LAC पर पेट्रोलिंग पॉइंट्स को लेकर क्या था विवाद, समझें- समझौते का भारत-चीन की सेना पर क्या होगा असर

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भारत और चीन के बीच साढ़े चार साल से जारी गतिरोध अब खत्म होता नजर आ रहा है. दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हो गया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि बड़े देशों के बीच मनमुटाव होता रहता है, लेकिन ये एक बड़ी सफलता है. अब एलएसी पर 2020 से पहले की स्थिति हो जाएगी.

विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने बताया कि बीते कई हफ्तों से भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत चल रही थी. इसी बातचीत से एलएसी पर पेट्रोलिंग को लेकर सहमति बनी है.

विदेश मंत्री जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा कि 2020 के बाद कई ऐसे इलाके थे, जहां उन्होंने ब्लॉक कर दिया था और हमने उन्हें ब्लॉक कर दिया था. लेकिन अब पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हो गया है. अब हम वहां तक पेट्रोलिंग कर सकेंगे, जहां 2020 तक करते आ रहे थे.

चीन ने भी इस समझौते की पुष्टि कर दी है. मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच सहमति बन गई है और हम भारत के साथ मिलकर काम करेंगे.

दोनों के बीच कैसे बनी बात?

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जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हो गई थी. इस झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद से ही एलएसी पर भारत और चीन के बीच गतिरोध जारी था.

भारत और चीन के बीच जो समझौता हुआ है, उसकी राह आसान नहीं थी. विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने बताया कि भारत और चीन के बीच हुआ समझौता कई हफ्तों की बातचीत का नतीजा है. उन्होंने बताया कि कई हफ्तों से दोनों देश कई चैनलों के माध्यम से काम कर रहे थे.

दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 21 दौर और राजनयिकों के बीच 31 दौर की बैठक हुई थी. विदेश मंत्री जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल ने भी चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बैठक की थी.

समझौता क्या हुआ?

भारत-चीन के बीच हुए इस समझौते के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि, एलएसी पर जैसी स्थिति जून 2020 से पहले थी, अब फिर वैसी ही होगी.

जयशंकर ने बताया है कि अब भारतीय और चीनी सैनिक एलएसी पर उसी तरह से पेट्रोलिंग कर सकेंगे, जैसे सीमा पर तनाव शुरू होने से पहले करते आ रहे थे. इस समझौते से अब देपसांग और डेमचोक में भी पेट्रोलिंग हो सकेगी.

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देपसांग में पेट्रोलिंग करना भारत के लिहाज से इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि काराकोरम दर्रे के पास दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से 30 किलोमीटर दूर है. पहाड़ियों के बीच ये सपाट इलाका भी है, जिसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधि में किया जा सकता है. वहीं, डेमचोक सिंधु नदी के पास पड़ता है. अगर यहां पर चीन का नियंत्रण होता है तो इससे उत्तर भारत के राज्यों में पानी की आपूर्ति पर असर पड़ने का खतरा था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, समझौते के तहत भारतीय सेना देपसांग में पेट्रोलिंग पॉइंट 10 से 13 तक और डेमचोक में चारडिंग नाले तक पेट्रोलिंग कर सकती है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि महीने में दो बार दोनों देशों की सेनाएं गश्त कर सकेंगी. पहले पेट्रोलिंग टीम में 13 से 18 सैनिक होते थे, लेकिन अब 14-15 सैनिक ही होंगे. इसके अलावा दोनों देश पेट्रोलिंग की तारीख साझा करेंगी, ताकि किसी तरह का टकराव न हो.

(फाइल फोटो-PTI)

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पेट्रोलिंग पॉइंट्स का मामला क्या है?

चीन के साथ लगने वाली सीमा तीन सेक्टर- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी है. लद्दाख के साथ लगने वाली सीमा वेस्टर्न सेक्टर में आती है. ये सीमा 1,597 किलोमीटर लंबी है. वेस्टर्न सेक्टर में एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा तय नहीं है.

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1962 की जंग के बाद 1970 में पूर्वी लद्दाख से लगी एलएसी पर भारत ने अपनी सेना हटा ली थी. इससे चीनी सैनिकों की घुसपैठ बढ़ गई थी. इसलिए, जहां सीमाएं तय नहीं थी, वहां एलएसी पर पेट्रोलिंग पॉइंट्स बनाए गए, जहां भारतीय सैनिक गश्त लगा सके.

1976 में भारत ने एलएसी पर 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स तय किए. पेट्रोलिंग पॉइंट 1 काराकोरम पास में है तो 65 चुमार में है. इन पेट्रोलिंग पॉइंट्स को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन इन्हें चिन्हित नहीं किया गया है.

पेट्रोलिंग पॉइंट्स में क्या होता है?

पेट्रोलिंग पॉइंट्स से भारत-चीन के बीच सीमा तय नहीं हुई है. लेकिन ये विवादित इलाके हैं. इन पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर दोनों देशों के सैनिक गश्त लगाते हैं. इसके लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय हैं.

