साल 1876 में संडे मर्करी में एफ. हार्वे स्मिथ ने लिखा था, 'जाओ. उसने ये सख्ती से कहा था. हम इसे स्टैंडऑफ कहते हैं, मैक्सिकन स्टैंडऑफ. इसमें आप भले ही अपना पैसा गंवा देते हैं, लेकिन आपकी जान बच जाती है.'
मैक्सिकन स्टैंडऑफ असल में एक तरह का मुहावरा है. इसका मतलब होता है- जब कई पार्टियां या लोग या संस्था एक ऐसी स्थिति में फंस जाती है, जिसे कोई नहीं चाहता, लेकिन ऐसी स्थिति से कोई पीछे हटना भी नहीं चाहता. इसमें कोई विजेता नहीं बनता और गुस्सा बढ़ता ही जाता है. कुछ इसी तरह की स्थिति में महाराष्ट्र के दोनों गठबंधन- महायुति और महा विकास अघाड़ी फंस गए हैं.
बुधवार को महा विकास अघाड़ी ने वादा किया कि अगर वो सत्ता में आए तो महिलाओं को हर महीने तीन हजार रुपये की मदद दी जाएगी. इससे एक दिन पहले ही महायुति ने महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये देने का वादा किया था.
महायुति गठबंधन की सरकार ने 2024-25 के बजट में लाडकी बहिन योजना की शुरुआत की थी, जिसके तहत प्रदेश की ढाई करोड़ महिलाओं को हर महीने 15सौ रुपये मिलते हैं. इस योजना की ज्यादातर लाभार्थियों को नवंबर तक का पैसा मिल चुका है. इस योजना से सरकारी खजाने पर 46 हजार करोड़ का बोझ पड़ने का अनुमान है.
2024-25 के बजट में सरकार ने एक और योजना का ऐलान किया था. अब सरकार सालाना आठ लाख रुपये से कम की कमाई करने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े और ओबीसी परिवारों की लड़कियों की उच्च शिक्षा तक का पूरा खर्चा उठाएगी.
मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के जरिए 52 लाख परिवारों को हर साल तीन गैस सिलेंडर फ्री मिलते हैं. मुख्यमंत्री बलिराजा विज सवालात योजना के जरिए 7.5 हॉर्सपॉवर से कम कैपेसिटी वाले पंपों का इस्तेमाल करने वाले 44 लाख किसानों को फ्री बिजली मिलती है. इनके अलावा, बुजुर्गों के लिए मुफ्त में तीर्थ यात्रा करवाने वाली योजना भी यहां लागू है. इन योजनाओं पर 94,889 करोड़ रुपये का खर्च होगा. इसमें से 75,039 करोड़ रुपये राज्य सरकार खर्च करेगी और बाकी का पैसा केंद्र से आएगा.
2024-25 में राज्य सरकार को रेवेन्यू से होने वाली कमाई 5.19 लाख रुपये होगी. जबकि, सरकार का रेवेन्यू डेफिसिट 20,051 करोड़ रुपये होगा. अब इन योजनाओं के चलते रेवेन्यू डेफिसिट 95,090 करोड़ रुपये पहुंच गया है. ये राज्य की जीडीपी का 2.2 फीसदी है. रेवेन्यू डेफिसिट को आर्थिक सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता.
राज्य के फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट बिल में कहा गया है कि रेवेन्यू डेफिसिट को जीरो पर लाया जाए, क्योंकि इससे सरकार को अपने रोजमर्रा के काम के लिए उधार लेना पड़ता है और कोई कैपिटल असेट नहीं बन पाती. लेकिन इस तरह की योजनाएं राजनीतिक वजहों के कारण बंद नहीं हो पातीं और राज्य पर बोझ बन जाती हैं.
