One Nation One Election Bill पास कराने के लिए भाजपा को कान्फिडेंस कहां से आ रहा है? । Opinion

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बुधवार को 7 के अंक का दिलचस्‍प संयोग रहा. हरियाणा में कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें 7 वादे किये. वहीं मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक में 7 प्रस्‍तावों को मंजूरी दी गई. जिसमें सबसे प्रमुख रहा 'वन नेशन, वन इलेक्‍शन'. यानी सभी चुनाव एकसाथ हों. जाहिर है कि सबसे ज्‍यादा बहस इसी मुद्दे पर होनी है.

बुधवार को केंद्रीय NDA सरकार की कैबिनेट बैठक हुई. बैठक में चंद्रयान-4 अभियान को भी मंजूरी दी गई, लेकिन सबसे ज्‍यादा चर्चा वन नेशन, वन इलेक्‍शन को लेकर हुई. जिससे जुड़ी पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी. इस रिपोर्ट में विस्‍तार से इस बात के सुझाव दिये गए हैं कि पूरे देश में सभी प्रमुख चुनाव एकसाथ कैसे कराए जा सकते हैं. चूंकि, वन नेशन, वन इलेक्‍शन के तहत लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की मंशा है, इसलिए यह मामला पेंचीदा हो जाता है. चूंकि, यह एक संविधान संशोधन विधायक होगा, इसलिए मोदी सरकार को इसके लिए समर्थन जुटाने में खासी मशक्‍कत करनी होगी. आइये, समझते हैं कि क्‍यों वन नेशन, वन इलेक्‍शन कराना गंगा को धरती पर लाने जैसा एक भगीरथ प्रयास होगा.

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1-वन नेशन, वन इलेक्‍शन के लिए संविधान संशोधन करना होगा, जिसके लिए चाहिए दो-तिहाई सदस्‍यों का समर्थन

एक देश, एक चुनाव के लिए सबसे पहले सरकार को बिल लाना होगा. चूंकि ये बिल संविधान संशोधन करेंगे, इसके लिए ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. यानी, लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा.संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा. यानी, 15 राज्यों की विधानसभा से भी इस बिल को पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे.

राज्यसभा के लिए हुए चुनावों के नवीनतम दौर के साथ ही भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन अपने दल में 12 और सदस्यों को जोड़कर सदन में बहुमत के आंकड़े तक पहुंच चुका है. पिछले कुछ समय से उच्च सदन में सबसे बड़ी पार्टी रही भाजपा के सदस्यों की संख्या बढ़कर 96 हो गई है और सहयोगियों, छह मनोनीत सदस्यों और दो निर्दलीयों के साथ एनडीए के पास अब 119 सदस्यों का समर्थन है. पर संविधान संशोधन के लिए एनडीए को 163 सदस्यों की जरूरत होगी. दूसरी बात यह भी है कि एनडीए के एक दो दल इसका विरोध कर सकते हैं. पर इसके साथ ही एक देश-एक चुनाव के नाम पर कुछ दल एनडीए के साथ आ भी सकते हैं. पर इसके बाद भी चाहे लोकसभा हो या राज्य सभा दोनों ही सदनों में पार्टी के लिए जादुई आंकड़ा जुटाना टेढ़ी खीर साबित होगा. 21 स्टेट में फिलहाल अभी एनडीए की सरकार है. इसलिए आधे राज्यों में इस बिल का अनुमोदन में तो कोई दिक्कत नहीं आने वाली है.

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2-भाजपा के पास केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं है, 15 पार्टियां खुला विरोध कर चुकी हैं

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई बनी समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था. जबकि, 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं. 15 ऐसी पार्टियां थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था.सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टियों में सबसे बड़ी पार्टी टीडीपी अभी भी इस कानून के लिए मूड नहीं बना पाई है.हालांकि जेडीयू और एलजेपी ने इसके लिए हामी भर दी है. देश की मुख्य विरोधी पार्टियां कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम और बसपा समेत 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया है. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा, टीडीपी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समेत 15 पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया था. हो सकता है कि इसमें से कुछ भारतीय जनता पार्टी के साथ भविष्य में आ जाएं पर उम्मीद कम ही दिख रही है.

