सोशल मीडिया के छींटाकशी वाले दौर में टाटा कैसे बने रहे चहेते रतन

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रतन टाटा- ऐसा क्‍या है, इस नाम में कि यदि आंख बंद करके सोचें तो एक मुस्‍कुराती छवि उभरती है. सोशल मीडिया के क्रूरतम दौर में, जब किसी को भी बख्‍शा नहीं जा रहा है, रतन टाटा हो पाना दुर्लभ है. रतन टाटा कोई आध्‍यात्मिक गुरु नहीं थे. लेकिन, उससे कम भी नहीं. वे एक बेहद कुशल बिजनेसमैन थे. लेकिन, मुनाफाखोर वाली छवि से दूर. शायद यही वजह है कि राजनीति के दंगल में जब उद्योगपतियों पर कीचड़ उछाला जाता है, तो रतन टाटा बेदाग नजर आते हैं.

राजनीतिक दलों और नेताओं से समान दूरी

रतन टाटा की तस्‍वीरें मोदी के साथ भी हैं, तो राहुल गांधी के साथ भी. कमोबेश ऐसा मेलजोल सभी बड़े उद्योगपतियों और नेताओं के बीच होता है. लेकिन, जब राजनीतिक सांठगांठ की बात आती है, तो कोई रतन टाटा का नाम लेने की हिम्‍मत नहीं करता. बल्कि ऐसा करने का ख्‍याल भी नहीं आता. तो क्‍या रतन टाटा अपना बिजनेस बिना सरकारों से तालमेल बिठाए कर लेते थे? जवाब है- नहीं. बस, फर्क ये है कि रतन टाटा ने अपनी कारोबारी लकीर को साफ-सुथरी और पारदर्शी उसूलों की ऐसी लाइन खींची जिसे मिटाना मुश्किल हो. जिसमें किसी राजनीतिक सांठगांठ, दलाली, चापलूसी और रिश्‍वत के लिए कोई जगह नहीं हो. नमक से लेकर ट्रक तक बनाने वाले टाटा अपने फैसलों की दृढ़ता के लिए जाने जाते रहे. फिर उससे कोई नाराज हो या प्रसन्‍न, उन्‍हें फर्क नहीं पड़ता था.

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If a man loves dog…

2018 की बात है. रतन टाटा ने बारिश के दौरान एक कुत्ते को मुंबई में टाटा संस के हेडक्‍वार्टर के बाहर परेशान देखा तो उन्‍होंने आदेश दिया कि कभी भी कोई स्‍ट्रीट डॉग टाटा मुख्‍यालय के भीतर आना चाहे तो उसे रोका न जाए. आज टाटा साम्राज्य के मुख्‍यालय में कोई व्‍यक्ति आना चाहता है, उसकी तलाशी ली जाती है. लेकिन स्‍ट्रीट डॉग्‍स को यहां वीआईपी एंट्री मिलती है. इतना ही नहीं, इस मुख्‍यालय के रेनोवेशन के दौरान ग्राउंड फ्लोर पर डॉग्‍स के लिए खास इंतजाम किया गया था. यहां क्‍लाइमेट कंट्रोल एसी वाला विशाल कक्ष है, जिसमें उनके आराम के लिए बिस्‍तर हैं. डॉग्‍स को नहलाने और उनकी सेवा के लिए अटेंडेंट तैनात हैं. डॉग्‍स के लिए रतन टाटा का यह प्रेम 2023 में पशु-पक्षियों की सेहत के ख्‍याल रखने के बड़े उद्देश्‍य तक जा पहुंचा. उन्‍होंने जानवरों के लिए मुंबई में एक आधुनिक अस्‍पताल बनवाया. जिसमें आईसीयू के अलावा एमआरआई, एक्‍स-रे, सीटी स्‍कैन जैसी तमाम आधुनिक सुविधाएं हैं. ऐसे ही शख्‍स के बारे में कहा जाता है न कि If a man loves dog, he is a good man. And if a dog loves man, he is a good man. ऐसे गुड मैन को भला कैसे न प्‍यार मिले.

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गोल-मोल नहीं, सीधी सपाट बात

अपने समकक्ष उद्योगपतियों और रतन टाटा के बीच एक बड़ा अंतर है पब्लिक अपीयरेंस का. रतन टाटा पब्लिक में कार चलाते रहे और जेट भी उड़ाते रहे. एकदम रॉक स्‍टार की तरह. लेकिन, उनकी एक बात जो उनकी छवि में चार चांद लगा देती थी, वह थी उनकी साफगोई. किसी भी मौके पर वे बहुत घुमाफिरा कर बात नहीं करते थे. एक दफा इंटरव्‍यू के दौरान उनसे पूछा गया कि आपके बारे में कहा जाता है कि आप पहले फैसला लेते हैं, फिर उसे सही साबित करते हैं. इंटरव्‍यू लेने वाली एंकर से रतन कहते हैं कि मैं यहां आपको निराश करूंगा कि मैंने न तो ऐसा कभी किया है और न ही ऐसा कभी कहा है. सोशल मीडिया में आपके बारे में ऐसी बहुत सी बातें होती हैं जो बढ़ाचढ़ाकर कह दी जाती है, जिसके बारे में आप सफाई भी नहीं दे पाते. लेकिन, यहां मैं अहंकारी होना नहीं चाहूंगा. रतन टाटा कई बार ये महसूस करा देते थे कि वे बिजनेसमैन नहीं, बस अपनी धुन में अपनी जिंदगी जीने वाले एक सोशलमैन हैं.

झारखंड में जमेशदपुर बसाने से लेकर ब्रिटेन की जैगुआर-लैंडरोवर के अधिग्रहण तक, टाटा ग्रुप के फैसलों में बिजनेस से आगे बढ़कर समाज हित और राष्‍ट्रीय गौरव का पुट भरपूर नजर आता है. रतन टाटा ने अपने जीवन काल में टाटा ग्रुप के मिशन को फीका नहीं पड़ने दिया. उसके लिए नए आयाम ही हासिल किये. बेहद सादगी के साथ. मोह-माया से परे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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