साथ काम किया... JDU जॉइन की, फिर क्यों हो गए नीतीश के विरोधी? प्रशांत किशोर ने दिया ये जवाब

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चुनावी रणनीतिकार से सक्रिय राजनीति में उतरने वाले प्रशांत किशोर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन 'जन सुराज पार्टी' लॉन्च करेंगे. इसके पहले उन्होंने रविवार को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेस को संबोधित किया. पीके ने कहा कि जन सुराज पदयात्रा शुरू करने के ढाई साल बाद हम मिल रहे हैं. हम 2 अक्टूबर को एक नए चरण की ओर बढ़ रहे हैं. हमने तीन बुनियादी लक्ष्यों के साथ यह पदपात्रा शुरू की थी- बिहार गांवों का दौरा करना और सुधार की संभावनाओं पर लोगों से बात करना, मतदाताओं को एक राजनीतिक विकल्प देना और विशेष रूप से राज्य की सभी 8500 पंचायतों को शामिल करते हुए बिहार के विकास का खाका तैयार करना.

उन्होंने कहा कि जन सुराज पदयात्रा निर्बाध रूप से जारी रहेगी क्योंकि हम अब तक राज्य का केवल 60 प्रतिशत हिस्सा ही कवर कर पाए हैं. फिलहाल यह यात्रा सुपौल, अररिया में है. समय लग सकता है लेकिन राज्य के कोने-कोने तक हम जन सुराज को लेकर पहुंचेंगे. प्रशांत किशोर ने मीडिया कर्मियों से कहा, 'आप एक नई राजनीतिक पार्टी देखेंगे. इसका नाम, नेतृत्व और अन्य विवरण साझा किए जाएंगे. मैं कभी जन सुराज का नेता नहीं था और न ही आगे बनने की इच्छा रखता हूं. अब समय आ गया है कि पीके से बेहतर लोगों को नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए.'

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पीके ने कहा कि जन सुराज नेतृत्व परिषद (Jan Suraj Leadership Council) के सदस्यों और पार्टी प्रमुख के नामों की घोषणा 2 अक्टूबर को की जाएगी. उन्होंने कहा, 'अगले साल फरवरी-मार्च तक हम दूसरे चरण में उन संभावित योजनाओं को सामने रखेंगे जो हमें समाधान की ओर ले जा सकती हैं. यह कार्यक्रम हम पटना के गांधी मैदान में करेंगे. बिहार के युवाओं का पलायन रोकना हमारी प्राथमिकता में है. समय आने पर हम इसके लिए विस्तृत और स्पष्ट योजना सामने रखेंगे.' अल्पसंख्यकों की ओर झुकाव के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा, 'मैं बिहार और बिहारियों के लिए काम करता हूं. इसमें मुसलमान भी आते हैं. जन सुराज का गठन करने वालों में भी मुसलमान थे. हम जन सुराज पार्टी में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेंगे. पार्टी में योग्यता ही एकमात्र मानदंड होगी.'

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जन सुराज पार्टी का मुखियामुझसे बेहतर होगा

प्रशांत किशोर ने कहा कि वह बिहार के भीतरी इलाकों में अपनी यात्रा जारी रखने के अपने वादे पर कायम हैं. हम इतनी संख्या में बिहार के गांवों में घूम रहे हैं, लेकिन हमारी सुरक्षा के लिए किसी पुलिस की जरूरत नहीं पड़ी. एक कुत्ते ने भी मुझे काटने की कोशिश नहीं की. आगामी राजनीतिक दल के प्रमुख के बारे में बात करते हुए पीके ने कहा, 'आप देखिएगा, जो भी आदमी जन सुराज पार्टी का मुखिया बनेगा, वह योग्यता और बुद्धि में मुझसे बेहतर होगा.' अपने प्रतिद्वंदी दलों जदयू और राजद पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा, 'अन्य नेताओं ने भी कई यात्राएं शुरू कीं, लेकिन किसी को पता नहीं चला कि वे कब शुरू हुईं और कब खत्म हो गईं.'

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जन सुराज पार्टी में अपनी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर प्रशांत किशोर ने कहा, 'चुनौती समाज को अपने साथ जोड़ने, उन्हें यह समझाने की है कि जन सुराज अन्य दलों से बेहतर राजनीतिक विकल्प है. मैं इस काम की जिम्मेदारी ले रहा हूं. मैं बिहार में अपनी यात्रा और लोगों से संवाद जारी रखूंगा. महात्मा गांधी केवल एक कार्यकाल के लिए कांग्रेस अध्यक्ष रहे. इसका मतलब यह नहीं कि पद छोड़ने के बाद उनका महत्व खत्म हो गया. सिर्फ 1200 परिवार हैं, ​जो बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर कब्जा जमाकर बैठे हैं. हमें यह देखना होगा कि कौन बेहतर विकल्प है: जो पार्टी सिंबल देने के लिए पैसे लेते हैं या वो जो योग्य और मेधावी उम्मीदवारों को बढ़ावा देते हैं.'

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नीतीश कुमार में आमूल-चूल परिवर्तन आ गया है

पहले नीतीश के साथ काम करने और जदयू में शामिल होने के बाद प्रशांत किशोर उनके धुर विरोध कैसे हो गए? इस सवाल के जवाब में पीके ने कहा- मैंने नारा गढ़ा था 'बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो'. नीतीश कुमार में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है; पहले लोग उनके नेतृत्व और राज्य के विकास के प्रति उनके समर्पण को लेकर आश्वस्त थे. उनमें राजनीतिक नैतिकता थी; बंगाल में रेल दुर्घटना होने पर नीतीश ने रेल मंत्री का पद छोड़ा; 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू की हार की जिम्मेदारी लेते हुए जीतन राम मांझी को सीएम बनाया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनमें बदलाव आया है.

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नीतीश के शासन में अधिकारियों का जंगल राज

कोरोनो महामारी के दौरान नीतीश कुमार ने खुद को घर में पैक कर लिया था. कभी लालटेन तो कभी कमल के फूल के साथ लटकर मुख्यमंत्री बन गये. मैंने उन्हें कम विधायकों के साथ मुख्यमंत्री बनने के प्रति आगाह किया था. शाम तक वह इस रुख पर अड़े रहे, लेकिन कुछ घंटों बाद सीएम पद स्वीकार कर लिया. लालू के शासनकाल में बिहार में जंगल राज था, नीतीश के शासनकाल में राज्य में अधिकारियों का जंगल राज है. चार सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने बिहार पर कब्जा कर लिया है, मैं उन सभी का नाम नहीं लूंगा. पीके ने राजद पर निशाना साधते हुए कहा, 'लालू सिर्फ एक बार अकेले दम पर बिहार में चुनाव जीत सके. मैं जानता हूं कि उनमें कितनी राजनीतिक क्षमताएं हैं. उन्होंने मुसलमानों ​के लिए क्या किया है? वह (लालू) सिर्फ उन्हें अपनी लालटेन में केरोसिन की तरह जला रहे हैं.'

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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