3-पास होगा या फिर वक्‍फ कानून संशोधन बिल की तरह संसदीय समिति को भेजा जाएगा

दरअसल अभी देश में जोराजनीतिक स्थित है उसके अनुसार यह असंभव नहीं लगता है कि बीजेपी यह एक्सरसाइज केवल और केवल देशवासियों को संदेश देने के लिए कर रही हो. देश में जो राजनीतिक हालत हैं उसमें बीजेपी लगातार कमजोर पड़ती जा रही है. अगर हरियाणा और जम्मू कश्मीर की विधानसभाएं बीजेपी जीत लेती है तो हो सकता है कि भाजपा इस तरह का कोई बोल्ड स्टेप के लिए तैयार हो सके. अन्यथा इस कानून के लिए बीजेपी बहुत रिस्क नहीं लेने वाली है. दरअसल वन नेशन वन इलेक्शन कानून पास करने की एक्सरसाइज बहुत कठिन है . दूसरे उसके मुकाबले बीजेपी को इससे फायदा नहीं के बराबर है. क्योंकि ये कानून किसी खास समुदाय, वर्ग या क्षेत्र के फायदे के लिए नहीं है.इसलिए बीजेपी के भी किसी तरह से राजनीतिक फायदे का नहीं होगा.अगर बीजेपी को ऐसा लगेगा कि इस कानून के लिए काफी मशक्कत करनी होगी तो बीजेपी इससे बेहतर यही समझेगी कि इसे वक्फ बोर्ड संशोधन कानून की तरह किसी संसदीय समिति को भेज दिया जाए

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4-क्‍या भाजपा सिर्फ ये संदेश देना चाहती है कि उसने एक साथ सभी चुनाव कराने की सार्थक पहल की थी

भारतीय जनता पार्टी शुरू से किसी भी प्रकार केराजनीतिक हित से ऊपर देश हित को रखती रही है. वन नेशन-वन इलेक्शन बहुत कुछ इस तरह का ही कानून है जिससे बीजेपी को कम देश को अधिक फायदा हो सकताहै. पार्टी के लिए सबसे बड़ी बात यह भी है कि अगर इस कानून को पास कराने कीमशक्कत करती है तो प्रशासनिक और राजनीतिक शुचिता की कट्टर समर्थक वाली उसकी छवि और मजबूत होगी. ऐसे समय में जब राष्ट्रवादी छवि कमजोर पड़ रही हो भारतीय जनता पार्टी के लिए रामबाण की तरह साबित होगा.

5-या, कुछ सूरतें हैं, जिनके चलते पास हो सकता है वन नेशन, वन इलेक्‍शन बिल

जम्मू कश्मीर और हरियाणा में चुनाव होने वाला है. दोनों ही राज्यों में बीजेपी मुख्य कंटेंडर है. हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी इन दोनों राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल साबित हो. अगर ऐसी स्थिति बनती है तो पार्टी राज्य सभा में और मजबूत होकर उभरेगी और पार्टी वर्तमान निराशा के माहौल से कुछ उबरेगी.इसके साथ ही 1 राज्य में और उसकी सरकार की संख्या बढ़ जाएगी. ऐसा भी हो सकता है कि बीजेपी एक कम विवादित कानून के लिए संशोधन करके विपक्ष को अपनी ताकत का इजहार करा सकती है.दरअसल बीजेपी के लिए यह कानून भविष्य में सत्ता में बने रहने के लिए रामबाण साबित हो सकता है. देश में नरेंद्र मोदी अभी भी पैन इंडिया वाले सबसे बड़े लीडर है. कई राज्यों में दूसरी पार्टियों को वोट देने वाले लोग लोकसभा चुनावों में अगर बीजेपी को वोट देते हैं तो इसके पीछे नरेंद्र मोदी की यही छवि काम करती है. जाहिर है कि जब केंद्र और राज्यों का चुनाव एक साथ होगा तो मोदी अन्य नेताओं पर बहुत भारी पड़ेंगे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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