सीएम योगी आदित्यनाथ का नजूल संपत्ति अधिनियम ठंडे बस्ते में फिलहाल तो चला गया लेकिन यह विधेयक मरा नहीं है और अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चली तो कुछ वक्त बाद कुछ संशोधनों के साथ एक बार फिर यह विधेयक वापस आएगा. ऐसा नहीं है कि नजूल संपत्ति विधेयक को अचानक सरकार ने बनाकर पेश कर दिया बल्कि सत्ता के गलियारे में इस विधेयक को लेकर चर्चा काफी वक्त से चल रही थी, ताकि 2 लाख करोड़ की लगभग 75 हजार एकड़ भूमि के इस नूजूल संपत्ति के बंदरबांट को प्रदेश में रोका जा सके.
नजूल की जमीनें कभी भी किसी व्यक्ति विशेष की नहीं होती. आजादी के पहले और आजादी के बाद इन जमीनों के लीज और पट्टे लोगों को दिए गए, जो तब भी बेशकीमती थे और आज भी बेशकीमती है. क्योंकि नजूल जमीनों का बड़ा हिस्सा बड़े मुख्य शहरों के बीचो-बीच मौजूद है और इसके बंदर बांट का खेल अपराधियों भूमाफियाओं राजनेताओं और अफसर के मिली भगत से दशकों से चल रहा है.
1993 में नजूल संपत्ति को लेकर बने बोहरा कमिशन ने अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें राजनेता अपराधी -भूमि माफिया और नौकरशाह के इसी संगठित गिरोह पर चिंता जताई गई थी- इस रिपोर्ट में यह कहा गया था कि बड़े शहरों में आए का मुख्य स्रोत अचल संपत्ति से संबंधित भूमि और भवनों पर जबरन कब्जा करना है, मौजूद निवासियों किराएदारों को बाहर निकाल कर सस्ते दामों पर ऐसी संपत्तियों को खरीदना- बेचना है जो व्यवसाय का रूप ले चुका है, यही नहीं इस रिपोर्ट में राजनेता, माफिया, अफसरों और अपराधियों के नेक्सस पर भी चिंता जताई गई थी.
कैसे चलता है नजूल पर कब्जे का कारोबार?
दरअसल, उत्तर प्रदेश में करीब 72 से 75000 एकड़ नजूल की जमीन है जिसकी बाजार की कीमत 2 लाख करोड़ से ज्यादा है. नजूल भूमि पर अवैध कब्जा कर लेना, अगर किसी के नाम बेशकीमती नजूल की जमीन की लीज़ है और वो अगर कमजोर है या आसान शिकार है तो उसे हड़प लेना, भू-माफिया द्वारा फर्जी दस्तावेज तैयार कर कौड़ियों के भाव में अपने पक्ष में फ्री होल्ड करा लेने का खेल लंबे वक्त से चल रहा है. अंग्रेजों के वक्त की लीज़ की हुई जमीन का अगर कोई वारिस नहीं है तो शहर के बड़े भू-माफियाया और अपराधी पहले उसे पर अवैध कब्जा करते हैं और फिर फर्जी फ्री होल्ड कराने का गोरखधंधा चलता है जिसमें अफसरों से लेकर भूमाफियाओं और नेताओं की मिलीभगत होती है और लीज़ की उस ज़मीन पर बड़े-बड़े मार्केट कंपलेक्स और व्यावसायिक गतिविधियों के केंद्र बनाकर सैकड़ों हजार करोड़ का कारोबार फलता फूलता है.
योगी सरकार ने कई बड़े माफिया पर कार्रवाई की. अतीक अहमद प्रयागराज के सबसे बड़े माफिया और भू माफिया के तौर पर जाना जाता था, जिसने प्रयागराज के सिविल लाइन से लेकर लखनऊ के हजरतगंज तक न जाने कितने नजूल की जमीनों पर कब्जे किए और ऐसे ही कारोबार की मदद से हजारों करोड़ की संपत्ति बना ली गई. राजनीतिक रसूख भी इन पैसों से मिला- मुख्तार अंसारी ने भी लखनऊ सहित दूसरे कई बड़े शहरों में नजूल की संपत्तियां कब्जा की और अपने जमीन व्यवसाय का बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन दोनों डॉन और राजनेताओं से बड़ी-बड़ी जमीने खाली कराई और पर प्रयागराज में गरीबों के आशियाने बनवाई और लखनऊ में भी ऐसी ही तैयारी चल रही है.
