रतन टाटा ने हम पर भरोसा करके वो विश्वास दिलाया जिस पर कोई भी कर सकता है यकीन | Opinion

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रतन नवल टाटा की हर बात भरोसे के काबिल होती थी, तभी तो उनके आखिरी बयान को भी लोगों ने आंख मूंद कर मान लिया था. अपनी बीमारी को लेकर खबर आने के बाद रतन टाटा ने सोशल साइट X पर जारी बयान में कहा था, 'मैं ठीक हूं... और ज्यादा उम्र के कारण रुटीन चेकअप के लिए अस्पताल गया था... चिंता की कोई बात नहीं है.'

हो सकता है, लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए रतन टाटा ने ऐसा कहा हो. ये भी हो सकता है, रतन टाटा को भी भरोसा हो कि सब ठीक हो जाएगा. मगर, मौत तो ऐसी तमाम चीजों से परे होती है. पद्म विभूषण से सम्मानित 86 साल के रतन टाटा का मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 9 अक्टूबर को रात साढ़े 11 बजे निधन हो गया.

टाटा की जिंदगी से जुड़े बहुतेरे ऐसे किस्से हैं, जो आने वाले दिनों में किंवदंतियों का हिस्सा होंगे. ऐसा ही वाकया मशहूर कारोबारी और कॉलमनिस्ट सुहेल सेठ ने एक इंटरव्यू में शेयर किया था. बताते हैं रतन टाटा को ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स फरवरी, 2018 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित करने वाले थे. समारोह से कुछ देर पहले रतन टाटा ने आयोजकों को सूचना दी कि वो वहां नहीं आ सकते, क्योंकि टीटो बीमार है. टीटो और टैंगो टाटा के दो पालतू कुत्ते हैं, जिन्हें उनके करीबी भी खुद से ज्यादा टाटा के करीब मानते रहे हैं.

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जो भरोसा रतन टाटा लोगों को दिया, वही भरोसा अपने पालतू कुत्तों को भी दिया था - और ये भरोसा ही वो खासियत है जिसे कारोबार और अर्थ जगत में ब्रांड के नाम से जाना जाता है.

1. टाटा का भरोसा, टाटा पर भरोसा: ब्रांड क्या होता है, ये बात टाटा ने हमे स्कूल और कॉलेज पहुंचकर परिभाषा जानने और समझने से बहुत पहले ही समझा दिया था. जाहिर है, उन सभी को भी समझाया जो कभी स्कूल कॉलेज भी नहीं गये.

ब्रांड को जो चाहे जैसे भी समझे या परिभाषित करे, लेकिन ये महज एक भरोसा होता है, जिसे बड़े ही सहज तरीके से टाटा ने सबको अपने काम से, प्रोडक्ट की क्वालिटी से समझा दिया है. असल में, वो मानते थे, आपको किसी काम में सफलता पाना है, तो उस काम की शुरुआत भले ही आप अकेले करें... लेकिन उसे बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए लोगों का साथ जरूरी है... साथ मिलकर ही दूर तक चल सकते हैं.

और ऐसा तभी होगा जब आपको लोगों पर भी भरोसा हो, और आप लोगों को भी अपना भरोसा दिला सकें.

2. कारोबार में सेवाभाव: कारोबार का मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना ही नहीं होता है, लोगों के प्रति सेवाभाव भी होना चाहिये - ये बात भी टाटा ने ही सिखाई है, लेकिन ये बात भी अलग है कि किसी और कारोबारी ने सीखा भी है या नहीं. नहीं मालूम.

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टाटा का नैनो कार प्रोजेक्ट सफल रहा या असफल, इस पर अलग से बहस हो सकती है, लेकिन उसके पीछे जो सोच थी, वो शानदार है. कहते हैं, बारिश में भीग रहे किसी परिवार को देखकर ही टाटा के मन में ये आइडिया आया था. टाटा की सबसे सस्ती कार भी हर कोई तो नहीं ही ले सकता था, लेकिन जिनके लिए कार लेना मुश्किल होता, उनके लिए टाटा ने राह थोड़ी आसान कर दी थी.

वो टाटा ग्रुप के छोटे से छोटे कर्मचारी से भी प्यार से और बड़े ही सहज भाव से मिलते थे, और उनकी जरूरतों को समझने की कोशिश भी करते थे ताकि हर संभव मदद की जा सके.

3. टाटा की कोशिश रही, कोई निराश न हो: कारोबार तो बहुत लोग करते हैं. देश में भी, और दुनिया में भी. लेकिन, बदले में वो लोगों को क्या देते हैं. ये सबसे महत्वपूर्ण होता है. कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन रतन टाटा ने कंज्यूमर को शायद ही कभी निराश किया हो. मेरे कई परिचितों ने टाटा नैनो का इस्तेमाल किया है, और वे हमेशा खुश दिखाई दिये.

4. BSNL और एयर इंडिया लेटेस्ट उदाहरण हैं: एयर इंडिया घाटे में चल रही थी, हो सकता है टाटा का सहारा न मिलता तो वो भी बंद पड़ी एयरलाइंस की सूची में किसी न किसी दिन शामिल हो जाती. एयर इंडिया के साथ रतन टाटा के इमोशन जुड़े थे, और अपनी जिम्मेदारी समझ कर उन्होंने आगे बढ़ कर अपनाया - निजी तौर पर मेरे जैसे बहुत लोग हैं जो बताते हैं कि दूसरी एयरलाइंस की तुलना में सफर के लिए वे एयर इंडिया को तरजीह देते हैं.

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लोगों के भरोसे की ऐसी ही एक ताजातरीन मिसाल बीएसएनएल का मामला है. बीएसएनएल में टाटा ने सिर्फ इंवेस्ट भर किया है, लेकिन लोगों को ये लग रहा था कि उसे टाटा ने एक्वायर कर लिया है - और पूर्वांचल से खबरें आई हैं कि बड़ी तादाद में लोगों ने अपना नंबर पोर्ट कर बीएसएनएल का सिम ले लिया है.

आखिर ये भरोसा नहीं तो क्या है, क्योंकि बीएसएनल की सेवाओं में अब भी कोई बदलाव नहीं आया है. लेकिन, लोगों का भरोसा देखिये कि पोर्ट करने के लिए लोगों ने सेवाओं में सुधार होने का इंतजार नहीं किया.

5. कर्म ही पूजा है, ये सिर्फ एक बात नहीं है: रतन टाटा के लिए काम का मतलब भी पूजा करना ही था. रतन टाटा का कहना था कि काम तभी बेहतर होगा, जब आप उसकी इज्जत करेंगे. और इसीलिए टाटा के काम पर भरोसा किया जाता है.

'हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा' - अल्लामा इक़बाल ने ये बातें चाहे जिस प्रसंग में कही हो, लेकिन रतन टाटा पर ये काफी हद तक फिट बैठती है. कहने की जरूरत नहीं, स्मृतियों में टाटा हजारों साल जिंदा रहेंगे. अलविदा रतन टाटा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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