गिर सकती है मोदी सरकार... राहुल गांधी के इस दावे में कितना है दम?

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गठबंधन सरकार की एक बहुत बड़ी कमजोरी होतीहै कि विपक्ष हर समय इसी दावे में लगा रहता है कि बहुत जल्दी यह सरकार गिर जाएगी. वैसा ही कुछ आजकल कांग्रेस के बड़े नेता कर रहे हैं. पहले मल्लिकार्जुन खरगे और अब राहुल गांधी ने यही बात कही है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने विदेशी मीडिया से बात करते हुए दावा किया है कि छोटी सी गड़बड़ी से मोदी सरकार गिर सकती है. इतना ही नहीं राहुल गांधी यह दावा भी करते हैं कि मोदी खेमे में काफी असंतोष है और कई लोग उनके संपर्क में हैं. दरअसल राहुल गांधी ने फाइनेंशियल टाइम्स के दक्षिण एशिया ब्यूरो चीफ जॉन रीट को दिए इंटरव्यू में ये सब बातें कहीं हैं. हालांकि राहुल गांधी ने कोई नई बात नहीं कहीहै. करीब 5 दिन पहले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी यही बात कही थी. तो क्या राहुल गांधी और खरगे की बातों को सही माना जा सकता है? हम राहुल गांधी और खरगे की बातों का विश्लेषण 4 तरीके से कर सकते हैं.

1- कब तक चल सकती है एनडीए कीवर्तमानबैसाखी सरकार?

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता कि केंद्र की एनडीए सरकार बैसाखियों पर टिकी हुई है. पर देश मेंपिछले 10 सालों का इतिहास को छोड़ दें तो उसके पहले लगातार 15 साल बैसाखी सरकारें भी सफलतापूर्वक चलती रहीं हैं. 1999में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार हो या 2004 और 2009 में बनी यूपीए सरकार हो ,सभी सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया है. दरअसल अब गठबंधन का फॉर्मूला डेवलप हो चुका है. 1995 से 2000 वाला दौर नहीं है. सरकार बचाने के लिए, अपने महत्वपूर्ण बिल पास कराने के लिए तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह जैसे व्यक्तित्व ने भी साम दाम दंड भेद की पॉलिसी अपनायी थी. पहले केवल सीबीआई ही होती थी उसके बाद ईडी ने भी अपना काम शुरू कर दिया. जबयूपीए सरकार गिरने के मोड में आती या कोई महत्वपूर्ण बिल को पास कराना होता तो मुलायम सिंह यादव परिवार पर आय से अधिक संपत्ति का शिकंजा कस दिया जाता. इसलिए ये सोचना कि बैसाखी सरकार 5 साल पूरा नहीं कर पाएगी सिवाए मुगालता के और कुछ नहीं है.

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2-क्या इंडिया गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में है?

राहुल गांधी इस इंटरव्यू में कहते हैं कि एनडीए के लोग हमारे हमारे संपर्क में हैं. दरअसल यह सही हो सकता है कि राहुल गांधी के संपर्क में कुछ लोग हों. यह वैसे ही है जैसे कि कोई बीजेपी का नेता बोले कि इंडिया गठबंधन के कई दलों के सांसद हमारे संपर्क में हैं. दलबदल कानून के दौर में इतना आसान भी नहीं है दलबदल करवाना. हिमाचल में जल्दी ही हमने देखा है. सारा तंत्र बीजेपी के हाथ में और हिमाचल की जनता का साथ होने के चलते नैतिक बल भी है फिर भी राज्यमें सुक्खु सरकार बच गई. यही हाल दिल्ली में है. सीएम अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से बेल नहीं मिल रही है, लोकसभा चुनाव में जनता ने भी बुरी तरह नकार दिया है पर कोई उनकी कुर्सी पर हाथ नहीं डाल पा रहा है. कहना आसान होता है पर बीजेपी के चाणक्य भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए इतना आसान नहीं है एनडीए के सांसदों को तोड़ लेना.

