है, ये तो उनको पता ही होना चाहिये था - अगर नहीं भी मालूम हो तो एक बार क्रॉस चेक तो बनता ही था.
वैसे ही इमामगंज सीट पर भी प्रशांत किशोर ने बड़े ही अजीब तरीके से प्रत्याशी बदला. पहले बताया गया कि सर्वे में जिस उम्मीदवार का नाम आया है, पार्टी उसकी जगह किसी दूसरे को उम्मीदवार बनाना चाहती है, लेकिन बाद में अमजद हसन को ही उम्मीदवार बना दिया गया.
एक बात तो है ही कि प्रशांत किशोर ने जातीय और राजनीतिक समीकरण देखकर ही चुनाव मैदान में उम्मीदवार उतारे हैं - शुरू में तो कुछ देर के लिए लगा भी कि शायद वो एक सीट निकाल लें, लेकिन अब तो पक्का लगता है कि उनकी भूमिका वोटकटवा से ज्यादा नहीं है - और जब ऐसा ही है तो तारीख बदल जाने से भी क्या कर लेते?
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