बिहार की चार विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी खाली हाथ रही. जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार को कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा जबकि बाकी तीन सीटों पर पीके के कैंडिडेट तीसरे स्थान पर रहे. पहली नजर में ये नतीजे पीके की पार्टी के प्रभावहीन स्टार्ट की कहानी बयान करते लगते हैं लेकिन आंकड़ों का अंकगणित सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही गठबंधनों में शामिल दलों की टेंशन बढ़ाने वाला है.
जन सुराज को मिले 66 हजार से ज्यादा वोट
गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट पर जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान को 37 हजार 103 वोट मिले. बेलागंज में जन सुराज के मोहम्मद अमजद 17 हजार 285 वोट पाने में सफल रहे. तरारी सीट पर जन सुराज की किरण सिंह को 5622 और रामगढ़ में सुशील कुमार सिंह को 6513 वोट मिले. जन सुराज के चारो उम्मीदवारों को मिले कुल वोट का योग 66 हजार 523 पहुंचता है. औसत की बात करें तो जन सुराज को अपने चुनावी डेब्यू में मिले वोट का औसत हर सीट पर 16 हजार 631 वोट के करीब है.
जन सुराज पार्टी भले ही विधानसभा में अपनी मौजदूगी सुनिश्चित करने में विफल रही हो लेकिन वह ये साबित करने में सफल रही है कि दूसरे दलों का गेम बना और बिगाड़ सकती है. रामगढ़ और इमामगंज के नतीजे तो यही बता रहे हैं. लालू यादव की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का गढ़ माने जाने वाले रामगढ़ विधानसभा सीट से प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे अजित सिंह तीसरे नंबर पर रहे. इस सीट पर बीजेपी के अशोक कुमार सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के सतीश कुमार सिंह यादव को 1362 वोट से शिकस्त दी.
रामगढ़ में जन सुराज उम्मीदवार को छह हजार से ज्यादा वोट मिले थे. इसी तरह इमामगंज में केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी की जीत का अंतर 5945 रहा और जन सुराज उम्मीदवार को 37 हजार से ज्यादा वोट मिले. इन दो सीटों पर जन सुराज की मौजूदगी ने आरजेडी को नुकसान पहुंचाया और अगर चुनावी रण में पीके की पार्टी नहीं होती तो नतीजे कुछ और भी हो सकते थे.
एनडीए और इंडिया के लिए टेंशन क्यों?
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जिस जन सुराज पार्टी के कर्णधार हैं, सूत्रधार हैं, वह चार सीटों के उपचुनावों में तीसरे नंबर से आगे नहीं बढ़ सकी है. लेकिन इस प्रदर्शन के जरिये भी जन सुराज ने पुरानी पार्टियों की टेंशन बढ़ा दी है तो उसकी भी अपनी वजहे हैं. इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- ना संगठन है, ना की बड़ी रैली
जन सुराज के सियासी दल बनने का ऐलान 2 अक्तूबर को ही हुआ था. पार्टी अभी संगठन का गठन करने की प्रक्रिया में ही है. गया, आरा और कैमूर जिले में जन सुराज पार्टी का संगठन भी अभी गठित नहीं हुआ था कि उपचुनाव की तारीखें आ गईं. जन सुराज ने बगैर संगठन के यह उपचुनाव लड़ा. एक तरफ जहां सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन की ओर से स्टार प्रचारकों की टीम प्रचार के मोर्चे पर सक्रिय नजर आई, वहीं दूसरी तरफ जन सुराज की कोई बड़ी रैली नहीं हुई.
2- नई नवेली पार्टी, बगैर चुनावी तैयारी
बिहार की इन चार सीटों के लिए 13 नवंबर को मतदान हुआ था और जन सुराज को औपचारिक रूप से राजनीतिक दल बने तब डेढ़ महीने भी नहीं हुए थे. नई नवेली पार्टी को बगैर किसी पूर्व तैयारी, बगैर संगठन के सीधे चुनावी टेस्ट में जाना पड़ा. नौबत तो यह भी आई कि जन सुराज को चार में से दो उम्मीदवार बदलने भी पड़े. पीके की पदयात्रा भी इन इलाकों तक नहीं पहुंची है. इन सबके बावजूद जन सुराज ने जीतनराम मांझी के गढ़ इमामगंज और आरजेडी के मजबूत किले बेलागंज में प्रभावी प्रदर्शन किया. विधानसभा चुनाव से पहले जन सुराज पार्टी को तैयारी के लिए करीब एक साल का समय मिलेगा.
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3- परिवारवाद विरोधी नैरेटिव
पीके अपनी जन सुराज पदयात्रा के दौरान परिवारवाद को लेकर लालू यादव और आरजेडी पर हमलावर रहे हैं. उपचुनावों में रामगढ़ और बेलागंज, दोनों ही सीटों पर आरजेडी ने फैमिली कार्ड ही चला था. रामगढ़ में बक्सर सीट से सांसद निर्वाचित होने के पहले विधायक रहे सुधाकर सिंह के भाई अजीत सिंह आरजेडी के उम्मीदवार थे.
वहीं, बेलागंज में भी पार्टी ने सांसद निर्वाचित होने के बाद सुरेंद्र यादव के पुत्र विश्वनाथ यादव पर दांव लगाया था. इन दोनों ही सीटों पर आरजेडी उम्मीदवारों की हार, इमामगंज में जीतनराम मांझी की बहू के कड़े मुकाबले में फंसने को पीके के परिवारवाद विरोधी नैरेटिव से जोड़कर भी देखा जा रहा है.
4- चिराग-मांझी कीपार्टियों से अधिक वोट शेयर
बिहार उपचुनाव में जन सुराज का वोट शेयर करीब 10 फीसदी रहा है. लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षत्रपों की मौजूदगी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की चुनौती के बीच डेब्यू में यह स्कोर खराब भी नहीं है. बिहार के वोटगणित की बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में सीटों के लिहाज से तीन सबसे बड़ी पार्टियों का वोट शेयर 15 से 24 फीसदी के बीच ही रहा था.
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साल 2020 के बिहार चुनाव में आरजेडी को 23.5, बीजेपी को 19.5 और जेडीयू को 15.7 फीसदी वोट मिले थे. चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी को तब 5.8 फीसदी वोट मिले थे. जीतनराम मांझी की पार्टी का कोर वोटर माने जाने वाले मुसहर समाज की आबादी में भागीदारी तीन फीसदी के करीब ही है. ऐसे में पीके की पार्टी का 10 फीसदी वोट शेयर ले जाना छोटी पार्टियों के साथ ही बड़े दलों के लिए भी टेंशन देने वाला है.
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