उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर उपचुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. चुनाव प्रचार जोरों पर है और अब मतदान की घड़ी भी करीब आती जा रही है. लेकिन एक बात को लेकर चर्चा थम नहीं रही. वह ये कि कांग्रेस को समाजवादी पार्टी ने हाथ निशान पर उम्मीदवार उतारने के लिए कोई सीट क्यों नहीं दी. सबसे अधिक चर्चा प्रयागराज जिले की फूलपुर विधानसभा सीट को लेकर हो रही है. कांग्रेस इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत से जुड़ा बताते हुए जिद पर अड़ी थी लेकिन अखिलेश यादव ने फूलपुर सीट नहीं छोड़ी. क्यों? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड
फूलपुर विधानसभा सीट के चुनावी रिकॉर्ड की बात करें तो आजादी के बाद यह सीट भी कांग्रेस का गढ़ रही. 1967 के विधानसभा चुनाव तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. यहां तक कि बड़े समाजवादी नेता डॉक्टर राममनोहर लोहिया भी साल 1962 में इस सीट से चुनावी लड़ाई हार गए थे. 21वीं सदी का चुनावी रिकॉर्ड समाजवादी पार्टी (सपा) के पक्ष में नजर आता है.
पिछले चार चुनाव 2007, 2012, 2017 और 2022 की ही बात करें तो दो बार बीजेपी जीती है औरदो ही बार इस सीट पर साइकिल भी दौड़ी है. 2022 के चुनाव में इस सीट पर सपा उम्मीदवार की हार का अंतर तीन हजार से भी कम वोट का रहा था. सपा ने कांग्रेस की जिद पर भी यह सीट नहीं छोड़ी तो उसके पीछे एक वजह पिछले चुनाव की करीबी हार और चुनावी रिकॉर्ड भी है.
2- डॉक्टर लोहिया और छोटे लोहिया से जुड़ी सीट
फूलपुर विधानसभा सीट को पंडित नेहरू की विरासत से जोड़कर कांग्रेस ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. सपा के लिए भी यह सीट कुछ वैसी ही है, जैसी कांग्रेस के लिए. नेहरू परिवार की कर्मभूमि रहा फूलपुर आजीवन सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा की भी कर्मभूमि है. इस सीट से डॉक्टर लोहिया चुनाव लड़ चुके हैं. ऐसे में सपा किसी भी हाल में यह सीट गठबंधन सहयोगी के लिए छोड़ने को तैयार नहीं हुई.
गौरतलब है कि डॉक्टर लोहिया को फूलपुर विधानसभा सीट से 1962 के विधानसभा चुनाव में मात मिली थी. छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्रा ने भी फूलपुर को कर्मभूमि बनाया और वे फूलपुरलोकसभा सीट से सांसद भी रहे. सपा के सामने संकट ये भी था कि अगर वह डॉक्टर लोहिया और छोटे लोहिया से जुड़ी सीट सहयोगी दल के लिए छोड़ देती है तो कहीं उसके कैडर में गलत संदेश नजाए.
3- जातीय समीकरण मुफीद
फूलपुर विधानसभा सीट का जातीय समीकरण अखिलेश को सपा के मुफीद लगता है. अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले की बात कर रहे हैं और फूलपुर विधानसभा सीट के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं. जातीय समीकरणों की बात करें तो फूलपुर सीट यादव और मुस्लिम बाहुल्य है.
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अनुमानों के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 76 हजार यादव, 54 हजार मुस्लिम, 38 हजार ब्राह्मण, 32 हजार कुर्मी मतदाता हैं. फूलपुर में करीब 34 हजार बिंद, कुशवाहा और मौर्या, 16 हजार क्षत्रिय मतदाताओं के साथ ही 45 हजार पासी और 35 हजार जाटव दलित बिरादरी के मतदाता होने का अनुमान है. सपा ने इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है. यादव और मुस्लिम के साथ ही पार्टी अगर अन्य ओबीसी जातियों और दलित बिरादरी से थोड़े-बहुत वोट पाने में भी सफल रही तो जीत की संभावनाएं बन सकती हैं.
4- 2027 पर नजर
सपा की कोशिश हालिया लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद मिले मोमेंटम को बरकरार रखते हुए उपचुनावों के जरिये 2027 के यूपी चुनाव के लिए ट्यून सेट करने की है. ऐसे में सपा नहीं चाहती कि किसी भी सीट पर कोई ढील रह जाए, खासकर पूर्वांचल में. पूर्वांचल की वाराणसी लोकसभा सीट से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं तो वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ भी विधानसभा में इसी इलाके की गोरखपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक पहलू यह भी है कि सपा अगर उपचुनाव में कांग्रेस की डिमांड मान जाती तो वह 2027 चुनाव के लिए भी एक तरह से सीट शेयरिंग फॉर्मूला बन जाता और अखिलेश यादव ऐसा नहीं चाहते थे.
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20 नवंबर को होना है मतदान
फूलपुर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव पहले 13 नवंबर को होना था. बीजेपी और बसपा समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग से कार्तिक पूर्णिमा के त्योहार का उल्लेख करते हुए मतदान की तारीख बदलने की अपील की थी. राजनीतिक दलों की मांग पर चुनाव आयोग ने मतदान की तारीखों में बदलाव कर दिया है. फूलपुर सीट के लिए मतदान अब 13 की जगह20 नवंबर को होगा. चुनाव नतीजे 23 नवंबर को आने हैं.
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