नगा मूवमेंट, कुकीलैंड और मैतेई प्रोटेस्ट... मणिपुर हिंसा के पीछे तीन आंदोलनों की कहानी, जानिए कौन क्या चाहता है?

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मणिपुर हिंसा सरकार के लिए सिरदर्द बन गई है. करीब 18 महीने से नगा-कुकी और मैतेई समुदाय आमने-सामने हैं और जातीय हिंसा में आगजनी, बवाल और हत्याओं का सिलसिला थमा नहीं है. इसके पीछे नगा मूवमेंट, कुकीलैंड और मैतेई जातीय आंदोलनों की कहानी भी जुड़ी है. जानिए कैसा रहा मणिपुर का इतिहास?

मणिपुर हिंसा की शुरुआत 3 मई को उस समय हुई, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. इसी रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय के बीच झड़प हो गई, जो बाद में हिंसा में तब्दील हो गई. ये रैली मैतेई समुदाय की ओर से जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई थी. इस हिंसा के पीछे मैतेई समुदाय की ओर से की जा रही आरक्षण की मांग और नगा-कुकी की तरफ से इसके विरोध को माना ही जा रहा है.

मणिपुर में किस समुदाय की कितनी आबादी?

दरअसल, मणिपुर में मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं. पहला- मैतेई, दूसरा- नगा और तीसरा- कुकी. इनमें नगा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं. जबकि मैतेई गैर-आदिवासी हैं. मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं. वहीं, नगा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं.

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मणिपुर में विवाद क्यों है?

मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं. अब नगा-कुकी समुदाय को इस बात की चिंता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो उन्हें पहाड़ी इलाकों में रहने और बसने की कानूनी इजाजत मिल जाएगी. ऐसे में उन्हें अपनी जमीनें छिनने का डर है.

मणिपुर का इतिहास क्या है?

निंगथौजा राजवंश को भारत में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक माना जाता है. इसकी स्थापना राजा नोंगडा लरेन पखंगाबा ने 33 ईस्वी में की थी. शाही इतिहासकार चेइथारोल कुंभबा ने निंगथौजा राजवंश के मणिपुरी राजाओं के पूरे इतिहास का दस्तावेजीकरण किया है. 18वीं शताब्दी तक मणिपुर के राजा और यहां के लोग सनमहिज्म नामक एक स्वदेशी आस्था का पालन करते थे. कुछ विद्वानों का कहना है कि 18वीं शताब्दी की शुरुआत में (1704) राजा चराइरोंगबा ने अपने परिवार के साथ हिंदू धर्म अपना लिया था.

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साल 1891 में एंग्लो-मणिपुर युद्ध के बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के तहत एक रियासत बन गया. 1947 में महाराजा बुद्धचंद्र ने मणिपुर को भारत में विलय करने के लिए परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर किए. 1956 में मणिपुर केंद्र शासित प्रदेश बन गया और 1972 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया.

मणिपुर में जातीय संघर्षों का इतिहास क्या है?

मणिपुर में हिंसक विरोध प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है, लेकिन तीन दशकों में ऐसी हिंसा पहली बार देखने को मिल रही है जब राज्य में दो जातीय समूहों के बीच सीधी झड़प हो रही है. मणिपुर को पहले 'कांगलेइपाक' के नाम से जाना जाता था. जब ये ब्रिटिश संरक्षित राज्य था, उस समय यहां उत्तरी पहाड़ियों से आने वाले नगा जनजातियों द्वारा बार-बार हमला किया जाता था.

कहां से आया कुकी-जोमी समुदाय?

ऐसा माना जाता है कि मणिपुर में ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट ने मैतेई और नगाओं के बीच एक बफर के रूप में काम किया और घाटी को लूट से बचाने के लिए बर्मा की कुकी-चिन पहाड़ियों से कुकी-जोमी समुदाय को लेकर आए थे. कुकी, नगाओं की तरह भयंकर शिकारी योद्धा थे और महाराजा ने उन्हें पहाड़ियों के किनारे जमीन दी, जहां वे नीचे इम्फाल घाटी के लिए ढाल के रूप में सुरक्षा दे सकते थे.

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कुकी-मैतेई में कब विभाजन?

पहाड़ी समुदायों और मैतेई लोगों के बीच जातीय तनाव पहले से ही चला आ रहा था. इस बीच, 1950 के दशक में नगा राष्ट्रीय आंदोलन हुआ और स्वतंत्र नगा देश की मांग की जाने लगी, जिससे विवाद और बढ़ गया. मैतेई और कुकी-जोमी समुदाय ने नगा आंदोलन का मुकाबला किया.

'कुकीलैंड' के लिए आंदोलन...

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) सबसे बड़ा नगा विद्रोही संगठन है. 1990 के दशक में जैसे ही NSCN-IM ने आत्मनिर्णय के लिए ज्यादा जोर दिया तो कुकी-जोमी समूहों ने सैन्यीकरण करना शुरू कर दिया और कुकी ने 'कुकीलैंड' के लिए अपना खुद का आंदोलन शुरू कर दिया. भले ही कुकी ने मैतेई लोगों के रक्षक के रूप में आंदोलन की शुरुआत की थी, लेकिन कुकीलैंड की मांग ने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी.

