कुछ दिनों पहले कनाडा के ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर पर खालिस्तानियों ने हमला किया था. अब उसकी जांच और कार्रवाई जारी है. हिंदू धर्मस्थल पर खालिस्तानी अटैक पहली बार नहीं हुआ. पहले भी कई मौकों पर ऐसा हो चुका. हैरानी की बात ये है कि हमलावर को रोकने में कनाडा प्रशासन की बहुत कोशिश नजर नहीं आती. यहां तक कि परदे की ओट में वहां की पुलिस और व्यवस्था खालिस्तानियों को सपोर्ट करती दिखती है.
अगर वहां बसी सिख आबादी वोट वहां के लिए वोट बैंक है, तो हिंदू जनसंख्या तो और भी ज्यादा है. फिर क्या वजह है जो कनाडा में हिंदुओं की उतनी पकड़ नहीं?
कितने हिंदू और सिख हैं वहां
साल 2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा की आबादी लगभग पौने चार करोड़ है. इनमें सिख आबादी करीब पौने आठ लाख है, जबकि हिंदू साढ़े आठ लाख के आसपास होंगे. पिछले कुछ सालों में कनाडा में दोनों ही धर्मों के भारतीय काफी तेजी से बढ़े. हालांकि सिख लगातार बढ़त बनाए हुए हैं.
पंजाबी संसद में तीसरी बड़ी भाषा
कनाडा में अंग्रेजी, फ्रेंच और मेंडेरिन के बाद पंजाबी चौथी सबसे लोकप्रिय भाषा है. साल 2016 से अगले पांच सालों के भीतर पंजाबी बोलने वालों में 49 फीसदी बढ़त हुई. ये मेंडेरिन से कहीं ज्यादा है, जिसे बोलने वाले केवल 15 प्रतिशत बढ़े. ये तो हुई आम लोगों की बात, लेकिन पंजाबी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वहां की संसद में अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी तीसरी भाषा है.
वहीं हिंदी बहुत से लोग बोलते तो हैं, लेकिन भाषा के पायदान पर इसे अभी कोई बढ़त नहीं मिल सकी. कनाडा के कुछ बड़े शहरों, जैसे टोरंटो, वैंकूवर और मॉन्ट्रिअल में हिंदी भाषी काफी हैं. ये वो इलाके हैं, जहां इमिग्रेंट्स रहते हैं, लेकिन ये वहीं तक सीमित है. दूसरी तरफ पंजाबी भाषा और स्क्रिप्ट सिखाने के लिए वहां कई संस्थान हैं.
संसद में कैसी है स्थिति
कनाडाई संसद में वर्तमान में लगभग 15 सिख सांसद हैं, जो कनाडा की आबादी का 1.9% होने के बावजूद 4.3% सांसदों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वहीं फिलहाल केवल एक हिंदू सांसद चंद्र आर्य हाउस ऑफ कॉमन्स में हैं.
अब बात करें वहां बसे सिखों की, तो उनके हिस्से बड़ी राजनैतिक जमीन है. कनाडा पहुंची सिख बिरादरी ने इसकी शुरुआत सत्तर के दशक से कर दी थी. तब आजाद पंजाब पार्टी बनी थी. इसका मकसद सिखों और बाकी भारतीय प्रवासियों के हक की बात करना था. हालांकि ये पार्टी जल्द ही भंग हो गई. फिलहाल कनाडा में छोटा-मोटा पंजाब बस चुका, जिसकी बातें उठाने के लिए पार्टियां भी कई हैं. इनमें लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा, कंजर्वेटिव पार्टी ऑफ कनाडा और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख हैं. इसके अलावा कुछ छोटी-मोटी पार्टियां भी हैं, जो मुद्दों पर काम करती हैं.
एक सिख नेता कर रहा पूरी पार्टी का नेतृत्व
पहली बार संसद में जाने वाले सिख गुरबख्श सिंह मल्ही थे. नब्बे के दशक में उन्होंने लिबरल पार्टी के साथ जीत हासिल की. जल्द ही पार्लियामेंट में सिखों की धमक बढ़ी. साल 2021 में 18 सिख सांसद कनाडाई संसद के लिए चुने गए.
जगमीत सिंह पहले ऐसे सिख लीडर हैं, जिन्होंने कनाडा की राजनैतिक पार्टी- न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का नेतृत्व किया. संसद में एक साथ इतने सांसदों के होने की वजह से कोई भी पॉलिटिकल पार्टी इनसे पंगा नहीं लेना चाहती. यही वजह है कि खालिस्तान के मुद्दे पर वर्तमान पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भारत से बैर ले लिया.
धार्मिक स्थलों में क्या है फर्क
लगभग साढ़े लाख की हिंदू आबादी की अपनी सीमाएं हैं. वो राजनैतिक या आर्थिक तौर पर मजबूत तो हो रहा है लेकिन उतना एकजुट नहीं. कुछ हिंदू संगठन और मंदिर भी हैं, लेकिन वे सिख समुदाय जितने संगठित या सक्रिय नहीं. वहीं गुरुद्वारों में नियमित सभाएं होती हैं. यह न केवल धार्मिक-सामाजिक मकसद से होती रहीं, बल्कि राजनैतिक एकजुटता भी बड़ा लक्ष्य है.कनाडा में मौजूद इस समुदाय को पता है कि उसे क्या चाहिए, और उसके पास कितनी शक्ति है. यही फर्क आ जाता है.
ये सारे कारण मिल-जुलकर कनाडियन हिंदुओं की स्थिति खराब किए हुए हैं. साल 2023 मेंखालिस्तानी चरमपंथी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने वहां बसे हुए हिंदुओं को कनाडा छोड़ने और भारत लौटने के लिए धमकाया था. इसके बाद से उनके खिलाफ हेट क्राइम भी तेजी से बढ़ा.
कितना बढ़ चुका हेट क्राइम
स्टेटिस्टिक्स कनाडा के मुताबिक, साल 2014 से 2023 के बीच हिंदुओं, और यहां तक कि कनाडा में बसे पाकिस्तानियों पर भी हमले हुए, इस संदेह में कि वे भारतीय हिंदू हैं. इस देश में विश्व हिंदू परिषद (VHP) भी सक्रिय है. उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर विस्तार से बात करते हुए ऐसी ढेरों घटनाओं के बारे में बताया गया. VHP का ये भी दावा है कि साल 2022 से ही हिंदू मंदिरों पर हमले के 20 से ज्यादा मामले आ चुके.
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