हरियाणा में कांग्रेस की बढ़त के पीछे हुड्डा की ताकत है या राहुल की लोकप्रियता? । Opinion

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग आज शनिवार को संपन्न हो गई. सी वोटर के एग्जिट पोल में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है. एग्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस को 50 से 58 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि बीजेपी को 20 से 28 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है. पर जैसा कि सी वोटर के डायरेक्टर यशवंत देशमुख कहते हैं कि यह भी संभावना है कि कांग्रेस लैंड स्लाइड विक्ट्री की ओर भी बढ़ जाए. मतलब साफ है कि यह भी हो सकता है कि कांग्रेस कुल 90 सीटों में 80 से ज्यादा सीटेंहासिल कर ले.अब सवाल उठता है कि कांग्रेस की इतनी बड़ी विजय के पीछे कौन सी शक्तियां काम कर रही हैं? क्या इस बड़ी विजय के पीछे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मेकओवर और उनकी बढ़ती लोकप्रियता है ? क्या इस बड़ी विजय के पीछे भूपिंदर हुड्डा का जाट बेल्ट और हरियाणा की राजनीति पर जबरदस्त पकड़ है? या फिर बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की असफलता है? आइये इन अहम कारणों की विवेचना करते हैं.

1- राहुल की लोकप्रियता और कांग्रेस का डू ऑर डाई का अंदाज बीजेपी पर पड़ा भारी?

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि राहुल गांधी को अब देश का एक तबका सुन रहा है. आप राहुल गांधी की बातों में लाख नुक्स निकाल सकते हैं पर एक तबका उन्हें ध्यान लगाकर सुन ही नहीं रहा है बल्कि उन पर भरोसा कर रहा है. राहुल गांधी ने जब पिछड़ों को लेकर बोलना शुरू किया तब यही लगता था कि कांग्रेस खुद तो कभी पिछड़ों के लिए कुछ की नहीं अब उनके अधिकार की रोज बातें कर रही है, कौन करेगा उन पर भरोसा? पर हर सभा चौक-चौबारे में उनका पिछड़ा और दलित दुर्दशा पर बोलना काम करता नजर आ रहा है. हरियाणा में आज तक डिजिटल ने एक ऑटोमोबाइल की दुकान पर मैकेनिक के रूप में काम करने दलित से बात की थी. मैकेनिक का कहना था कि हम मोदी को वोट देते रहे हैं पर अब राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस को वोट देंगे. मोदी के मुकाबले उसे राहुल में कई अच्छाइयां नजर आ रही थीं. कांग्रेस का संविधान बचाओ-आरक्षण बचाओ नारा लोकसभा चुनावों में यूपी ही नहीं हरियाणा में भी बीजेपी को डैमेज पहुंचाया था. इस बार हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी इस नारे को झूठा साबित नहीं कर सकी. इसके अतिरिक्त कांग्रेस इस बार अंतिम दौर तक जी जान से जुटी दिखी. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी अंतिम दौर तक न केवल चुनाव प्रचार किए बल्कि पार्टी की अंदरूनी राजनीति को भी खत्म करने में लगे रहे.

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2- क्या हुड्डा फैमिली हैं कांग्रेस की बढ़त का असली कारण