1993 की नगा-कुकी झड़प

1993 के नगा-कुकी संघर्ष के दौरान NSCNIM का कैडर कथित तौर पर उन क्षेत्रों के एक गांव से दूसरे गांव गया, जिनके बारे में उन्होंने दावा किया था कि वे नगाओं के हैं और उन्हें कुकी निवासियों से खाली करवा दिया है. कई कुकी कुकी-जोमी लोगों के प्रभुत्व वाले जिले चुराचांदपुर में भाग गए.

मैतेई राष्ट्रवाद...

नगा और कुकी आंदोलनों ने मैतेई समुदाय में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और घाटी में कई समूह उभरकर सामने आए. 1970 के दशक में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के आंकड़ों ने मैतेई समुदाय को टेंशन में डाल दिया. पारंपरिक मैतेई क्षेत्रों से समुदाय के सिकुड़ने पर चिंताएं जताई जाने लगीं.

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मैतेई आबादी को डर था कि ग्रेटर नगालिम के संभावित निर्माण से मणिपुर का भौगोलिक क्षेत्र सिकुड़ जाएगा. मेतैई के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की कुछ मांगें थीं. मैतेई का तर्क था कि राज्य में सरकार ही सबसे बड़ी रोजगार देने की संसाधन है और नौकरियों में एसटी के लिए आरक्षण बहुत कम है.

साल 2001 में NSCN ने भारत सरकार के साथ युद्ध विराम घोषित कर दिया था. उसके बाद सरकार ने युद्धविराम को आगे बढ़ा दिया, जिसके कारण मणिपुर में व्यापक हिंसा हुई.

इनर लाइन परमिट (ILP) की मांग...

2015 में घाटी के मैतेई लोगों ने इम्फाल शहर में ILP की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. वहीं, चुराचांदपुर में मांग के विरोध में हंगामा हुआ. ऐसे में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने सख्ती बरतने के निर्देश दिए. जिसके बाद विरोध प्रदर्शन तेज हो गया.

हिंसा के लिए जिम्मेदार ऐतिहासिक फैक्टर क्या हैं?

मणिपुर में कुकी (पहाड़ी) और मैतेई के बीच लंबे जातीय संघर्ष और तनाव ने अशांति में योगदान दिया है. दोनों समुदाय राजनीतिक प्रतिनिधित्व, संसाधनों और सांस्कृतिक मान्यता के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. मैतेई आबादी आधी से कुछ ज्यादा है. जबकि कुकी और नगा करीब 40% हैं, जिनमें से 25% कुकी और 15% नगा हैं. अधिकांश मैतेई इम्फाल घाटी में रहते हैं जबकि आदिवासी पहाड़ी जिलों में रहते हैं. मैतेई लोग कुकी और नगाओं की तुलना में ज्यादा शिक्षित हैं और राज्य के व्यापार और राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व भी बेहतर है.

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मैतेई का प्रभुत्व...

मणिपुर की 52% आबादी मैतेई लोगों की है और वे मुख्य रूप से घाटी क्षेत्रों में रहते हैं जो राज्य की कुल भूमि का 10% है. मणिपुर के 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 40 पर मैतेई का राजनीतिक तौर पर दबदबा है. पहाड़ी इलाकों के लोगों का दावा है कि मणिपुर के भौगोलिक क्षेत्र का 89% हिस्सा पहाड़ी जिलों में शामिल होने के बावजूद मणिपुर विधानसभा में इन क्षेत्रों से सिर्फ 20 विधायक हैं.

भूमि संबंधी मुद्दे...

मैतेई राज्य में सिर्फ 10% भूमि तक ही सीमित हैं. राज्य के बाकी हिस्से को आदिवासी क्षेत्रों के रूप में क्लासिफाइड किया गया है. वे राज्य के मैदानी क्षेत्र इंफाल घाटी के छोटे से हिस्से में रहते हैं, जबकि कुकी संरक्षित पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, जो विशेष रूप से उनके लिए आरक्षित हैं. गैर-आदिवासी के रूप में वर्गीकृत होने के कारण मैतेई लोग राज्य के 90% से ज्यादा हिस्से में जमीन नहीं खरीद सकते हैं.

STDCM (मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति) के अनुसार, मैतेई धीरे-धीरे अपनी पैतृक भूमि में हाशिए पर चले गए हैं. वे मणिपुर के आदिवासी/ पहाड़ी इलाकों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं और 10% भूमि तक ही सीमित हैं. जबकि आदिवासी इम्फाल घाटी में जमीन खरीद सकते हैं, जिससे जमीन की उपलब्धता और कम हो जाएगी. मणिपुर में पहाड़ी क्षेत्र में मणिपुर की कुल भूमि का 90% शामिल है.

परिसीमन प्रक्रिया में मुद्दे...

