अयोध्या-काशी-मथुरा और संभल की तरह अजमेर शरीफ दरगाह का मामला भी कोर्ट पहुंच गया. हिन्दू सेना की अर्जी में अजमेर शरीफ दरगाह को महादेव का मंदिर बताया गया है. अजमेर की सिविल कोर्ट ने अर्जी को स्वीकार करते हुए सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है. जवाब मांगा है. इस अर्जी पर 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.
हिंदू सेना के दावे को लेकर ऑल इंडिया सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती ने नाराजगी जताई. औवेसी ने इस मामले को लेकर 1991 पूजा स्थल एक्ट का हवाला देते हुए पीएम को घेरा.
याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब - अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला दिया गया. किताब में दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है. साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है.
पुस्तक में कही गयी है ये बात
याचिकाकर्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश हरविलास शारदा की पुस्तक का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि दरगाह के निर्माण में हिंदू मंदिर के मलबे का इस्तेमाल किया गया था.पुस्तक में दरगाह के भीतर एक तहखाने का विवरण दिया गया है, जिसमें कथित तौर पर एक शिव लिंग होने का दावा है. पुस्तक में दरगाह की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों का भी उल्लेख किया गया है और इसके 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे के तत्वों का भी इसमें वर्णन है.
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कहा गया है कि इस शिवलिंग की पारंपरिक रूप से एक ब्राह्मण परिवार पूजा करता है, और दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों की उपस्थिति का संकेत देता है. याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से दरगाह का सर्वेक्षण करने का भी अनुरोध किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र में फिर से पूजा-अर्चना की जा सके जहां शिव लिंग बताया जाता है.
अजमेर के बारे में रोचक तथ्य यह भी है कि यहां पृथ्वीराज चौहान ने भी शासन किया था. जज हरविलास ने बताया कि अजमेर महायोद्धा पृथ्वीराज चौहान के वंशजो ने ही यह मंदिर बनाया था.
क्या है दावा
वादी विष्णु गुप्ता के अधिवक्ता योगेश सिरोजा ने बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई. सिरोजा ने कहा, ‘दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है. उसमें पहले पूजा पाठ होता था… पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद सितंबर 2024 में दायर किया गया. अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए हैं.’
उन्होंने बताया कि इस संबंध में अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कार्यालय-नयी दिल्ली को समन जारी हुए हैं. वादी विष्णु गुप्ता ने कहा, ‘‘हमारी मांग थी कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाये और दरगाह का किसी प्रकार का पंजीकरण है तो उसको रद्द किया जाए. उसका सर्वेक्षण एएसआई के माध्यम से किया जाए और वहां पर हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार दिया जाए.’’
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दरगाहके संचालकों ने जाहिर की चिंता
अदालत की कार्रवाई के जवाब में, दरगाह की देखभाल करने वालों की देखरेख करने वाली अंजुमन समिति के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने ऐसे विवादों के निहितार्थों के बारे में चिंता जाहिर की. उन्होंने 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया.
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. चिश्ती ने दरगाह के 800 से अधिक वर्षों के लंबे इतिहास को रेखांकित किया और दरगाह पर एएसआई के अधिकार क्षेत्र को विवादित बताया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है.
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