महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी कई बार अपनी इच्छा जाहिर कर चुकी है. पर शायद कांग्रेस और एनसीपी की ओर से उसेकोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. कांग्रेस ने जहां AIMIM की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं मिलने की बात की तो शिवसेना ( यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा था कि उनके प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा. इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती है कि मुस्लिम हितों का मुख्य रूप से ध्यान रखने वाली असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन (AIMIM) महाराष्ट्र के चुनावों में एक परसेंट के करीब वोट हासिल करने में सफल होती रही है. पर इंडिया गठबंधन के दल अक्सर उस पर वोट काटने का आरोप लगाते रहे हैं. विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि ओवैसी की पार्टी से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मदद मिलती रही है. पर जब एआईएमआईएम खुद इंडिया गठबंधन में शामिल होनेकी बात कर रही है तो कोई भी पार्टी खुलकर ओवैसी से गठबंधन के मुद्दे पर बात क्यों नहीं कर रही है? क्या यह सही है कि चुनावी आंकड़े बताते हैं कि इन गैर-BJP दलों की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने में पार्टी का वास्तविक प्रभाव उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि सामान्य तौर पर समझा जाता है. आइये देखते हैं कि सही क्या है?
1- महाराष्ट्र में AIMIM का एक परसेंट वोट बदल सकता है प्रदेश का गणित
2019 के विधानसभा चुनावों में, AIMIM ने 44 सीटों पर चुनाव लड़ा, दो जीते और कुल वोटों का 1.34% प्राप्त किया. यह 2014 के मुकाबले काफी उल्लेखनीय सुधार था. क्योंकि तब पार्टी ने 22 सीटों पर चुनाव लड़ा, दो जीते और कुल वोटों का केवल 0.93% हासिल किया था. हालांकि AIMIM ने खुद को मुस्लिम समुदाय में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के मुकाबले खुद को मुसलमानों के हितों के लिए काम करने वाली पार्टी बताती रही है.पर आंकड़े बताते हैं कि इसका प्रभाव बहुत सीमित ही रहा.पर यह सीमित प्रभाव ही कभी कभी गणित में बड़ा उलट फेर करता रहा है. विशेषकर आज की चुनावी राजनीति में . हरियाणा में मात्र एक परसेंट से कम वोटों के चक्कर में आज कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ रहा है.
ठीक ऐसा ही महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के दौरान हुआ.मात्र 0.7 परसेंट वोट की बढत के बदौलत महाविकास आघाडी सत्तारूढ़ महायुति पर भारी पड़ी . एक परसेंट से भी कम वोटों के चलते महायुति को 17 सीटें मिलीं जबकि MVA ने 31 सीटों हथिया लीं. इसी तरह लोकसभा चुनावों में मिलेवोटों को अगर विधानसभावार देखा जाए तोमहाविकास आघाडी तकरीबन 160 सीटों पर आगे थी जबकि महायुति 128 सीटों पर आगे थी. अगर 0.7 परसेंट वोट से सीटों की संख्या में इतना बड़ा डिफरेंस होने का मतलब है कि एक-एक वोट की लड़ाई है.इसके बावजूद भी अगर इंडिया गठबंधन वाली एमवीए को ओवैसी को दूर रखने का मतलब है महायुति की जीत के लिए सेफ पैसेज देना.
2- महाराष्ट्र में पिछले चुनावों में AIMIM का प्रदर्शन
AIMIM ने 2019 में 44 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें मालेगांव और धुले जीतीं, और औरंगाबाद सेंट्रल, औरंगाबाद ईस्ट, बायकुला और सोलापुर सिटी सेंट्रल में दूसरे स्थान पर रही. पार्टी का प्रभाव 13 और सीटों पर महसूस किया गया, जहां इसे जीत के अंतर से अधिक वोट मिले. BJP और उसके सहयोगियों ने इनमें से सात सीटें जीतीं और छह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के हिस्से में गईं.
AIMIM ने 2014 में पत्रकार से नेता बने इम्तियाज जलील के औरंगाबाद सेंट्रल और बायकुला में अप्रत्याशित जीत के साथ महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रवेश किया. इंडियन एक्सप्रेस अखबार लिखता है किजलील की 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत, जहांवे 39 वर्षों में औरंगाबाद सेंट्रल का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले मुस्लिम बने, AIMIM के प्रदर्शन का शिखर था, खासकर प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) के साथ गठबंधन के बाद.हालांकि, पार्टी को बाद में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें सीट-बंटवारे के विवादों के कारण VBA के साथ गठबंधन का टूटना और 2019 के विधानसभा चुनावों में औरंगाबाद सेंट्रल और बायकुला दोनों सीटों को बनाए रखने में विफलता शामिल थी.
2024 में औरंगाबाद लोकसभा सीट पर इम्तियाज जलील की 1.30 लाख से अधिक वोटों से हार ने पार्टी के मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी अपील को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.ऐसा लगता है कि मुस्लिम मतदाताओं ने उन दलों की ओर रुख किया है जो BJP का अधिक प्रभावी ढंग से विरोध करने में सक्षम हैं. शायद यही कारण है कि कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियां नहीं चाहती हैं कि ओवैसी की पार्टी के साथ कोई गठबंधन किया जाए.
3- AIMIM का प्रस्ताव और खतरा किसके लिए
विधानसभा चुनावों से पहले अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए, AIMIM सक्रिय रूप से संगठनात्मक बदलाव कर रही है. और अपनी राजनीतिक रणनीति में भी बदलाव कर रही है.पार्टी ने लोकसभा चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार में भी जिस तरह प्रत्याशी उतारे थे उससे साफ लग रहा था कि बीजेपी को लाभ पहुंचाने के लिए पार्टी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. एआईएमआईएम लगातार इस कोशिश में है कि वह बीजेपी को लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव लड़ने के आरोपों से मुक्त हो सके. शायद यही कारण है कि कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन का प्रस्ताव पार्टी ने दिया है. जिसमें 28 सीटों पर सहयोग की पेशकश की गई है.हालांकि कांग्रेस इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक प्रतीत होती है,पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत का बयान पॉजिटिव दिख रहा था. पर कांग्रेस ने जिस तरह हाल ही में पूर्व औरंगाबाद सांसद इम्तियाज जलील पर BJP से समझौता करने के आरोपों को बढ़ावा दिया है उससे यही लगता है कि ओवैसी की पार्टी से गठबंधन दूर की ही कौड़ी है.
हालांकि एआईएमआईएम जैसी जटिल स्थिति पैदा कर रही है उससे तो यही लगता है कि एआईएमआईएम दबाव भी बना रही है. पार्टी का इरादा केवल विधानसभा चुनाव लड़ने का ही नहीं है, बल्कि नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव में भी लड़ने का इरादा जताया है. यह सीट कांग्रेस सांसद वसंतराव चव्हाण के निधन के कारण खाली हुआ था. BJP ने स्थानीय प्रमुख हस्तियों जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी शामिल थे को पार्टी में शामिल करके राज्य सभा में भेजा पर नांदेड़ में हार का सामना करना पड़ा था.
दरअसल नांदेड़ संसदीय क्षेत्र में 14% मुस्लिम आबादी है, जो नांदेड़ शहर में 24% तक पहुंच जाता है.AIMIM अगर नांदेड़ लोकसभा का चुनाव लड़ती है तो कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल आ सकती है.
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