कभी-कभी दोनों देशों के सैनिक एक ही समय में पेट्रोलिंग के लिए आ जाते हैं. ऐसे में प्रोटोकॉल ये है कि अगर एक पक्ष को दूसरे की पेट्रोलिंग टीम दिख जाए तो वो वहीं रुक जाएगा. ऐसी स्थिति में कुछ बोला नहीं जाता है. बल्कि बैनर दिखाया जाता है. भारत के बैनर में लिखा होता है- 'आप भारत के इलाके में हैं, वापस जाओ.' इसी तरह चीन के बैनर में लिखा होता है- 'आप चीन के इलाके में हैं, वापस जाओ.'

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हालिया सालों में देखने में आया है कि ऐसी स्थिति में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटने की बजाय आपस में भिड़ जाते हैं. यही वजह है कि एलएसी पर कई बार दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प और धक्का-मुक्की की खबरें आ रहीं हैं. लेकिन समझौते के बाद सीमा पर झड़प न होने की उम्मीद है.

समझौते का असर क्या?

इस समझौते का सबसे बड़ा असर ये होगा कि गलवान घाटी में झड़प के बाद से जो तनाव था, वो अब लगभग खत्म हो गया है. अब दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर जून 2020 से पहले की स्थिति पर आ जाएंगी.

हालांकि, भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का कहना है कि हम अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति पर जाना चाहते हैं.

भारत और चीन के बीच एलएसी पर पांच जगहों- देपसांग, डेमचोक, गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग में संघर्ष था. 2020 के बाद कई दौर की बातचीत के बाद गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गई थीं. हालांकि, देपसांग और डेमचोक में सेनाएं तैनात रहने से टकराव का खतरा बना हुआ था.

लेकिन अब समझौते के बाद पांच जगहों से भारत और चीन की सेनाएं हट जाएंगी और यहां पहले की तरह पेट्रोलिंग कर सकेंगी. इससे सीमा पर शांति रहेगी.

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(फाइल फोटो-PTI)

ये बफर जोन क्या हैं?

सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि एलएसी पर बफर जोन बनाने का फैसला अहम कदम है और अब दोनों पक्षों को तय करना चाहिए कि इन इलाकों का सम्मान हो. उन्होंने कहा कि हमें देखना होगा कि बफर जोन में घुसपैठ न हो.

पर ये बफर जोन क्या है? दरअसल, पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग, गलवान घाटी, गोगरा और हॉट स्प्रिंग में सेनाओं की वापसी के बाद से ही बफर जोन बने हुए हैं. बफर जोन वो जगह है, जहां न तो भारत के सैनिक पेट्रोलिंग कर सकते हैं और न ही चीन के.

बफर जोन इसलिए बनाए गए थे, ताकि सीमा पर शांति बनी रहे और तनाव न हो. फिलहाल बफर जोन में पेट्रोलिंग को लेकर भी बातचीत चल रही है.

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भारत के किन-किन हिस्सों पर चीन के साथ विवाद है?

1. पैंगोंग त्सो झील (लद्दाख)

ये झील 134 किलोमीटर लंबी है, जो हिमालय में करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 44 किमी क्षेत्र भारत और करीब 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है. LAC भी इसी झील से गुजरती है. इस वजह से यहां कन्फ्यूजन बना रहता है और दोनों देशों के बीच यहां विवाद है.

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2. गलवान घाटी (लद्दाख)

गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है. यहां पर LAC अक्साई चीन को भारत से अलग करती है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिन्जियांग और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है. जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी.

3. डोकलाम (भूटान)

वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है. ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक है. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं. भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है. 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव था.

4. तवांग (अरुणाचल प्रदेश)

अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर चीन की नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. 1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था. 1962 की जंग में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन युद्धविराम के तहत उसे अपना कब्जा छोड़ना पड़ा था.

5. नाथू ला (सिक्किम)

नाथू ला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है. ये भारत के सिक्किम और दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है. ये 14,200 फीट की ऊंचाई पर है. भारत के लिए ये इसलिए अहम है क्योंकि यहीं से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थयात्री गुजरते हैं. नाथू ला को लेकर भारत-चीन में कोई विवाद नहीं है. लेकिन यहां भी कभी-कभी भारत-चीन की सेनाओं में झड़पों की खबरें आती रही हैं.

LAC क्या है?

भारत और सीमा के बीच कभी भी कोई आधिकारिक सीमा नहीं रही. और इसकी वजह चीन ही है. चीन किसी रेखा को सीमा नहीं मानता है.

1962 की जंग में चीन की सेना लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के तवांग तक में अंदर घुस आई थी. बाद में जब युद्धविराम हुआ तो तय हुआ कि दोनों देशों की सेनाएं जहां तैनात हैं, उसे ही एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल माना जाएगा. ये एक तरह से सीजफायर रेखा है.

एलएसी जम्मू-कश्मीर में भारत के इलाके और चीन के अवैध कब्जे वाले अक्साई चिन को अलग करती है. एलएसी लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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