अब आते हैं हरियाणा में कांग्रेस को लीड करने वाले हुड्डा फैमिली पर . इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि हुड्डा पिता पुत्र ने इन चुनावों में जितनी मेहनत की है उतनी मेहनत किसी ने नहीं की है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने इन चुनावों में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं की हैं.बल्कि यूं कहें तो अतिशयोक्ति न होगी कि ये विजय इन्हीं पिता-पुत्र की देन है.हरियाणा की लड़ाई लोकप्रियता के बल पर नहीं लड़ी जाती है. हरियाणा में आप लोकप्रिय हो सकते हैं पर बूथ तक वोट डलवाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी होती है. यह वैसे ही है जैसे कोई बहुत अच्छी फिल्म हो और उसको थियेटर ही न मिले तो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट जाती है. हुड्डा राज्य में साम-दाम-दंड-भेद सबका इस्तेमाल करते हैं. उनके पासमैन पावर,मनी पावर, मसल पावर तीनोंहै जो लोकतंत्र में सबसे अधिक जरूरी होता है. 2019 में राहुल गांधी उन्हें नापसंद करते थे और अशोक तंवर पर अधिक भरोसा करते थे. पर सोनिया गांधी और पार्टी के अन्य नेता जानते थे कि हुड्डा के वश की ही बात है हरियाणा को जीतना. अगर राहुल ने हुड्डा पर पिछले चुनाव में ही भरोसा किया होता तो तस्वीर कुछ और रही होती. 2019 में पूर्ण बहुमत हासिल करने में हुड्डा चूक गए पर पिछले 5 साल से कांग्रेस को वापस लाने के लिए जी जान से लगे हुए थे. कुमार सैलजा की छवि हुड्डा के मुकाबले राज्य में अच्छी हो सकती है पर चुनाव जीतने के लिए एक अलग कला की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं है.

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3- एग्जिट पोल में बीजेपी का वोट परसेंटेज न घटना क्या कहता है

सी वोटर के एग्जिट पोल को अगर ध्यान से देखें तो पता चलता है कि बीजेपी के वोट में कमी नहीं हुई है बल्कि एक से डेढ़ परसेंट की बढ़ोतरी ही हईहै. जबकि कांग्रेस अपने 2019 के वोट के मुकाबले करीब 7 परसेंट की बढ़त पर है. इसलिए राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि यह भी हो सकता है कि कांग्रेस बहुत बड़ी विजय हासिल करे. क्योंकि 5 परसेंट वोट की बढ़ोतरी पर ही बहुत बड़ा उलट फेर हो जाता है, यहां तो करीब 8 परसेंट दिख रहा है.पर बीजेपी का वोट परसेंटेज न घटना यह दिखाता है कि यह पार्टी की हार नहीं है. और न ही इसे एंटीकंबेंसी की वजह मान सकते हैं. जाहिर है कि यह बीजेपी विरोधी वोटों के एक जुट होना है. मतलब साफ है कि जो वोट 2014 में इनेलो को मिले और जो वोट जेजेपी को 2019 में मिले वो सब इस बार कांग्रेस को मिले हैं.

4- क्या यह बीजेपी के पोलिटिकल मैनेजमेंट की हार है?

अगर बीजेपी के वोट शेयर में घटोत्तरी नहीं हो रही है तो फिर कहांबीजेपी फेल हो रही है? दरअसल बीजेपी का पोलिटिकल मैनेजमेंट इस बार फेल होता दिख रहा है. लोकसभा चुनावों के पहले भारतीय जनता पार्टी ने जेजेपी के साथ गठबंधन खत्म कर दिया था. शायद इसके पीछे यही मंशा थी कि अगर जेजेपी एक अलग पार्टी के रूप में चुनाव लड़ेगी तो जाट वोटों में बंटवारा हो सकेगा. पर जेजेपी इस बार आजाद समाज पार्टी केसाथ चुनावी गठबंधन करके भी कुछ हासिल नहीं कर पा रही है. उस पर बीजेपी का साथ देने का ऐसा लांछन लगा कि जाटों ने दुष्यंत को इस बार नकार दिया . इनेलो भी इस बार बीएसपी के साथ आने से बहुत जोश में थी पर जनता के बीच जगह नहीं बना सकी. जाटों के ऊपर हुड्डा का जादू सर चढकर बोल रहा था. बीजेपी की आखिरी उम्मीद अरविंद केजरीवाल से थी. बहुत से लोगों ने यह आरोप भी लगाया कि अरविंद केजरीवाल की रिहाई इसी लिए हुई कि वो हरियाणा में कांग्रेस का काम खराब कर सकें. पर अरविंद केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में चुनावी परिदृश्य से गायब हो कर कांग्रेस कासाथदिया. बीजेपी मैनेजमेंट की ही यह कमजोरी रही कि अंतिम दौर में जब वोटिंग के लिए 3 दिन बचे थे लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी में शामिल हुए अशोक तंवर ने साथ छोड़ दिया और कांग्रेस के साथ हो लिए.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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