J-K में नतीजों से पहले विवाद! जानें- LG के 5 विधायकों को नॉमिनेट करने का मामला क्या है? क्या होगा असर

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जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं. जम्मू-कश्मीर में किसकी सरकार बनेगी? इसके नतीजे मंगलवार को आ जाएंगे. हालांकि, एग्जिट पोल में जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन सरकार बनने का संकेत मिल रहा है. लेकिन कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है.

सी-वोटर के एग्जिट पोल के मुताबिक, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को 90 में से 40 से 48 सीटों पर जीत मिल सकती है. बीजेपी को 27 से 32 सीटें मिलने का अनुमान है. जबकि, पीडीपी को 6 से 12 सीटों पर जीत मिलने के आसार हैं. वहीं, अन्य के खाते में 6 से 11 सीटें आ सकती हैं.

जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए 45 सीटों का आंकड़ा छूना जरूरी है. अब जब किसी भी एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलते नहीं दिख रहा है, तो ऐसे में सत्ता की चाबी उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास चली जाती है. एलजी मनोज सिन्हा विधानसभा में पांच विधायकों को नामित कर सकते हैं. अब इस पर राजनीतिक पार्टियों ने चिंता जताई है. ऐसे में जानते हैं कि ये पूरा नियम क्या है?

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क्या है मनोनीत विधायकों का नियम?

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार है. अगर पांच विधायकों को नामित किया जाता है, तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 95 हो जाएगी. इससे बहुमत का आंकड़ा भी 45 से बढ़कर 48 हो जाएगा.

हालांकि, शुरू में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार नहीं था. जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 में प्रावधान किया गया था कि अगर उपराज्यपाल को लगता है कि विधानसभा में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं है तो वो दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं.

हालांकि, इस कानून में 2023 में संशोधन किया गया. इसके बाद उपराज्यपाल को तीन और सदस्यों को नामित करने का अधिकार मिल गया.

अब उपराज्यपाल दो कश्मीरी प्रवासियों और पीओके से विस्थापित एक सदस्य को नामित कर सकते हैं. दो कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला होगी.

कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो. वहीं, जो भी व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया होगा, उसे विस्थापित माना जाएगा.

क्या एलजी अपने हिसाब से नामित कर सकते हैं?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व लॉ सचिव मोहम्मद अशरफ मीर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनेजाइशन एक्ट में प्रावधान है कि कानून से जुड़े मामलों में उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करेंगे. लेकिन इसमें सदस्यों को नामित करने के लिए किसी की सलाह लेने की जरूरत नहीं है. इसके मतलब हुआ कि उपराज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदस्यों को नामित कर सकते हैं.

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जबकि, एक और वकील शरीक रियाज का कहना है कि एलजी विधानसभा में सदस्यों को एकतरफा नामित नहीं कर सकते. ये संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत स्टेट लिस्ट में आता है, जिसके मुताबिक उपराज्यपाल मंत्रि परिषद की सलाह और सहायता पर काम करेंगे.

पुडुचेरी जैसी ही विधानसभा होने के सवाल पर रियाज ने कहा कि पुडुचेरी हमेशा से केंद्र शासित प्रदेश था, जबकि जम्मू-कश्मीर एक राज्य था और उसे बाद में केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. इतना ही नहीं, पुडुचेरी के कानून के मुताबिक, विधानसभा में सदस्यों को केंद्र सरकार नामित करेगी. जबकि, जम्मू-कश्मीर के मामले में ये अधिकार उपराज्यपाल को दिया गया है.

नामित सदस्यों को वोटिंग का अधिकार होगा?

जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन कानून के मुताबिक, विधानसभा में सदस्यों को नामित करने का अधिकार उपराज्यपाल के पास होगा, लेकिन क्या ये सदस्य सरकार गठन में भूमिका निभा सकते हैं और अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कर सकते हैं?

इसे पुडुचेरी के नामित सदस्यों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समझते हैं. पुडुचेरी में तीन सदस्यों को नामित किया जाता है और इनके पास भी वही सारे अधिकार होते हैं जो चुने हुए विधायकों के पास होते हैं.

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तीन बीजेपी नेताओं को सदस्यों के रूप में नामित करने के फैसले को बरकरार रखने वाले मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. केंद्र सरकार ने 2018 में पुडुचेरी में तीन बीजेपी नेताओं को विधायकों के रूप में नामित किया था. इसे मद्रास हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि केंद्र ने ऐसा करने से पहले राज्य सरकार से सलाह नहीं ली थी. मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में कुछ भी गलत नहीं पाया था और मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था.

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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि 1963 के कानून के तहत, केंद्र सरकार को पुडुचेरी विधानसभा में तीन सदस्यों को नामित करने से पहले राज्य सरकार की सलाह लेने की जरूरत नहीं है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि पुडुचेरी में नामित और चुने हुए विधायकों में कोई फर्क नहीं है. चुने हुए विधायकों की तरह ही नामित विधायक भी अविश्वास प्रस्ताव, विश्वास प्रस्ताव और बजट पर वोटिंग कर सकते हैं.

J-K में क्या है पार्टियों का रुख?

जम्मू-कश्मीर बीजेपी के प्रवक्ता और वकील सुनील सेठी ने कहा कि ये कानून 2019 से ही बहुत साफ है. मनोनीत सदस्यों की शक्तियों पर आपत्ति जताने वालों ने न तो संविधान पढ़ा है और न ही जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट. अगर उन्हें इससे दिक्कत है तो उन्हें चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेना चाहिए था.

कांग्रेस महासचिव गुलाम अहम मीर ने कहा कि किसी पार्टी का पक्ष लेने के इरादे से विधायकों को नामित करना असंवैधानिक है और कोई भी अदालत इसकी इजाजत नहीं देगी. नामांकन प्रक्रिया गैर-राजनीतिक होनी चाहिए और हमेशा स्कॉलर्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं को नामित किया जाना चाहिए.

वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता रतन लाल गुप्ता ने कहा कि ये कदम असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है. विधायकों को नामित करने के अधिकार समेत सभी विधायी शक्तियां चुनाव के बाद सरकार के पास आ जाती हैं.

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जबकि, पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें अब तक नहीं पता है कि बहुमत हासिल करने के लिए 46 के आंकड़े तक पहुंचना होगा या 48 तक. ऐसा लगता है कि चुनाव नतीजों के आधार पर इसका इस्तेमाल करने की जानबूझकर कोशिश की जा रही है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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