एक लाइन भी नहीं लिख-पढ़ सकती देश की 18-प्रतिशत- आबादी, 20 फीसदी को नहीं आता जोड़-घटाव

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भारत का संविधान सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देता है. सरकारों की जिम्मेदारी है कि वो हर बच्चे को मुफ्त शिक्षा दे. मगर तब क्या हो जब बच्चा खुद ही न पढ़ना चाहे? ये बात इसलिए क्योंकि सरकार के ही एक सर्वे में सामने आया है कि बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो खुद ही नहीं पढ़ना चाहते, इसलिए वो स्कूल ही नहीं जाते.

नेशनल सैंपल सर्वे की एक रिपोर्ट आई है. इस सर्वे में सामने आया है कि भारत में तकरीबन 2 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो कभी स्कूल नहीं गए. केरल ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां का बच्चा-बच्चा स्कूल गया है.

इस सर्वे में हैरान करने वाली बात ये सामने आई है कि स्कूल नहीं जाने का बड़ा कारण आर्थिक तंगी नहीं है. बल्कि, ज्यादातर बच्चे इसलिए स्कूल नहीं जाते, क्योंकि वो खुद ही नहीं पढ़ना चाहते या फिर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते.

सर्वे में सामने आया है कि जो बच्चे स्कूल नहीं गए हैं, उनमें से करीब 17 फीसदी बच्चों के स्कूल न जाने का कारण आर्थिक तंगी थी जबकि, करीब 24 फीसदी बच्चे इसलिए स्कूल नहीं गए, क्योंकि वो पढ़ना ही नहीं चाहते. 21 फीसदी बच्चे इसलिए स्कूल से दूर हैं, क्योंकि उनके माता-पिता नहीं चाहते कि वो पढ़ाई करें. वहीं, 13 फीसदी बच्चे किसी बीमारी या दिव्यांगता के कारण स्कूल नहीं जा सके.

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2011 में जब आखिरी बार जनगणना हुई थी, तब सामने आया था कि भारत में 78 करोड़ लोग साक्षर हैं. लेकिन इसमें ये भी सामने आया था कि इनमें से 40 करोड़ ऐसे हैं जो अपना नाम भी ठीक से नहीं लिख-पढ़ पाते यानी, पढ़ने-लिखने वाली आधी आबादी सिर्फ नाम की पढ़ी-लिखी थी.

नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट में सामने आया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र के 81.6% लोग ही एक साधारण सा वाक्य पढ़ या लिख सकते हैं. इसका मतलब हुआ कि अब भी 18% से ज्यादा आबादी ऐसी है जो रोजमर्रा की जिंदगी में एक लाइन भी ठीक से पढ़-लिख नहीं सकती. जो एक लाइन भी ठीक से पढ़-लिख नहीं सकते, उनमें 11.7 फीसदी पुरुष और 25 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं.

गांवों में तो हालात और भी खराब हैं. गांवों में रहने वाले 22 फीसदी से ज्यादा लोग पढ़-लिख नहीं पाते हैं. जबकि, शहरी इलाकों में ऐसे लोगों की संख्या 10 फीसदी के आसपास है. ये हालात तब हैं जब ज्यादातर स्कूल ग्रामीण इलाकों में हैं. शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, देशभर में 14.89 लाख स्कूल हैं. इनमें से 2.54 लाख स्कूल शहर और 12.34 लाख स्कूल गांवों में हैं.

एक हैरान करने वाला आंकड़ा ये भी है कि हर 10 में से 2 लोग सिंपल सा जोड़ना-घटाना भी नहीं जानते. सर्वे के मुताबिक, 81.2 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जिन्हें जोड़-घटाना आता है. इसका मतलब हुआ कि तकरीबन 19 फीसदी लोगों को जोड़-घटाना भी नहीं आता. इनमें 12 फीसदी पुरुष और 25 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं. यानी, हर 4 में से 1 भारतीय महिला जोड़-घटाव नहीं कर सकती.

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गांवों और शहरों के आंकड़ों में भी काफी अंतर है. गांवों में रहने वाला हर 4 में से 1 और शहर में रहने वाला हर 10 में से 1 व्यक्ति सिंपल सा जोड़-घटाव नहीं कर पाता. गांवों में रहने वाली 30 फीसदी और शहरों में रहने वाली 14 फीसदी से ज्यादा महिलाएं ऐसी नहीं कर पातीं.

इस सर्वे में ये भी सामने आया है कि ज्यादातर भारतीय साइंस और टेक्नोलॉजी में पढ़ाई करने से बचते हैं. 21 साल से ज्यादा उम्र के सिर्फ 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं, जिन्होंने साइंस या टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन किया है. साइंस या टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन करने में पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा पीछे हैं. सिर्फ 29 फीसदी महिलाएं और 37 फीसदी पुरुषों ने ही इस कोर्स में ग्रेजुएशन किया है.

इतना ही नहीं, इस समय भारत में 25 फीसदी से ज्यादा युवा ऐसे हैं, जो न तो पढ़ाई कर रहे हैं, न जॉब कर रहे हैं और न ही किसी तरह की ट्रेनिंग कर रहे हैं. इनमें 44 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं.

सर्वे से तीन महीने पहले के दौरान 43 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे थे, जिन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल ही नहीं किया गया था. ये हालात तब हैं जब लगभग सभी लोगों तक इंटरनेट की पहुंच है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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