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2020 में जब केंद्र ने 1973 के बाद से राज्य में पहली परिसीमन प्रक्रिया शुरू की तो मैतेई समुदाय ने आरोप लगाया कि इस्तेमाल किए गए जनगणना के आंकड़े जनसंख्या विभाजन को सटीक रूप से नहीं दर्शाते हैं.

मादक पदार्थों की तस्करी और सीमा पार अपराध...

अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की निकटता मणिपुर को मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य सीमा पार आपराधिक गतिविधियों के प्रति संवेदनशील बनाती है. ये अवैध गतिविधियां क्षेत्र में हिंसा और सामाजिक अशांति को बढ़ावा दे सकती हैं.

म्यांमार में तख्तापलट के कारण भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट पैदा हो गया है. मैतेई नेताओं ने आरोप लगाया है कि चुराचांदपुर जिले में अचानक गांवों की संख्या बढ़ गई है. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इन आशंकाओं को बार-बार दोहराया है. चुराचांदपुर में म्यांमार के लोगों की उपस्थिति की ओर इशारा किया है और उन्हें पोस्ता की खेती से जोड़ा है. इतना ही नहीं, बार-बार विदेशियों और बाहरी लोगों का संदर्भ दिया है.

नगा और कुकी ज्यादा राजनीतिक भागीदारी या अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग कर रहे हैं. ये मांगें अक्सर ऐतिहासिक दावों और सांस्कृतिक पहचानों में निहित होती हैं.

AFSPA का प्रयोग...

मणिपुर में हिंसा के बाद AFSPA को लागू किया गया है. इसे हटाने की मांग की जा रही है. AFSPA से सुरक्षाबलों को असीमित अधिकार मिल जाते हैं. सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं, बल प्रयोग कर सकते हैं या फिर गोली तक मार सकते हैं. हालांकि, बल प्रयोग करने और गोली चलाने से पहले चेतावनी देनी जरूरी होती है. सुरक्षाबल चाहें तो किसी को भी रोककर उसकी तलाशी ले सकते हैं. इस कानून के तहत, सुरक्षाबलों को किसी के भी घर या परिसर की तलाशी लेने का अधिकार मिल जाता है. अगर सुरक्षाबलों को लगता है कि उग्रवादी या उपद्रवी किसी घर या बिल्डिंग में छिपे हैं, तो वो उसे ध्वस्त भी कर सकते हैं. इस कानून में सबसे बड़ी बात ये है कि जब तक केंद्र सरकार मंजूरी न दे, तब तक सुरक्षाबलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. AFSPA को लेकर मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगे हैं. इस अधिनियम को उत्पीड़न के रूप में भी देखा जाता है.

मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा?

मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM) के नेतृत्व में 2012 से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की लगातार मांग की जा रही है. मैतेई जनजाति संघ ने मणिपुर हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी और तर्क दिया था कि 1949 में भारत संघ के साथ मणिपुर रियासत के विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी और विलय के बाद एक जनजाति के रूप में इस समुदाय ने अपनी पहचान खो दी है.

20 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट के एक जज ने राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने के लिए मैतेई समुदाय के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया. कुकियों को डर था कि एसटी दर्जे से मैतेई लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने की इजाजत मिल जाएगी. राज्य सरकार की कार्रवाइयों के विरोध में आदिवासी संगठनों ने 28 अप्रैल 2023 को पूर्ण बंद का आह्वान किया.

इससे पहले फरवरी 2023 में मणिपुर सरकार ने 16 कुकी आदिवासी परिवारों की एक छोटी बस्ती को यह दावा करते हुए बेदखल कर दिया था कि वे संरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे थे. हालांकि, आदिवासी संगठनों ने विरोध किया कि बेदखली अभियान वैध निवासियों को टारगेट कर रहा है.

10 मार्च 2023 को मणिपुर सरकार ने दो उग्रवादी समूहों कुकी नेशनल आर्मी (KNA) और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समझौते से हटने का फैसला किया, जिसमें वन अतिक्रमणकारियों के बीच आंदोलन को भड़काने में उनकी भागीदारी का आरोप लगाया गया.

कौन पक्ष क्या मांग कर रहा?
मैतेई समुदाय चाहता है कि सीएम बीरेन सिंह बने रहें. जबकि कुकी चाहते हैं कि सीएम बीरेन सिंह इस्तीफा दें. इस मुद्दे की वजह से राज्य में कानून-व्यवस्था का गंभीर संकट पैदा हो गया है. सत्ता पक्ष को लगता है कि सीएम का इस्तीफा बीरेन सिंह या राष्ट्रपति शासन लगाने के रूप में देखा जाएगा कि उनकी सरकार स्थिति को संभालने में सक्षम नहीं थी. मैतेई, नगा, कुकी और अन्य जनजातियों के बीच चल रहे संघर्षों के कारण ऐसा समाधान ढूंढना चुनौतीपूर्ण हो गया है जो सभी को संतुष्ट कर सके.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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