केंद्र मेंबहुमत का जादुई आंकड़ा 272 है. बीजेपी के पास 240 सांसद हैं. बीजेपी जबकि सहयोगी दलों के पास 53 सांसद हैं. इस तरह 293 हो रहे हैं. अगर 22 सांसद कम हो जाएं तो ही बीजेपी सरकार गिर सकती है. बिना टीडीपी (14) और जेडीयू (12) के समर्थन वापस लिए यह संभव नहीं हो सकता. दूसरी बात अगर पार्टी टूटती है तो निसंदेह फायदा बीजेपी को होगा. क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष बीजेपी का होगा. और अगर समर्थन जेडीयू और टीडीपी समर्थन वापस लेते हैं तो फिर हॉर्स ट्रेडिंग का खेल होगा. इसमें भी बीजेपी भारी ही पड़ेगी. शायद यही सोचकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू भी चुपचाप एनडीए में बने हुए हैं.

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3-बीजेपी क्योंचुनावी मोड में आ गई है?

लोकसभा चुनाव का परिणाम आए अभी तीन हफ्ते पूरे नहीं हुए हैं पर बीजेपी पूरी तरह चुनावमोड में आ चुकी है. अभी कांग्रेस कई राज्यों में अपनी हार का विश्लेषण कर रही है, अभी अखिलेश यादव लंदन की यात्रा कर रहे हैं पर बीजेपी ने चुनावी आयोजन शुरू कर दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी में किसानों कोसंबोधन क्या चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं है? प्रधानमंत्री अपने स्पीच में किसानों को सपने पूरे करने के रास्ते बता रहे हैं. दूसरे ही दिन बिहार में नालंदा के नवनिर्मित विश्वविद्यालय के उद्घाटन के बहाने जनता तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. मतलब साफ है कि बीजेपी कभी भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार है. जबकि कांग्रेस और अन्य पार्टियों के नवनिर्वाचित सांसद कभी नहीं चाहेंगे कि वो तुरंत जनता की अदालत में फिर से एक बार पहुंचे. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि खुद कांग्रेस रायबरेली से राहुल गांधी को त्यागपत्र दिलाने के मूड में इसलिए नहीं है क्योंकि यूपी की जनता का कोई ठिकाना नहीं है. हो सकता है कि प्रियंका अगर रायबरेली से लड़ती तो उन्हें जीत के लाले पड़ जाते.

4-बीजेपी क्यों चाहेगी मध्यावधि चुनाव?

अगर इंडिया गठबंधन किसी तरह बहुमत का जादुई आंकड़ा पा भी लेते हैं तो क्या एनडीए सरकार सत्ता सौंप देगी? जाहिर है कि बिना तोड़फोड़ के ये संभव नहीं होगा. और अगर ऐसा होता है तो सरकार इसी बहाने लोकसभा भंग करके मध्यावधि चुनाव की सिफारिश करेगी.

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एक सवाल और उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए सरकार चाहेगी कि देश में मध्यावधि चनाव हो? इस सवाल का जवाब इतिहास में ढूंढना होगा. गठबंधन सरकारें आम तौर पर तभी गिरती हैं जब सत्ताधारी दल को लगता है कि लोहा अपने पक्ष में गर्म है. बीजेपी भी जनता के बीच तभी जाएगी जब ऐसी नौबत आ जाएगी कि जो वादे किए थे वो पूरे नहीं हो रहे हैं. या इसी तरह टीडीपी और जेडीयू भी तभी समर्थन वापसी का ऐलान करेंगे जब उनको वोट देने वालों के हित को वो मुद्दा बना सकें. जैसे जेडीयू यह साबित करने के लिए जातिगत जनगणना का काम सरकार करने के मूड में नहीं है. या बिहार को विशेष राज्‍य का दर्जा नहीं दिया जा रहा है.या मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए सीएए या यूसीसी जैसे मुद्दे पर टीडीपी और जेडीयू दोनों एक हो जाएं. पर ये सब नौबत अभी फिलहाल 2 साल तक नहीं आने वाली है. क्योंकि कोई भी दल चुनाव लड़ने के मूड में नहीं होगा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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