मौजूदा समय में महाराष्ट्र सरकार अपनी कमाई में से 31 फीसदी सैलरी, 11.5 फीसदी पेंशन पर और 11 फीसदी ब्याज चुकाने पर खर्च करती है. इन योजनाओं पर 14 फीसदी खर्च होगा. इसका मतलब हुआ कि सरकार का 66 फीसदी खर्च ऐसी जगह होगा, जिसे वो कम नहीं कर सकती.
अब महा विकास अघाड़ी ने वादा किया है कि अगर वो सत्ता में आई तो गृहलक्ष्मी योजना के जरिए हर महीने महिलाओं को 3 हजार रुपये की मदद करेगी. इस पर 96 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. इसके अलावा, महा विकास अघाड़ी ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर बेरोजगार युवाओं को हर महीने 4 हजार रुपये, महिलाओं को बस की फ्री यात्रा, 25 लाख का मेडिकल कवर और किसानों का 3 लाख तक का कर्जा माफ किया जाएगा. इन योजनाओं की शर्तें अभी साफ नहीं है, इसलिए इनके खर्च का अनुमान लगाना मुश्किल है. हालांकि, किसानों की कर्जमाफी पर एक बार में 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च होने का अनुमान है.
इन चुनावी रेवड़ियों से सरकारी खजाने पर सालाना सवा लाख करोड़ रुपये का बोझ बढ़ने का अनुमान है. इससे आने वाले समय में सरकार को सैलरी और विकास योजनाओं तक के लिए उधार लेना पड़ सकता है. सरकार की उधार लेने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है.
इतना ही नहीं, बढ़ते आर्थिक बोझ के चलते सरकार के लिए नई भर्तियां करना भी मुश्किल हो सकता है. अलग-अलग विभागों और स्थानीय निकायों में 2.44 लाख पद खाली है. गृह विभाग में 46 हजार पद खाली हैं. स्वास्थ्य विभाग में 23 हजार से ज्यादा पद खाली है. इससे लोगों की बुनियादी सेवाएं पूरी करने में भी दिक्कत आ सकती है. उदाहरण के लिए, 2022 तक महाराष्ट्र में हर एक लाख आबादी पर 182 पुलिसकर्मी थे. जबकि, संयुक्त राष्ट्र के पैमाने के हिसाब से इतनी आबादी पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए. इससे केस दर्ज करने में दिक्कत होती है और जांच भी प्रभावित होती है.
इसी तरह से, राजस्व विभाग के अंतर्गत आने वाले तलाथियों के 4,644 पद खाली हैं. तलाथी गांवों में फसलों और जमीन का हिसाब-किताब रखते हैं. इसके अलावा राज्य में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या 1,08,507 है, यानी हर 10 हजार लोगों पर 8.5 वर्कर. जबकि, केरल में ये आंकड़ा 9.2 और कर्नाटक में 9.33 है.
महाराष्ट्र में बच्चों में कुपोषण की बहुत बड़ी समस्या है. इस समस्या से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर और ज्यादा आशा कार्यकर्ताओं की जरूरत है. महाराष्ट्र में 2022 तक हर 10 हजार लोगों पर आशा कार्यकर्ताओं की संख्या 5.5 थी. जबकि बिहार में ये आंकड़ा 7.16 और मध्य प्रदेश में 8.81 का था.
चुनावी रेवड़ियां बांटने के चक्कर में सरकार को भविष्य में शायद इन भर्तियों को भरने में मुश्किलें आएंगे. इससे जनता की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं होंगी और मुफ्त की सुविधाएं मिलने के बावजूद उनमें असंतोष बढ़ेगा.
महिलाओं को तीन हजार रुपये का देने का ये मतलब नहीं है कि सरकार पुलिसिंग और हेल्थकेयर को नजरअंदाज कर देगी. लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने से लंबे समय में चुनावी फायदा मिल सकता है. राजनेताओं को भी इस बात का अहसास है, लेकिन 'मैक्सिकन स्टैंडऑफ' के कारण वो अपने हाथ अब पीछे नहीं खींच पा रहे हैं.
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