यूपी नजूल विधेयक में क्या था?
प्रस्तावित कानून में कहीं भी किसी को बेदखल करने का कोई प्रावधान नहीं, गरीब तबके के पुनर्वास की व्यवस्था है. नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने का कोई कानून नहीं है.
क्या है योगी सरकार का प्रस्तावित नजूल कानून?
गवर्नमेंट ग्रान्ट एक्ट 1895 रिपील हो जाने के फलस्वरूप समस्त नजूल नीतियां स्थगित होने के दृष्टिगत व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए दृष्टिगत राज्य सरकार को नजूल भूमि को संरक्षित करना चाहिए. इसके लिए सरकार उत्तर प्रदेश ने नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) अध्यादेश, 2024 लागू किया. नियमानुसार इसी को कानून बनाने के लिए विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश किया गया था. प्रस्तावित कानून में कहीं भी किसी निवासरत व्यक्ति को बेदखल करने की बात नहीं है, बल्कि यह कानून गरीब तबके के पुनर्वास के लिए कानून बनाने और उन्हें पुनर्वासित करने का अधिकार भी सरकार को देता है.
नजूल भूमि विधेयक के संबंध में महत्वपूर्ण बिंदु
● इस एक्ट के प्रभावी होने के बाद से उत्तर प्रदेश में किसी भी नजूल भूमि को किसी प्राइवेट व्यक्ति अथवा प्राइवेट एंटिटी के पक्ष में फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा. नजूल भूमि केवल पब्लिक एंटिटी, राज्य अथवा केंद्र सरकार के विभागों अथवा स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक सहयोग से संबंधित सरकारी संस्थानों को ग्रांट किया जाएगा.
● खाली पड़ी नजूल भूमि जिसकी लीज़ अवधि समाप्त हो रही है, उसे फ्री होल्ड न करके सार्वजनिक हित की परियोजनाओं जैसे अस्पताल, विद्यालय, सरकारी कार्यालय आदि के लिए उपयोग किया जाएगा.
● ऐसे पट्टाधारक जिन्होंने 27, जुलाई 2020 तक फ्री होल्ड के लिए आवेदन कर दिया है और निर्धारित शुल्क जमा कर दिया है, उनके पास यह विकल्प होगा कि वह लीज अवधि समाप्त होने के बाद अगले 30 वर्ष की अवधि के नवीनीकरण करा सकें. बशर्ते, उनके द्वारा मूल लीज़ डीड का उल्लंघन न किया गया हो.
● ऐसी किसी भी भूमि पर जहां कि आबादी निवासरत है, अथवा जिसका व्यापक जनहित में उपयोग किया जा रहा है, उसे नहीं हटाया जाएगा. वर्तमान में उपयोग लाई जा रही भूमि से किसी की बेदखली नहीं की जाएगी.
● ऐसे सभी पट्टाधारक जिन्होंने लीज़ अवधि में लीज़ डीड का उल्लंघन नहीं किया है, उनका पट्टा नियमानुसार जारी रहेगा.
● कोई भी भवन जो कि नजूल की भूमि पर बनाई गई है और व्यापक जनहित में यदि उसे हटाया जाना आवश्यक होगा तो सरकार द्वारा प्रभावित व्यक्ति को भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के उपबंध के अनुसार ऐसे पट्टाधारक द्वारा की गयी उपरिसंरचना या बनाये गये भवन के लिये प्रतिकर दिया जायेगा.
● यह अधिनियम सरकार को अधिकार देती है कि वह नजूल की भूमि पर काबिज़ गरीब तबके के हितों को संरक्षण देते हुए उनके पक्ष में कानून बना सके एवं उन्हें पुनर्वासित कर सके .
● ऐसे सभी मामलों में जहां पूर्ण स्वामित्व विलेख पहले से ही निष्पादित हो गया है और यह पता चलता है कि ऐसा पूर्ण स्वामित्व विलेख कपट करके या तथ्यात्मक सूचनाओं को छुपाकर निष्पादित किया गया था जिसका ऐसा पूर्ण स्वामित्व स्वीकृत करने के सरकार के विनश्चय पर प्रभाव पड़ा था तो सरकार को ऐसे पूर्णस्वामित्व विलेख को निरस्त करने और भूमि और भवन को पुनः कब्जा करने की शक्ति होगी.
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